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श्रीराम जन्मभूमि : शायद अब कोई विकल्प नहीं

मैंने पूर्व में श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में काफी कुछ लिखा। ऐसे विषय पर लिखते समय यथासम्भव कोशिश यही रही कि बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वयं को रखूं तथा साथ मेरी मंशा यही होती है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि हो।

05:41 AM Nov 28, 2019 IST | Ashwini Chopra

मैंने पूर्व में श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में काफी कुछ लिखा। ऐसे विषय पर लिखते समय यथासम्भव कोशिश यही रही कि बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वयं को रखूं तथा साथ मेरी मंशा यही होती है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि हो।

श्रीराम जन्मभूमि   शायद अब कोई विकल्प नहीं
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मैंने पूर्व में श्रीराम जन्मभूमि के संबंध में काफी कुछ लिखा। ऐसे विषय पर लिखते समय यथासम्भव कोशिश यही रही कि बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वयं को रखूं तथा साथ मेरी मंशा यही होती है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि हो। भारत जैसे राष्ट्र में गरिमामय यही होता कि श्रीराम मंदिर जन्मभूमि का हल आपस में मिल-बैठकर निकल आता। मैं यह भी मानता हूं कि 6 दिसम्बर, 1992 की जो घटना घटी वह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, परन्तु नियति ने जब हमें उस मुकाम पर लाकर खड़ा ही कर दिया था तो यह सारे भारतवासियों का फर्ज था कि परिस्थितियों को देखकर चलते।
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मैंने मुस्लिम बंधुओं से कई बार आग्रह ​​किया था कि यह अच्छा ही होता कि उस स्थल को मंदिर निर्माण के लिए देने को राजी हो जाते क्योंकि मस्जिदों और  मंदिरों के निर्माण स्थल तो बदले जा सकते हैं, जन्म स्थान कभी नहीं बदलते। अगर भारत के करोड़ों लोग उस स्थान को राम जन्मभूमि मानते हैं तो इस राष्ट्र के मुस्लिम बंधु इसके निर्माण में सहायक बनें, बाधक न बनें। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुना दिया है और देश भर में इस फैसले को खुले दिल से स्वीकार किया। हिन्दू और मुस्लिम संगठनों ने भी इस फैसले का स्वागत किया। श्रीराम मंदिर कई चुनावों में महत्वपूर्ण मुद्दा रहा, इस पर जमकर राजनीति भी हुई। हर बार नई तारीख फिक्स की जाती और फिर दूसरे चुनाव की तैयारी की जाती।
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राजनीति की वजह से हमने कई वर्ष गंवा दिए। मध्यस्थता की जब सारी कोशिशें बेकार हो गईं, देश ने राम मंदिर मुद्दे पर विशाल आंदोलन भी देखा, खून भी बहा। उसके बाद यही ​विकल्प बचा कि इस पर देश की सर्वोच्च अदालत अपना फैसला दे। अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्षकार पहले ही कह चुके थे कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उन्हें स्वीकार होगा। लोकतंत्र में न्यायिक फैसलों का कार्यान्वयन सरकार को करना होता है और अयोध्या फैसला आने के बाद समूचे राष्ट्र ने यह देख लिया कि कौन से लोग प्रजातंत्र के दोस्त हैं और कौन से दुश्मन। पूरे राष्ट्र ने जिस  सहजता से निर्णय को स्वीकार किया उससे भारत के लोकतंत्र को शक्ति मिली है।
भावावेश कहिए या सियासत  की मजबूरियां कुछ सनसनीखेज आवाजें जरूर उठीं, केवल दो-तीन लोगों ने ही अपनी जंग लड़ी और मुरझाई सोच को फिर से खाद-पानी देने का काम शुरू ​किया और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर कई सवाल किये। ऐसे लोगों की आवाजों को उनके अपने लोगों ने ही खारिज कर दिया। सुन्नी सैंट्रल वक्फ बोर्ड ने फैसला किया है कि वो बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का फैसला मानेगा और इसके खिलाफ कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। अयोध्या मामले पर लखनऊ में सुन्नी वक्फ बोर्ड की बैठक में यह फैसला लिया गया। बोर्ड के सात सदस्यों में से पांच ने पुनर्विचार याचिका दायर न करने पर सहमति दी जबकि केवल एक सदस्य इससे सहमत नहीं था।
पिछले हफ्ते आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड की भी बैठक हुई थी, उसमें इस बात का फैसला किया गया था कि बोर्ड रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि जितने भी मुस्लिम संगठन और पक्षकार हैं उनका शुरू से ही यही मानना था कि अदालत का जो भी फैसला होगा, उसे मुसलमान स्वीकार करेंगे, हम उसी स्टैंड पर आज भी कायम हैं। यहां तक 5 एकड़ जमीन लेने या नहीं लेने का मसला है, उस पर बाद में विचार किया जाएगा। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाव जिलानी और असदुद्दीन ओवैसी ही पुनर्विचार याचिका की रट लगाए बैठे हैं। इस मामले में 70 वर्षों से मुकदमा लड़ रहे इकबाल अंसारी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें अदालत का फैसला स्वीकार है और इसके साथ ही अयोध्या विवाद अब समाप्त हो चुका है।
अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी समेत देशभर की सौ जानी-मानी मुस्लिम शख्सियतों ने अयोध्या फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका का विरोध किया है। इनका मानना है कि पुनर्विचार याचिका दायर करने से विवाद ​जिंदा  रहेगा और मुस्लिम कौम को इसका नुक्सान होगा।वास्तव में जब तक हम भारत की समस्याओं को भारतीय बनकर नहीं देखते, भारत बनकर नहीं समझते और भारतीय बनकर उनका निदान नहीं करते, समस्याएं सुलझ नहीं सकतीं। हम हर बार हिन्दू आैर मुस्लिम हो जाते हैं और हिन्दुस्तान को भूल जाते हैं।
अब श्रीराम मंदिर के निर्माण में कोई बाधा नहीं खड़ी की जाए। धर्मगुरुओं ने बहुत भाषण दे दिए, बुद्धिजीवियों ने बहुत प्रयास कर लिए, उन्मादियों ने बहुत नारे लगा लिए । यह सब अतीत की बातें हैं, आज हमें अपने अतीत को भूल कर देश में साम्प्रदायिक सद्भाव कायम करने के लिए आगे बढ़ना होगा। बेहतर यही होगा कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ए हिन्दू (अरशद मदनी गुट) कोई पुनर्विचार याचिका नहीं दायर करें। मुस्लिम समाज 5 एकड़ भूमि लेकर मस्जिद, स्कूल, अस्पताल बनाएं ताकि भावी पीढ़ी को एक अच्छा माहौल मिले, इससे मुस्लिम समाज का सम्मान ही बढ़ेगा। इसके अलावा अब कोई और विकल्प नहीं बचा है।
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Ashwini Chopra

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