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धूम्रपान से बढ़ रहा कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा, जानें कैसे

कोलोरेक्टल कैंसर: धूम्रपान और अनियमित जीवनशैली के कारण

09:21 AM Mar 31, 2025 IST | IANS

कोलोरेक्टल कैंसर: धूम्रपान और अनियमित जीवनशैली के कारण

धूम्रपान और अनियमित जीवनशैली कोलोरेक्टल कैंसर के मुख्य कारण बन रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सिगरेट के धुएं में मौजूद जहरीले तत्व डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं और कोशिकाओं को कैंसर की ओर ले जाते हैं। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और समय पर स्क्रीनिंग से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च हर साल मार्च महीने में ‘कोलोरेक्टल कैंसर जागरूकता माह’ मनाता है। इसके तहत लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में जागरूक किया जाता है। उन्हें बताया जाता है कि इसके शुरुआती लक्षण क्या हो सकते हैं और इसके लक्षण दिखने पर फौरन क्या कदम उठाना चाहिए।

आईएएनएस ने इस बीमारी के बारे में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. (प्रो.) अमित जावेद और सी.के. बिरला अस्पताल के डॉ. नीरज गोयल से खास बातचीत की।

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दोनों ही विशेषज्ञों का कहना है कि धूम्रपान और अनियमित जीवनशैली कोलोरेक्टल कैंसर का बड़ा कारण बन रही है। डॉ. गोयल ने बताया कि सिगरेट के धुएं में 70 से ज्यादा ऐसे जहरीले तत्व होते हैं, जो डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं और कोशिकाओं को कैंसर की ओर ले जाते हैं। धूम्रपान से शरीर में सूजन और तनाव बढ़ता है, जिससे ट्यूमर बनने का खतरा 18-30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जितना ज्यादा और लंबे समय तक धूम्रपान करें, खतरा उतना ही बढ़ता है। धूम्रपान छोड़ने के बाद भी यह जोखिम कई साल तक बना रहता है।

डॉ. जावेद ने कहा कि खराब खान-पान भी इस बीमारी को न्योता देता है। कम फाइबर, ज्यादा रेड मीट, प्रोसेस्ड फूड और शराब का सेवन इसके खतरे को कई गुना बढ़ा देता है। युवाओं में भी यह बीमारी बढ़ रही है, जिसके पीछे मोटापा, तनाव और कम व्यायाम जैसे कारण हैं।

इसके लक्षणों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पेट दर्द, मल में खून, मल त्याग की आदतों में बदलाव, कमजोरी, थकान और अचानक वजन घटना इसके शुरुआती संकेत हो सकते हैं। अगर ये लक्षण दो सप्ताह से ज्यादा रहें, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें।

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डॉ. गोयल ने सलाह दी कि धूम्रपान छोड़ना और नियमित कोलोनोस्कोपी कराना इस बीमारी से बचने के सबसे जरूरी कदम हैं। संतुलित आहार और व्यायाम भी खतरे को कम करते हैं।

डॉ. जावेद के अनुसार, 50 की उम्र के बाद स्क्रीनिंग जरूरी है, क्योंकि इस उम्र में जोखिम बढ़ता है। समय पर पहचान हो तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रोबोटिक तकनीकों से इलाज आसान और प्रभावी होता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पेट की खराबी, जैसे कब्ज या बार-बार सूजन भी आंतों को नुकसान पहुंचा सकती है। सही खान-पान और पानी पीने की आदत से इसे ठीक रखा जा सकता है।

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