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कैशलेस इंडिया की कहानीः यूपीआई ने रचा नया इतिहास

04:40 AM Aug 05, 2025 IST | Rohit Maheshwari
कैशलेस इंडिया की कहानीः यूपीआई ने रचा नया इतिहास

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की ओर से हाल ही में जारी किए गए एक नोट, “बढ़ता रिटेल डिजिटल भुगतानः इंटरऑपरेबिलिटी का महत्त्व” के अनुसार, भारत तेज भुगतान में ग्लोबल लीडर बनकर उभरा है। इस बदलाव का मूल आधार एकीकृत भुगतान इंटरफेस है, जिसे यूपीआई के नाम से जाना जाता है। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से 2016 में लॉन्च किए गए यूपीआई ने देश में लोगों के पैसे भेजने और प्राप्त करने के तरीके को बदल दिया है। आज, भारत में यूपीआई के माध्यम से हर महीने 18 बिलियन से अधिक ट्रांजेक्शन होते हैं।
यूपीआई अब केवल एक भुगतान प्रणाली नहीं है। यह सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढांचे में नवाचार के लिए एक वैश्विक मानक है। आज यूपीआई का स्तर उल्लेखनीय है। अकेले जून 2025 में, इसने 24.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक के भुगतान किए। इसके जरिए 18.39 बिलियन ट्रांजैक्शन किए गए।

बीते साल इसी महीने 13.88 बिलियन लेन-देन की तुलना में हुई यह प्रगति स्पष्ट है। केवल एक साल में इसमें लगभग 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यूपीआई प्रणाली अब 491 मिलियन लोगों और 65 मिलियन कारोबारियों को सेवाएं देती है। यह 675 बैंकों को एक ही मंच पर जोड़ती है, जिससे लोग बिना किसी चिंता के आसानी से भुगतान कर सकते हैं कि वे किस बैंक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज भारत के डिजिटल भुगतान का दायरा अभूतपूर्व वृद्धि के साथ पूरी दुनिया में अग्रणी बन चुका है। पिछले छह वित्त वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक देश में 65,000 करोड़ से अधिक डिजिटल लेनदेन हुए हैं, जिनकी कुल राशि 12,000 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। इस डिजिटल भुगतान की लहर ने विशेष रूप से वंचित एवं ग्रामीण समुदायों के वित्तीय लेनदेन में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं।

मोदी सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक-आरबीआई, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया-एनपीसीआई, फिनटेक कंपनियों, बैंकों और राज्य सरकारों के साथ मिलकर डिजिटल भुगतान की पहुंच बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। खास तौर पर टियर-2 और टियर-3 शहरों के साथ पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू और कश्मीर जैसी पिछड़ी और संवेदनशील क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूती करने के लिए 2021 में आरबीआई ने पेमेंट्स इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड- पीआईडीएफ की स्थापना की। अब तक इस फंड के माध्यम से लगभग 4.77 करोड़ डिजिटल टच पॉइंट देशभर में तैनात किए जा चुके हैं। ये टच पॉइंट डिजिटल भुगतान की सुविधाओं को छोटे से छोटे गांव, कस्बा, सरकारी दफ्तर और व्यापारी केंद्रों तक पहुंचाने में सहायक हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक ने डिजिटल भुगतान की प्रगति को मापने के लिए डिजिटल भुगतान सूचकांक यानी आरबीआईकृडीपीआई विकसित किया है, जो हर छह महीने में प्रकाशित होता है। इसका आधार मार्च 2018 है, जब यह 100 था। सितंबर 2024 तक यह सूचकांक 465.33 तक पहुंच चुका था और मार्च 2025 तक 493.22 पर पहुंच गया, जो देश भर में डिजिटल भुगतान के अपनाने, बुनियादी ढांचे और प्रदर्शन में निरंतर बढ़ोत्तरी को दर्शाता है। यह संकेत है कि भारत का डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से सशक्त हो रहा है। यूपीआई जैसे डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म ने छोटे व्यवसायों, एमएसएमई, ग्रामीण और वंचित वर्गों के लिए वित्तीय सेवाओं तक पहुंच आसान कर दी है। यूपीआई की मदद से लाखों छोटे विक्रेता डिजिटल भुगतान स्वीकार कर पा रहे हैं, जिससे नकद लेनदेन की निर्भरता कम हो रही है। इसके अलावा, छोटे व्यापारियों के लिए कम-मूल्य के भीम-यूपीआई लेनदेन को बढ़ावा देना, टीआरईडीएस के माध्यम से छूट देने की व्यवस्था और डेबिट कार्ड लेनदेन के लिए व्यापारी छूट दर को युक्तिसंगत बनाना जैसे कदम डिजिटल भुगतान को अधिक सुलभ और लाभकारी बना रहे हैं।

