Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

तमिल में हस्ताक्षर का सवाल

त्रिभाषा फार्मूले पर तमिलनाडु में फिर से विवाद…

11:30 AM Apr 07, 2025 IST | Aditya Chopra

त्रिभाषा फार्मूले पर तमिलनाडु में फिर से विवाद…

भारत के संविधान में क्षेत्रीय गौरव व अस्मिता को इस प्रकार संरक्षित किया गया है कि प्रत्येक राज्य अपनी संस्कृति को अक्षुण्य रख सके और राष्ट्रीय एकता को आत्मसात कर सके। आजादी के बाद संविधान लागू किये हुए 75 वर्ष हो चुके हैं और इस काल के दौरान हमारा संविधान राष्ट्रीय अखंडता का मार्गदर्शक रहा है। भारत में प्रत्येक राज्य को कुछ विशेषाधिकार भी दिये गये हैं जिनमें कानून-व्यवस्था व कृषि सबसे प्रमुख हैं। इसके साथ ही राज्यों को अपनी-अपनी भाषाओं की तरक्की के लिए आवश्यक कदम उठाने की भी इजाजत दी गई है। राष्ट्रीय अखंडता के बीच क्षेत्रीय स्वायत्तता का अनूठा उदाहरण भी भारत का संविधान ही है जिसमें केन्द्र सरकार के पास सभी अधिकार सुरक्षित रहते हैं जिससे राष्ट्र एक धागे में बंधा रह सके। आजादी के बाद से भारत में एक राष्ट्रीय भाषा की समस्या रही है परन्तु इसे राजभाषा अधिनियम के माध्यम से सुलझा लिया गया और हिन्दी व अंग्रेजी दोनों को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

इसके साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं के मामले में राज्यों को पूरे अधिकार दिये गये। इसके बावजूद पूरे देश में त्रिभाषा फार्मूला लागू किया जिसके अन्तर्गत मातृ भाषा, क्षेत्रीय भाषा व हिन्दी या अंग्रेजी में से एक को चुनने की छूट दी गई। यह फार्मूला तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के जमाने में 1968 में आया जिसका विरोध दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में हुआ था। हालांकि इसका मुख्य विरोध हिन्दी को 1965 में राजभाषा का दर्जा दिये जाने से था मगर इस राज्य ने त्रिभाषा फार्मूले का भी विरोध किया था। तमिलनाडु में हिन्दी को थोपने का आरोप लगाकर इस फार्मूले का विरोध हुआ था। इसकी देखा-देखी उस समय कुछ अन्य अहिन्दी भाषी राज्यों ने भी सुर में सुर मिला लिया था जबकि उत्तर भारत के राज्यों में अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन चल रहा था। इन दो विपरीत दिशाओं को साधने के लिए ही त्रिभाषा फार्मूला आया था जिसे वर्तमान की मोदी सरकार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अंग बनाया है।

इस फार्मूले के तहत राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए हर जरूरी कदम उठा सकते हैं। मगर हमें इससे पहले यह सोचना होगा कि भारत आज पूरे विश्व में कम्प्यूटर क्षेत्र के साफ्टवेयर उद्योग का अग्रणी देश है। इसकी युवा पीढ़ी ने अपने अंग्रेजी ज्ञान के बूते पर ही यह रुतबा पाया है। फिर भी उत्तर भारत के राज्यों में उच्चतर शिक्षा हिन्दी में देने के प्रावधान किये जा रहे हैं जिनमें मध्य प्रदेश सबसे आगे है। यहां सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इंजीनियरिंग व मेडिकल की उच्च शिक्षा हिन्दी माध्यम में देने से क्या हम नई पीढ़ी के साथ कहीं अन्याय तो नहीं कर रहे और उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़े युवाओं से पीछे तो नहीं धकेल रहे। आज भारत में जो शिक्षा ढांचा है उसमें इंजीनिरिग व मेडिकल जैसी उच्च शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से होने की वजह से इन छात्रों के लिए पूरे विश्व के दरवाजे खुले रहते हैं। इसके साथ यह भी देखना होगा कि क्या इन विषयों में उच्च पढ़ाई की पूरी क्षमता है। विश्व के अर्ध विकसित व विकासशील देशों के अलावा विकसित राष्ट्रों तक में भारत के इंजीनियरों व डाक्टरों की अच्छी मांग है। यह सब अंग्रेजी ज्ञान की वजह से ही है क्योंकि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सम्पर्क भाषा है।

मगर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम अपने क्षेत्रीय गौरव व अस्मिता को तिलांजली दे दें। अतः जब हम किसी क्षेत्रीय उप-राष्ट्रवाद की बात करते हैं तो भाषा का प्रश्न सबसे पहले आकर खड़ा होता है। हम बेशक अंग्रेजी में पढ़ाई-लिखाई कर सकते हैं मगर मूलतः भारतीय होने के साथ एक पंजाबी या बंगाली अथवा तमिल भी होते हैं। अतः भारत के क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के लिए अपने क्षेत्र या राज्य की भलाई सोचना मुख्य होता है। मगर तमिलनाडु में जिस प्रकार नई शिक्षा नीति का विरोध हो रहा है उसके मुकाबले में क्षेत्रीय गौरव का तमिल अस्मिता प्रश्न खड़ा किया जा रहा है और हिन्दी का विरोध किया जा रहा है। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी का तमिल नेताओं से यह प्रश्न पूछना पूरी तरह जायज है कि वे अपने हस्ताक्षर तमिल में क्यों नहीं करते।

इस राज्य के मुख्यमन्त्री श्री एम.के. स्टालिन केन्द्र पर आरोप लगा रहे हैं कि वह उनके राज्य पर त्रिभाषा फार्मले के नाम पर हिन्दी थोपना चाहते हैं परन्तु श्री मोदी ने पूछ लिया है कि उनके राज्य के जब प्रमुख मान्य नेतागण अपने हस्ताक्षर तमिल तक में नहीं करते तो उनका तमिल अस्मिता का सहारा लेना कहां तक उचित है। श्री मोदी ने तमिलनाडु के अपने दौरे में यह भी पूछा है कि तमिलनाडु में मेडिकल की पढ़ाई तमिल भाषा में क्यों नहीं शुरू की गई? इस मामले में विचार वैविध्य हो सकता है परन्तु यह सवाल स्थानीय युवा पीढ़ी की मेधा से जुड़ा हुआ है। जरूरी नहीं कि प्रत्येक युवा अपने परिवार की आर्थिक हालत देखते हुए अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाई करे। वह तमिल माध्यम से पढ़ाई करने के बावजूद मेधावी छात्र हो सकता है। उसकी कुशाग्रता का लाभ उसके राज्य को मिलना चाहिए इसलिए स्थानीय स्तर पर अगर हम अपने युवाओं को इंजीनियर या डाक्टर बनाना चाहते हैं तो तमिल माध्यम से उच्च शिक्षा की व्यवस्था होने से राज्य के लोगों को ही लाभ मिलेगा।

Advertisement
Advertisement
Next Article