For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन

03:35 AM Jan 23, 2024 IST | Aditya Chopra
श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन

राम की शक्ति पूजा जैसा कालजयी काव्य लिखने वाले हिन्दी के महाकवि ‘महाप्राण निराला’ जब अति विसाद में होते थे तो अपना हारमोनियम लेकर गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस का राम स्तुति का यह छन्द गाकर अपने मन को शान्त किया करते थे- ‘श्रीराम चन्द्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्’। निराला का यह विवरण हिन्दी के प्रख्यात विद्वान डा. राम विलास शर्मा ने अपनी दो खंडों में लिखी पुस्तक ‘निराला की साहित्य साधना’ में लिखकर मानों सचित्र निराला को जीवन्त कर दिया। आज अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में यह छन्द भी शास्त्रीय विधा में गाया गया। निराला ने ‘राम-रावण’ युद्ध का वर्णन अपनी ‘राम की शक्ति पूजा’ काव्य रचना में करते हुए राम के मानवातार की सभी परिशुद्धियों को रेखांकित किया है और बताया है कि महाबली वैभवशाली रावण का वध राम द्वारा करना कोई सरल कार्य नहीं था। राम ने उसका वध करने के लिए सर्वप्रथम सभी दैवीय शक्तियों का आह्वान करके स्वयं को शुद्धता से परिपूर्ण किया तब जाकर उन्हें सफलता मिल पाई। यह संयोग नहीं है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राम राज की परिकल्पना को लोगों को दिया और इस गान को स्वतन्त्रता प्रेमियों का राष्ट्रगान बना दिया।
रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान
गांधी का मन्तव्य भारत की विविधता को राम के करुणामयी स्वरूप में समेट कर सभी धर्मों के लोगों के बीच प्रेम बांटने का था। अतः भारत के लिए राम केवल प्रेम व करुणा के ही प्रतीक हो सकते हैं और जनशक्ति के भरोसे रावण के अपार महिमायुक्त साम्राज्य के विनाशक हो सकते हैं। केवल वानरों व भालुओं (प्रतीक स्वरूप) आम आदिवासियों व सामान्य नागरिकों के भरोसे उन्होंने रावण की शस्त्र सुसज्जित सेना को पराजित करके यही सिद्ध किया कि जन शक्ति के समक्ष सभी शक्तियां नाकारा होती हैं। राम राज्य के लोकतान्त्रिक स्वरूप का यह अनूठा व अप्रतिम अध्याय है। निश्चित रूप से गांधी राम के इस चरित्र से प्रभावित रहे होंगे और उन्हें भारत की सांस्कृतिक पहचान मानते रहे होंगे। राम का शाब्दिक अर्थ भी चुकि ‘आनन्द’ ही होता है अतः भारत में इस शब्द के लोक व्यवहार में आने का निहितार्थ केवल राम का साकार स्वरूप नहीं हो सकता क्योंकि कबीर से लेकर रैदास व नामदेव तक ने जिस भक्तिभाव से राम का स्मरण किया वह लौकिक राम से परे अलौकिक राम की गाथा ज्यादा है जिसका वर्णन हमें गुरु ग्रन्थ साहिब में भी मिलता है। नामदेव तो साकार भक्ति में भी अलौकिकता का साक्षात पर्याय माने गये क्योंकि उनकी जन्म जाति कथित रूप से नीची होने की वजह से जब कर्मकांडी व पोंगा पंडितों ने उन्हें मन्दिर में भक्ति करते हुए उठा कर धक्के मारकर बाहर कर दिया तो वह मन्दिर के पिछवाड़े ही जाकर हरि गुण गाने लगे और तब मन्दिर का मुख्य द्वार उन्हीं की तरफ घूम गया। इसका वर्णन स्वयं नामदेव जी ने ही अपनी एक रचना में इस प्रकार किया-
ज्यों–ज्यो नामा हरिगुन उचरै
भगत जना को देहरा फिरै
हंसत खेलत तेरे द्वारे आया
भगत करति नामा पकरि उठाय
कहने का मतलब यह है कि भारत में राम नाम पर किसी भी एक वर्ग या विशेष धार्मिक समुदाय का कभी भी एकाधिकार नहीं रहा है और राम समूची मानव जाति के लिए प्रेम व वात्सल्य के स्वरूप रहे हैं। उनके बालपन का वर्णन गोस्वामी तुलसी दास ने जिस वात्सल्य भाव से किया है वह लोक व्यवहार की जन अनुभूति के अलावा औऱ कुछ नहीं है।
ठुमक चलत राम चन्द्र बाजत पैजनियां
निर्गुण राम के उपासकों के लिए वह ‘न्याय के धनुर्धर’ की भूमिका में रहते हैं। अतः सिखों के दूसरे गुरु रामदास जी महाराज उनका स्मरण समस्त मानवीय पापों के निवारणार्थ करते हैं और मनुष्य जाति को पाप रहित बनाने की कामना करते हैं। वह कहते हैं,
मेरे राम इह नीच करम हर मेरे
गुणवन्ता हर-हर दयाल, कर कृपा
बखश अवगुण सब मेरे
इस प्रकार राम जो आनन्द के पर्याय हैं भारत के कण-कण में हर धर्म के लोगों के बीच सौहार्द व प्रेम को बढ़ाने के उत्प्रेरक रहे हैं। उनके नाम पर किसी के प्रति घृणा फैलाना राम द्रोही होना ही कहलाया जा सकता है। निराला, तुलसी, गांधी व गुरु रामदास सहित सभी के राम केवल करुणा व प्रेम के दीपक ही हैं। उनकी आराधना में जला हर दीपक प्रेम का दीपक ही है।

Advertisement
Advertisement
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×