मुट्ठी में आसमान...
यह वो दौर नहीं रहा जब हम कहते थे कि “आसमान ही सीमा है”। ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद अब इस परिभाषा को ही बदल दिया गया है। दरअसल, उन्होंने खुद इसे नए सिरे से गढ़ा, अब “आसमान सीमा नहीं है”। शुक्ला अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय बने हैं, राकेश शर्मा के 41 साल बाद। उन्होंने उस विशेष अंतरिक्ष केंद्र में कदम रखने वाले पहले भारतीय होने का गौरव भी हासिल किया है।
भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर राकेश शर्मा मात्र 35 वर्ष के थे जब उन्हें 1982 में सोवियत मिशन ‘सोयुज़ T-11’ का हिस्सा बनने का अवसर मिला। शर्मा के इस मिशन के एक साल बाद जन्मे शुभांशु शुक्ला के लिए वे शुरू से ही एक प्रेरणा बन गए। शुरुआत में यह स्पष्ट नहीं था कि क्या वे भी अपने आदर्श की तरह अंतरिक्ष की उड़ान भर पाएंगे लेकिन उन्होंने राकेश शर्मा के नक्शे-कदम पर चलते हुए पहले एक परीक्षण पायलट बनने का फैसला किया।
2019 में जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने वायुसेना के परीक्षण पायलटों से मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए आवेदन मांगे तो शुक्ला को तीन अन्य पायलटों के साथ बहुप्रतीक्षित गगनयान मिशन के लिए चुना गया। इसरो तब भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन पर काम कर रहा था। इस चार वर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के बीच में ही, Axiom-4 मिशन का अवसर सामने आया और शुक्ला को विशेष रूप से इसके लिए चुना गया। शुक्ला का मिशन राकेश शर्मा के मिशन की पुनरावृत्ति नहीं है। यह उस दौर में हो रहा है जब भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम नई ऊंचाइयों को छू रहा है, भारत चंद्रमा पर पहुंच चुका है और अगले दशक में अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने की योजना में है।
साथ ही, मानव को चंद्रमा पर उतारने और शुक्र तथा मंगल जैसे ग्रहों की खोज के मिशनों पर भी काम जारी है। यह मिशन न केवल समय, बल्कि उद्देश्य, तकनीक और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रभाव के लिहाज़ से भी अलग है। राकेश शर्मा का मिशन एक सोवियत नेतृत्व वाला, राजनयिक सद्भाव का प्रतीक था, जिसका तत्काल तकनीकी लाभ भारत को सीमित रूप में मिला। वहीं शुभांशु शुक्ला का मिशन एक वाणिज्यिक समझौते का हिस्सा है।
दोनों भारतीय अंतरिक्ष यात्री भारतीय वायुसेना से फाइटर पायलट और टेस्ट पायलट रहे हैं। शर्मा जहां सोवियत मिशन में एक अनुसंधान अंतरिक्ष यात्री के रूप में शामिल थे, वहीं शुक्ला अमेरिकी मिशन के यान के पायलट नामित किए गए हैं। दोनों ने अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कठोर चयन और प्रशिक्षण प्रक्रियाएं पूरी कीं। शर्मा का मिशन भारत-सोवियत साझेदारी की उपज था- एक सद्भावना मिशन, जो वैज्ञानिक आदान-प्रदान और मित्रता का प्रतीक था। उन्होंने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन सैल्यूट 7 पर करीब 8 दिन बिताए और मुख्यतः बायोमेडिसिन और रिमोट सेंसिंग पर 43 प्रयोग किए। शुक्ला का मिशन सरकारी समझौते के तहत नहीं, बल्कि अमेरिका की निजी कंपनी Axiom Space के संचालन में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की यात्रा है।
