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कांग्रेस और आप के समझौते से सिख दुविधा में

02:06 AM Feb 29, 2024 IST | Shera Rajput
कांग्रेस और आप के समझौते से सिख दुविधा में

आजादी के बाद से देशभर में सिख समुदाय के ज्यादातर लोग कांग्रेस पार्टी को ही वोट देते आए। मगर 1984 में देशभर में सिख विरोधी दंगों को लेकर सिख समुदाय का कांग्रेस से पूरी तरह से मोहभंग हो गया जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला और दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों में सिख समुदाय का एकतरफा वोट उसे मिला। दिल्ली में भाजपा की सरकार आने पर मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री भी इसी सोच के साथ बनाया गया था क्यांेकि उनकी पंजाबी और सिखों में अच्छी पकड़ थी। मदन लाल खुराना को साइड लाइन करनेे के बाद भाजपा हाईकमान द्वारा सिखों को भी वह सम्मान नहीं दिया जा रहा था जिसके वह हकदार थे। इसी के चलते अरविंद केजरीवाल के द्वारा जब आम आदमी पार्टी का गठन किया गया तो सिखों को उम्मीद की एक किरण दिखाई दी जिस पर विश्वास कर उन्होंने पूर्ण समर्थन उनकी पार्टी को दिया और दिल्ली में आप की सरकार बनी। पंजाब में भी 6 सांसद आप के चुनकर आए। दिल्ली में तीन विधायक पहली बार सिख चुनकर आए। पंजाब में आप की पूर्ण बहुमत से सरकार बनवाई गई क्योंकि सिख अकाली दल और कांग्रेस का विकल्प चाहते थे जो उन्हें आप पार्टी में दिखाई दे रहा था।
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस और आप में हुए समझौते से सिख समुदाय एक बार फिर से दुविधा में पड़ गया है। भाजपा से जुड़े सिख नेता डा. गुरमीत सिंह सूरा का कहना है कि जिस पार्टी के नेताओं के द्वारा दिल्ली में सिखों का नरसंहार किया हो, उसे सिख चाहकर भी वोट नहीं दे सकता। अब फैसला सिखों को करना होगा कि एक ओर वह पार्टी है जिसके द्वारा सिखों को देशभर में सम्मान दिया गया। साहिबजादों की शहादत का इतिहास घर-घर तक पहुंचाया, करतारपुर कारीडोर खुलवाकर सिखों की लम्बे समय से लटकती आ रही मांग को पूरा करवाया, सिखों के वोट की हकदार वह पार्टी है या कोई और पार्टी । वहीं आप और कांग्रेस में समझौते को आप के पंजाब प्रभारी और तिलक नगर से विधायक समय की जरुरत बता रहे हैं। उनकी मानें तो देश से भाजपा को बाहर करना बेहद जरुरी हो गया है जिसके चलते ऐसा फैसला लिया गया है। जरनैल सिंह का कहना है कि केन्द्र में पिछले 10 सालों से भाजपा की सरकार है, कातिलों को सजा दिलाना तो दूर उल्टा कातिलों का बचाव किया जा रहा है। एसआईटी की रिपोर्ट आने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। जगदीश टाईटलर की सुरक्षा आज तक क्यों वापिस नहीं ली गई। उधर कांग्रेस पार्टी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अरविन्दर सिंह लवली जो कि स्वयं सिख समुदाय से तालुक रखते हैं, उनका मानना है कि आज तक सिखों को प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृहमंत्री सहित जितने भी उच्च पद मिले हैं कांग्रेस पार्टी के द्वारा ही दिये गये। वह स्वयं 3 बार दिल्ली सरकार में मंत्री रहे। मौजूदा समय में देश की राजधानी की कमान संभाले हुए हैं ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि कांग्रेस पार्टी सिखों का सम्मान करती है।
राजनीतिक पार्टियों में सिख नुमाईंदे
