W3Schools
For the best experience, open
https://m.punjabkesari.com
on your mobile browser.
Advertisement

सिमटता लाल गलियारा

भारत में लाल आतंक यानि नक्सलवाद ने काफी खून बहाया है। नेपाल की राजधानी काठमांडो स्थित पशुपतिनाथ से दक्षिण भारत के तिरुपति तक नक्सलवादियों ने रेड कोरिडोर या लाल गलियारा स्थापित कर लिया था।

12:51 AM Dec 19, 2022 IST | Aditya Chopra

भारत में लाल आतंक यानि नक्सलवाद ने काफी खून बहाया है। नेपाल की राजधानी काठमांडो स्थित पशुपतिनाथ से दक्षिण भारत के तिरुपति तक नक्सलवादियों ने रेड कोरिडोर या लाल गलियारा स्थापित कर लिया था।

सिमटता लाल गलियारा
भारत में लाल आतंक यानि नक्सलवाद ने काफी खून बहाया है। नेपाल की राजधानी काठमांडो स्थित पशुपतिनाथ से दक्षिण भारत के तिरुपति तक नक्सलवादियों ने रेड कोरिडोर या लाल गलियारा स्थापित कर लिया था। यह लाल गलियारा देश के मध्यपूर्वी और दक्षिण भारत को ज्यादा प्रभावित कर रहा था लेकिन अब लाल गलियारा सिमटता ही जा रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोलकाता में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में कहा है कि पूर्वी क्षेत्र में नक्सलवाद लगभग खत्म हो गया है और नक्लसवाद इन राज्यों में फिर से उभरना नहीं चाहिए। गृह मंत्री ने नक्सलवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से नक्सलवाद के उन्मूलन को लेकर दशकों तक देश के विकास की धारा में बाधक बने नक्सलवाद का खात्मा राहत देने वाली बात है। भारत में नक्सलवाद की शुरूआत 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिले के नक्सलवाड़ी नामक गांव से हुई थी, इसलिए इस आंदोलन को नक्सलवाद के नाम से जाना जाता है। जमीदारों द्वारा छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के ​लिए सत्ता के खिलाफ चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चैटर्जी द्वारा शुरू किए गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया। यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुयाई था और आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें नक्सली हिंसा को मुख्यता कानून व्यवस्था की समस्या मानती रही लेकिन इसके मूल में गम्भीर सामाजिक और आर्थिक कारण भी रहे।
Advertisement
वामपंथी उग्रवादी विचाराधारा से प्रभावित होकर की जाने वाली नक्सली और माओवादी हिंसक गतिविधियां भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके साथ ही ये विकास के काम में भी रोड़ा अटकाते रहे हैं। शासन तंत्र, पूंजीपति और उद्योगपतियों को संदेह की नजर से देखने वाले नक्सली और माओवादी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के खिलाफ अपनी समानांतर सरकार चलाने में विश्वास रखते हैं। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिले जो पहले से बुनियादी सुविधाओं का अभाव झेल रहे थे, उग्रवाद की वजह से वे ​और पिछड़ गए क्योंकि उग्रवादी अपनी सत्ता चलाने के लिए वहां विकास में रोड़ा अटकाते रहे हैं। ये अलग बात है कि आदिवासी एवं जनजातीय समुदाय के लोगों को उग्रवादी यही कहकर भड़काते रहे हैं कि यहां विकास नहीं हुआ, इसीलिए हम सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें आप हमें साथ दो।
नक्सली बंदूकों के बल पर सत्ता परिवर्तन की साजिशें रचते रहे हैं और एक के बाद एक बड़े नरसंहार करते रहे हैं। पूर्व की केन्द्र सरकारों ने आदिवासियों एवं जनजातीय समुदायों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार छीने और उनकी कभी कोई सुध नहीं ली, जिसके फलस्वरूप नक्सलवाद पनपता ही चला गया। नक्सलवाद प्रभावित अधिकतर इलाके आदिवासी बहुल रहे और यहां जीवन यापन की बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं रहीं। इन इलाकों की प्राकृतिक सम्पदा के दोहन में सार्वजनिक एवं ​निजी क्षेेत्र की कम्पनियों ने कोई कमी नहीं छोड़ी। यहां न सड़कें थीं न पीने के पानी की व्यवस्था, न शिक्षा और न मेडिकल सुविधाएं और न ही रोजगार के अवसर। नक्सलवादियों के मजबूत होने के पीछे स्थानीय स्तर पर मिलने वाला समर्थन भी रहा।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने समन्वय स्थापित कर नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कई नीतियों की घोषणा की तो दूसरी तरफ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की बयार बहाना शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप पिछले दस वर्षों की तुलना में नक्सलवाद बैकफुट पर आ गया है और धीरे-धीरे सिमटते हुए अब यह 30 जिलों में ही रह गया है। यह जिले बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के अन्तर्गत आते हैं। तेलंगाना में भी नक्सलवाद प्रभावहीन माना जाता है। राज्य सरकारों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क सम्पर्क परियोजना, कौशल विकास परियोजना, शिक्षा संबंधी पहल और बैंकिंग सुविधाएं शुरू कीं और विशेष केन्द्रीय सहायता से आम जनता और सेवाओं के बीच खाई को खत्म करने के लिए अनेक कदम उठाए। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए भी अनेक योजनाएं चलाई गईं और उन्हें मुख्यधारा में वापिस लाने के भरसक प्रयास किए गए। यद्यपि नक्सलियों से निपटने के लिए बंदूकों के इस्तेमाल को लेकर मतभेद भी रहे क्योंकि नक्सली अपने ही देश के नागरिक हैं। जहां-जहां विकास परियोजनाएं शुरू की गईं वहां-वहां नक्सलवाद कम होता गया। सरकारों ने वंचित समाज को यह संदेश दिया कि सरकारें उनके हितों की हितैषी हैं। माओवादियों के थिंक टैंक और प्रथम पंक्ति के नेता या तो मारे जा चुके हैं या फिर इस विचारधारा को छोड़ चुके हैं। इसके चलते नक्सली हिंसा की घटनाएं लगातार कम होती जा रही हैं। गृह मंत्री अमित शाह न केवल नक्सलवाद बल्कि पूर्वोत्तर भारत में विद्रोही गतिविधियों को खत्म करने में गम्भीरता से लगे हुए हैं। भारत का नक्सलमुक्त होना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की एक बड़ी उपल​ब्धि माना जाएगा।
Advertisement
Advertisement W3Schools
Author Image

Aditya Chopra

View all posts

Aditya Chopra is well known for his phenomenal viral articles.

Advertisement
×