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रणनीतिक सांझेदारी और ट्रेड वार

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08:14 AM Jun 26, 2018 IST | Desk Team

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जिस तरह आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते, उसी तरह किसी भी दो देशों के बीच रणनीतिक सांझेदारी और ट्रेड वार एक साथ नहीं चल सकते। एक तरफ अमेरिका भारत को रणनीतिक सांझेदार बताता है तो दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीय उत्पादों पर शुल्क बढ़ाते हैं। जवाब में भारत ने भी अमेरिका से आयातित कुछ कृषि व स्टील उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा कर दी है। अमेरिका द्वारा चुनिंदा भारतीय स्टील और अल्युमीनियम सहित कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाया गया था, जिससे भारत भी प्रभावित हुआ था आैर उसी के जवाब में भारत की अमेरिका पर आर्थिक दबाव की शुरूआत है। डोनाल्ड ट्रंप की अतिसंरक्षणवादी नीतियों के चलते ग्लोबल ट्रेड वार संकट गहराता जा रहा है। अमेरिका चीन से ट्रेड वार के चलते भी उलझ चुका है। अब तो यूरोपीय यूनियन और कुछ अन्य देश भी अमेरिका को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आगे आ चुके हैं।

अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लगभग 70 वर्षों तक वैश्विक व्यापार, कुशल श्रमिकों के लिए न्यायसंगत आर्थिक व्यवस्था के निर्माण और पोषण में उल्लेखनीय योगदान किया है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के फैसलों से वैश्विक व्यवस्था जोखिम में है। इस वर्ष अमेरिका ने चीन, मैक्सिको, कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटीना, जापान, दक्षिण कोरिया व यूरोपीय संघ के विभिन्न देशों के साथ-साथ भारत की कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाए हैं। इससे सभी देशों के कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। डोनाल्ड ट्रंप के बयानों और नीतियों की वजह से कनाडा के क्यूबेक सिटी में आयोजित जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन एक तमाशा बनकर रह गया। भारत ने अमेरिका की 29 वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिया है। यद्यपि यह दरें 4 अगस्त से लागू होंगी और इस तरह अमेरिका से बातचीत के लिए संभावनाएं बरकरार रखी गई हैं। इस मसले पर बातचीत के लिए अमेरिकी अधिकारी मार्क लिन्सकार्ट भी भारत आएंगे। मसला बातचीत से सुलझ जाए तो अच्छा ही होगा अन्यथा इसका असर भारत-अमेरिका रणनीतिक सम्बन्धों पर पड़ेगा ही। भारत ने अमेरिका से यात्री विमान खरीदने के साथ-साथ गैस आैर तेल खरीदने का प्रस्ताव ​दिया है। इसके अलावा भारत अमेरिकी कम्पनियों से नौसेना के लिए 12 पी-8 आई निगरानी विमान खरीदने की सम्भावनाएं भी तलाश रहा है। दोनों देशों में रक्षा सम्बन्ध पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ हुए हैं।

भारत और अमेरिका की ‘इंडो-पेसेफिक’ क्षेत्र से जुड़ी रणनीति के लिए यह समझौता काफी अहम है आैर इसके तहत भारत को सैन्य संचार से जुड़ी अतिसुरक्षित तकनीक भी मिल जाएगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत अमेरिका की तरफ पलड़ा कुछ ज्यादा ही झुका रहा है और अमेरिका हमारे बाजू मरोड़ रहा है। भारत का रवैया चीन की तरह आक्रामक नहीं और न ही भारत अमेरिकी हितों को कोई नुक्सान पहुंचा रहा है। फिर भी डोनाल्ड ट्रंप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को दबाने की कोशिश करें, यह अच्छी बात नहीं। कारोबार को लेकर चीन के प्रति अमेरिका के कड़े रुख की बात समझी जा सकती है। अगर अमेरिका का रवैया भारत के प्रति आक्रामक रहा तो भारत को भी अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा। भारत तो अमेरिकी कम्पनियों से अरबों रुपए के सौदे करे और अमेरिका हमारे उत्पादों पर शुल्क बढ़ाए, यह असहनीय होगा। भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड वार का सबसे ज्यादा असर भारत में लोकप्रिय अमेरिकी खाद्य वस्तुओं पर पड़ेगा जिसमें अमेरिकी बादाम और सेब होंगे। पिछले वर्ष करीब 4 हजार करोड़ का कैलिफोर्निया बादाम आयात किया गया था। अब आयात शुल्क बढ़ने से बादाम के आयात पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। इसी तरह अमेरिकी वालनट्स और चिकपीज पर भी आयात शुल्क बढ़ाया गया है। भारत द्वारा शुल्क लगाने से सबसे ज्यादा नुक्सान अमेरिकी कारोबारियों को होगा।

अमेरिका आैर चीन ट्रेड वार के मोर्चे पर पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे। चीन ने दो-टूक कहा है कि उसके उत्पादों पर आयात शुल्क लगाकर अमेरिका खुद अपना नुक्सान करने पर तुला है। अगर अमेरिका ने अपने कदम वापस नहीं खींचे तो चीन न केवल रक्षात्मक जवाबी कार्रवाई करेगा, बल्कि वह मुख्य रूप से अमेरिकी शेयर बाजार डाउ जींस में सूचीबद्ध बड़ी अमेरिकी कम्पनियों को निशाना बनाएगा। भारत फिलहाल फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। डोनाल्ड ट्रंप को यह बात समझनी चाहिए कि भारत-अमेरिका रणनीतिक सांझेदारी आैर ट्रेड वार एक साथ नहीं चल सकते। कुछ पत्ते तो भारत को अपने हाथ में रखने ही होंगे। डोनाल्ड ट्रंप छोटे फायदों की एवज में बड़े सौदे गंवा भी सकते हैं।

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