पीआईडीएफ के अंतर्गत टियर-3 से लेकर टियर-6 नगरों, पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर में डिजिटल भुगतान स्वीकृति के इन्फ्रास्ट्रक्चर का व्यापक विकास किया गया है। इससे गांव और छोटे शहरों में भी डिजिटल भुगतान को अपनाने के रास्ते खुले हैं। डिजिटल टच पॉइंट्स के बढ़ते नेटवर्क ने इन इलाकों में भी आर्थिक लेनदेन की प्रक्रिया को सरल और तेज कर दिया है। यूपीआई भारत में डिजिटल भुगतान का सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला माध्यम बना हुआ है। जून 2025 तक यूपीआई पर प्रतिदिन औसतन 613 मिलियन लेनदेन दर्ज किए गए हैं, जो इसकी बढ़ती लोकप्रियता और निर्बाध सुविधा का प्रमाण हैं। इसने देश को नकद मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर एक कदम और पास पहुंचाया है। वित्त वर्ष 2024-25 में खुदरा डिजिटल भुगतान में लगभग 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे साफ होता है कि डिजिटल भुगतान तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजमर्रा की जिंदगी में अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है।

आज, भारत में सभी डिजिटल लेन-देन में 85 प्रतिशत यूपीआई के माध्यम से होते हैं। इसका प्रभाव राष्ट्रीय सीमाओं से परे भी है, और यह वैश्विक स्तर पर रियल-टाइम डिजिटल भुगतानों के लगभग 50 प्रतिशत को संचालित करता है। ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं। ये भरोसे, सरलता और तेजी को दर्शाते हैं। हर महीने, अधिक से अधिक लोग और व्यवसाय अपने भुगतानों के लिए यूपीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका बढ़ता इस्तेमाल इस बात का एक मजबूत संकेत है कि भारत तेजी से एक कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है। भारत का यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस अब दुनिया का नंबर एक रियल-टाइम भुगतान सिस्टम भी बन गया है। इसने रोजाना ट्रांजैक्शन की प्रोसेसिंग में वीजा को पीछे छोड़ते हुए बढ़त हासिल कर ली है। वीजा के 63 करोड़ 90 लाख ट्रांजैक्शन के मुकाबले यूपीआई हर दिन 64 करोड़ से अधिक ट्रांजेक्शन संभालता है। यह पैमाना असाधारण है, खासकर जब आप यह देखते हैं कि यूपीआई ने यह उपलब्धि केवल नौ वर्षों में हासिल की है। अब दुनिया भर में लगभग 50 प्रतिशत ट्रांजैक्शन यूपीआई के माध्यम से होते है। यह गति और आसानी के लिए बनाई गई एक खुली और अंतर-संचालनीय प्रणाली की शक्ति को दर्शाता है।

इसकी सफलता की कहानी केवल घर तक ही सीमित नहीं है। यूपीआई की मौजूदगी सीमाओं के पार भी महसूस हो रही है। यह संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्रांस और मॉरीशस समेत सात देशों में पहले से ही उपलब्ध है। फ्रांस में इसका प्रवेश एक मील का पत्थर है क्योंकि यह यूरोप में यूपीआई का पहला कदम है। इससे वहां यात्रा कर रहे या रहने वाले भारतीयों को विदेशी लेनदेन की सामान्य परेशानियों के बिना सहजता से भुगतान करने की सुविधा मिलती है। भारत यूपीआई को ब्रिक्स समूह में एक मानक बनाने के लिए भी प्रयास कर रहा है, जिसमें अब छः नए सदस्य देश भी शामिल हैं। अगर ऐसा होता है, तो इससे रिमिटेंस में सुधार होगा, वित्तीय समावेशन में तेजी आएगी और डिजिटल भुगतान में वैश्विक तकनीकी अग्रणी के तौर पर भारत की छवि मजबूत होगी।

डिजिटल भुगतान की इस तेजी के साथ भारत ने खुद को एक अग्रणी डिजिटल इकोनॉमी के रूप में स्थापित कर लिया है। डिजिटल रुपया और अंतरराष्ट्रीय डिजिटल भुगतान नेटवर्क के विकास से वित्तीय लेनदेन अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और त्वरित होंगे। यूपीआई जैसे प्लेटफॉर्म्स को और देश-विदेश में विस्तार देने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे भारत एक ग्लोबल डिजिटल पेमेंट हब बन सके। भारत का डिजिटल भुगतान सशक्तिकरण ने न केवल आर्थिक लेनदेन को सरल बनाया है, बल्कि गरीब और पिछड़े वर्गों को भी वित्तीय दुनिया का हिस्सा बनाया है। यह डिजिटल इंडिया की सफलता की कहानी है, जो रोजाना करोड़ों नागरिकों की जिंदगी में सुधार लाकर भारत के आर्थिक विकास में योगदान दे रही है।

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