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भगदड़ : भारत क्यों बार-बार विफल हो रहा है ?

05:00 AM Oct 07, 2025 IST | Vineet Narain
भगदड़   भारत क्यों बार बार विफल हो रहा है
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भारत, दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहां धार्मिक उत्सव, राजनीतिक रैलियां और सांस्कृतिक आयोजन में लाखों-करोड़ों लोग एकत्रित होते हैं। वहां भीड़ प्रबंधन की विफलता एक बार फिर से राष्ट्रीय शर्म का कारण बन रही है। हाल के वर्षों में हुई कई भयानक घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि प्रशासनिक लापरवाही, अपर्याप्त योजना और बुनियादी ढांचे की कमी कैसे निर्दोष लोगों की जान ले रही है। सितंबर 2025 में तमिलनाडु के करूर में अभिनेता-नेता विजय की राजनीतिक रैली में 41 लोगों की मौत हो गई, जब देरी से पहुंचे काफिले को देखने के लिए लोग सड़क पर उमड़ पड़े। भगदड़ के हादसों की सूची बहुत लंबी है लेकिन यहां सवाल उठता है कि एक के बाद एक हादसों से हमने क्या सीखा? क्या ऐसे हादसे कभी कम होंगे? 2024 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में भोले बाबा के सत्संग के दौरान हुई भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई, ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। यह घटना कार्यक्रम समाप्ति के समय भीड़ के बहाव के कारण हुई, जब लोग बाबा के चरण छूने या उनकी चरण रज लेने के लिए उमड़ पड़े।

इसी तरह, 2025 में प्रयागराज के महाकुंभ मेले में 'मौनी अमावस्या' के दिन पवित्र नदी में स्नान के दौरान हुई भगदड़ ने 30 लोगों की जान ले ली और 60 से अधिक घायल हो गए। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि भारत अपनी जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने में बार-बार असफल हो रहा है। इन घटनाओं पर शासन और प्रशासन इतना गंभीर क्यों नहीं दिखाई देता? हाल के वर्षों में भारत में भगदड़ की घटनाएं एक चक्रव्यूह की तरह घूम रही हैं। 2024 के दिसंबर में हैदराबाद के संध्या थिएटर में 'पुष्पा 2' फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान हुई भगदड़ में एक महिला की मौत हो गई। 2025 की शुरुआत में आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शन के टोकन वितरण के समय छह भक्तों की मौत हो गई, जब हजारों लोग टोकन के लिए उमड़ पड़े। फरवरी 2025 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर फुट ओवर ब्रिज पर हुई भगदड़ ने कई जानें लीं। बेंगलुरु में क्रिकेट टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी)की आईपीएल विजय परेड के दौरान 11 लोगों की मौत हुई, जहां प्रशासन ने भीड़ का अनुमान लगाने में चूक की। बिहार के बाबा सिद्धनाथ मंदिर में अगस्त 2024 की भगदड़ में सात मौतें हुईं। ये घटनाएं धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयोजनों में ही नहीं, बल्कि रेलवे स्टेशनों और सिनेमा घरों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी हो रही हैं। 1954 से 2012 तक भारत में 79% भगदड़ें धार्मिक आयोजनों के दौरान हुईं, जो आज भी जारी है।

इन विफलताओं के पीछे कई गहरे कारण हैं। सबसे प्रमुख है आमंत्रित भीड़ का होना और अपर्याप्त प्रबंधन। आयोजक अक्सर अनुमानित संख्या से अधिक लोगों को आने की अनुमति मांग करते हैं, जबकि निकास मार्ग संकरे और अपर्याप्त होते हैं। अनुमति देने वाले विभाग भी किन्हीं कारणों के चलते सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजामों पर जोर नहीं देते। हाथरस में अस्थायी टेंट में पर्याप्त निकास न होने से भगदड़ बढ़ी। अफवाहें, जैसे आग लगने या ढांचा गिरने की, घबराहट और भगदड़ पैदा करती हैं। बुनियादी ढांचे की कमी, पुरानी इमारतों, संकरी सड़कों और पहाड़ी इलाकों में तो समझी जा सकती है। वहीं सुरक्षा कर्मियों की कमी और अप्रशिक्षित होना एक और समस्या है। महाकुंभ में वीआईपी व्यवस्थाओं पर फोकस से आम भक्तों की उपेक्षा हो जाती है। राजनीतिक और धार्मिक आयोजनों में भावनाओं का उफान भीड़ को अनियंत्रित बनाता है। इसके अलावा, आपदा प्रबंधन में पुलिस, आयोजकों और स्थानीय प्रशासन के बीच समन्वय की कमी घटनाओं को बढ़ावा देती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के दिशा-निर्देशों का पालन न होना एक बड़ी लापरवाही है। ये सभी कारक मिलकर भारत को बार-बार विफल कर रहे हैं, जहां जनता की जानें सस्ती साबित हो रही हैं।

ये भगदड़ें केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, इनका मानवीय और सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा है। परिवार टूट जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं और परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। फिर सवाल उठता है कि इनसे कैसे बचा जाए? प्रबंधन के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। सबसे पहले, पूर्व नियोजन जरूरी है। आयोजकों को अनुमति देते समय क्षमता का सख्त आंकलन हो और अधिकतम संख्या तय की जाए। बुनियादी ढांचे में सुधार लाएं, चौड़े निकास, आपातकालीन मार्ग और मजबूत संरचनाएं। एनडीएमए के अनुसार सीसीटीवी, ड्रोन और एआई का उपयोग भीड़ निगरानी के लिए किया जाए, जैसा कुंभ में प्रयास हुआ। सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाएं और उन्हें विशेष प्रशिक्षण दें। अफवाहों पर नियंत्रण के लिए ‘रियल टाइम’ संचार प्रणाली लगाएं। अंतर-एजेंसी समन्वय मजबूत करें-पुलिस, आयोजक और नागरिक प्रशासन एक साथ काम करें। कानूनी सख्ती लाएं, लापरवाह आयोजकों पर कड़ी सजा और मुआवजा सुनिश्चित करें। जन जागरूकता अभियान चलाएं, जहां लोग भीड़ में धैर्य रखें और सहयोग करें।

भारत को एक के बाद एक हुई इन विफलताओं से सबक लेना होगा। सरकार, आयोजक और नागरिकों की संयुक्त जिम्मेदारी से ही भविष्य की त्रासदियां रोकी जा सकती हैं। अन्यथा, ये घटनाएं जारी रहेंगी और देश अपनी जनता को बचाने में असमर्थ साबित होगा। समय आ गया है कि प्रोएक्टिव अप्रोच अपनाया जाए, जैसा कि कहा जाता है कि, ‘प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर’। केवल तभी हम एक सुरक्षित भारत का निर्माण कर पाएंगे।

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Vineet Narain

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