भारत ने इसमें व्यावसायिक रूप से अपनी सीट सुरक्षित की है। शुक्ला इस मिशन में दो सप्ताह बिताएंगे और लगभग 60 प्रयोग करेंगे, जिनमें कम से कम 7 इसरो द्वारा डिज़ाइन किए गए हैं। शर्मा ने शीत युद्ध के दौर में सोवियत अंतरिक्ष रॉकेट से दो रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उड़ान भरी थी, जब भारत-रूस के रक्षा संबंध, विशेषकर वायुसेना में, अपने चरम पर थे- मिग फाइटर, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हैलिकॉप्टर्स की तत्कालीन खरीद इसका उदाहरण थी। जहां तक लॉन्च व्हीकल्स की बात है, फाल्कन-9 तकनीकी रूप से कहीं अधिक उन्नत है। यह भारी भार उठा सकता है और इसका पहला चरण दोबारा उपयोग किया जा सकता है। सोयुज़ रॉकेट पूरी तरह से निष्प्रयोज्य था और 1973 में इसकी पहली उड़ान हुई थी, जबकि फाल्कन-9 का पहला लॉन्च 2010 में हुआ। शर्मा और उनके साथी अंतरिक्ष यात्रियों ने दो अलग-अलग क्रू कैप्सूल -T-11 और T-10 का इस्तेमाल किया था, जबकि शुक्ला और उनकी टीम Dragon C-213 यान से ही अंतरिक्ष जाने और लौटने वाले हैं।
ऑर्बिटल ऊंचाई भी काफी अलग है। सैल्यूट 7 पृथ्वी से 219–278 कि.मी. की ऊंचाई पर था, जबकि ISS लगभग 400 कि.मी. की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है। सैल्यूट का मिशन 9 साल चला और 1991 में समाप्त हुआ। जहां शर्मा के प्रयोग मुख्यतः जैव चिकित्सा और रिमोट सेंसिंग से जुड़े थे, वहीं शुक्ला का कार्यक्षेत्र और व्यापक है, जैसे अंतरिक्ष में माइक्रो-ग्रैविटी में स्क्रीन का मानसिक और शारीरिक प्रभाव, मांसपेशियों के क्षय के कारण और उपचार, बीजों की अंकुरण प्रक्रिया पर अंतरिक्ष के प्रभाव आदि।
1984 में जब शर्मा गए थे, तब भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी प्रारंभिक अवस्था में था लेकिन आज इसरो विश्व में अग्रणी है, इसने चंद्रमा तक यान पहुंचाया है, सूर्य के पास मिशन भेजे हैं, मंगल और शुक्र की खोज की योजना बनाई है और मानव अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में कार्य कर रहा है। भारत के पास आज एक स्वतंत्र सैटेलाइट नेटवर्क है जो संचार, शोध और भू-सर्वेक्षण में प्रयोग होता है और भावनात्मक दृष्टि से, शुक्ला की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अंतरिक्ष से हुई 18 मिनट लंबी बातचीत एक ऐतिहासिक क्षण बन गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातचीत के दौरान कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे लेकिन एक बेहद खास सवाल था- अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?
शुक्ला ने कहा-जब हमने पहली बार भारत को अंतरिक्ष से देखा तो वह वास्तव में बहुत भव्य और विशाल लगा। मानचित्र में जो सीमित लगता है, वह अंतरिक्ष से कहीं बड़ा दिखता है।
श्री मोदी ने कहा कि अब गगनयान मिशन को आगे बढ़ाने, भारत का अपना स्पेस स्टेशन बनाने और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारने की जिम्मेदारी शुक्ल जैसे युवाओं की है। प्रधानमंत्री खुद भी पूरी तैयारी के साथ आए थे। उन्हें पता था कि शुक्ला गाजर का हलवा लेकर गए हैं। उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा क्या हलवा साथियों के साथ बांटा? शुक्ला ने हंसते हुए कहा, “हां, हलवा तो बांटा ही, साथ में आमरस और कुछ भारतीय मिठाइयां भी ले गया था, जिनका सभी ने स्वाद लिया।” उन्होंने यह भी कहा कि नींद की चुनौती जरूर थी लेकिन हर पल एक नया अनुभव था और सीखने को बहुत कुछ मिला। इस पूरे संवाद ने देशभर के लोगों को टेलीविजन स्क्रीन से जोड़े रखा।