देश की आजादी से लेकर आज तक सिखों के मसले हल क्यांे नहीं हुए इसका मुख्य कारण शायद यह है कि सिखों के द्वारा चुनकर भेजे जाने वाले नुमाईंदे कौम से ज्यादा अपने और परिवार को लाभ देते आए हैं। जब वह सत्ता का सुख भोग रहे होते हैं तो उन्हें कौम की याद तक नहीं आती और सत्ता जाते ही कौमी मसलों पर गंभीरता दिखानी शुरु कर देते हैं। राजनीतिक पार्टियों को भी ऐसे लोग बेहद पसन्द आते हैं, जो कौम को हमेशा दुविधा में रखें। पार्टी के द्वारा अन्जाने में ही सही गलतियां भी हो जाती हैं क्योंकि वह सिखों की धार्मिक मर्यादा से अनजान होते हैं, ऐसे में कौमी नेताओं का फर्ज बनता है कि वह पार्टी हाईकमान को उनकी गलती का अहसास करवाएं पर वह तो हाईकमान की जी हजूरी कर स्वयं की वफादारी साबित करने में लगे रहते हैं जिसका नुकसान अंततः पार्टियों को ही होता है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में एक पार्टी के कुछ वर्करों के द्वारा एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पर अभद्र टिप्पणी का मामला सामने आया जिसके बाद उस पार्टी के तकरीबन सभी सिख नेताओं ने पुलिस अधिकारी की कार्यशैली पर सवाल उठाए। शायद अकेले कुलवंत सिंह बाठ ऐसे थे जिन्होंने इसका खुलकर विरोध किया और दोषियों के खिलाफ हाईकमान को एक्शन लेने की मांग भी की। वास्तव में सिख नेताओं को राजनीतिक पार्टियों का हिस्सा बनने का लाभ तभी है अगर वह सिखों की मांगों को उठा सकें।
दिल्ली से नांदेड़ के लिए सीधी उड़ान
सिखों के पांच तख्तों में से एक तख्त सचखण्ड हजूर साहिब नांदेड़ है जहां से गुरु गोबिन्द सिंह जी घोड़े सहित अलोप हो गये थे और महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा उस स्थान की पहचान कर वहां पर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित करवाया गया था। इस स्थान के दर्शन करने की हर सिख की अभिलाषा रहती है। पंजाब और दिल्ली से कोई भी सीधी उड़ान ना होने के कारण ज्यादातर श्रद्धालू दर्शनों से वंचित ही रह जाते क्योंकि रेलमार्ग से जाने में 30 घण्टों से भी अधिक का समय लगता है।
इसी को ध्यान में रखते हुए तख्त हजूर साहिब कमेटी के चेयरमैन डा. विजय सतबीर सिंह व उनकी टीम ने प्रयास करके उड़न मंत्रालय से हजूर साहिब के नांदेड़ हवाई अड्डे का लाईसेंस पुनः पंजीकृत करवाने में सफलता हासिल की है जिसके चलते अब नांदेड़ से हवाई उड़ान शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। आने वाले मार्च महीने में पंजाब के आदमपुर से हिन्डन गाजियाबाद होते हुए नांदेड़ के लिए स्टार एयरलाइंस ने उड़ान शुरू करने का ऐलान कर दिया है जिसकी जानकारी डा. विजय सतबीर सिंह के द्वारा दी गई है। यह उड़ान रोजाना आदमपुर से नांदेड़ के लिए उड़ान भरेगी। इसका लाभ पंजाब, दिल्ली ही नहीं बल्कि विदेशों से आने वाले श्रद्धलुओं को भी मिलेगा।
मातृ भाषा लिखी शाल का चलन
देशवासियों के द्वारा मातृ भाषा दिवस को हर साल बढ़ चढ़ कर मनाया जाता है। कई तरह के कार्यक्रम किये जाते हैं पर इसका लाभ क्या है। आज तक कितने लोगों को मातृ भाषा के साथ जोड़ा जा सका। पंजाबी लिखना पढ़ना तो दूर बोलने वालों की गिनती भी दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। शादी पार्टियों में नाच तो पंजाबी गानों पर किया जाता है पर ज्यादातर पंजाबी लोग अंग्रेजी या फिर हिन्दी भाषा को बातचीत में प्रयोग करने लगे हैं। बचपन में बच्चे को मातृ भाषा से जुड़ना चाहिए, अंग्रेजी तो वह स्कूल में भी सीख सकते हैं, मगर परिवार वालों के द्वारा बच्चांे के साथ अंग्रेजी में बात की जाती है। इसी के चलते आजकल मातृ भाषा लिखी शाल का चलन देखा जा रहा है। पंजाबी परमोशन काउंसिल के अध्यक्ष जसवंत सिंह बोबी के द्वारा इसे तैयार करवाकर विशिष्ठ लोगों को भेंट किया गया। अब तो तकरीबन हर पंजाबी संस्था इसके माध्यम से मातृ भाषा का प्रचार करते दिखाई दे रही है। इसका एक लाभ तो अवश्य है कि शाल पर लिखी भाषा को देखकर बच्चों में इसे सीखने की रुचि जरुर पैदा होगी। दिल्ली कमेटी की पंजाबी प्रसार के मुखी हरदित सिंह गोविन्दपुरी और राजिन्दर सिंह के द्वारा भी इन शालों के माध्यम से पंजाबी का प्रसार किया जा रहा है।

- सुदीप सिंह

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