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भारत-रूस के प्रगाढ़ सम्बन्ध

04:30 AM Aug 23, 2025 IST | Aditya Chopra
भारत रूस के प्रगाढ़ सम्बन्ध
पंजाब केसरी के डायरेक्टर आदित्य नारायण चोपड़ा

पिछले पचास के दशक के शुरू में जब सोवियत संघ के नेता श्री ख्रुश्चेव भारत की एक सप्ताह से अधिक की यात्रा पर आये थे तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर राज्य की राजधानी श्रीनगर में खड़े होकर यह घोषणा की थी कि कश्मीर जैसी कोई समस्या नहीं है और इसका सम्पूर्ण विलय भारतीय संघ में हो चुका है। इससे आज की पीढ़ी को अन्दाजा हो सकता है कि भारत व सोवियत संघ (रूस) के आपसी सम्बन्ध किस स्तर पर रहे हैं। रूस ने भारत का साथ हर मुसीबत के समय दिया है और सिद्ध किया है कि वह भारत का नैसर्गिक मित्र देश है। 1990 में सोवियत संघ का विघटन होने से पहले इसकी सीमाएं अफगानिस्तान से लगती थीं। अतः भारत व सोवियत संघ के सांस्कृतिक सम्बन्ध भी बहुत प्रगाढ़ थे। दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों के बीच आज तक कभी कोई ऐसा अवरोध नहीं आ सका है जिससे इनमें खटास का भाव जागता हो। यहां तक कि जब 2008 में भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया तो रूस ने इसका बुरा नहीं माना और हमारे साथ अपने सामरिक, रणनीतिक व राजनयिक सम्बन्धों के धागे को कस कर पकड़े रखा।
भारत के विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर आज ही रूस का तीन दिवसीय दौरा करके लौटे हैं। अपनी इस राजनयिक यात्रा के दौरान उन्होंने रूस की धरती पर खड़े होकर ही अमेरिका को यह पैगाम दिया कि अमेरिका ने ही उससे कहा था कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल व गैस की कीमतों में स्थिरता लाने के लिए वह रूस से कच्चा तेल भी खरीदें। यह कह कर जयशंकर ने साफ करने की कोशिश की है कि भारत से रूस के व्यापारिक सम्बन्ध वैश्विक हित को देखते हुए ही बने हुए हैं। जयशंकर को यह कहने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय आयातित माल पर 25 प्रतिशत सीमा शुल्क की वृद्धि इसी कारण की है। श्री ट्रम्प का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए रूस के खिलाफ जो आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये गये हैं वे युद्ध की विभीषिका को कम करने की गरज से ही लगाये गये हैं। उन्होंने एक तरह से भारत के विरुद्ध भी दंडात्मक कार्रवाई की और तर्क दिया कि इससे यूक्रेन के प्रति रूस की आक्रामकता में कमी आयेगी। अमेरिका एक तरफ भारत को अपना रणनीतिक सहयोगी मानता है और दूसरी तरफ एेसी दंडात्मक कार्रवाई करता है। अतः श्री जयशंकर का रूस मंे जाकर अमेरिका के मुतल्लिक बयान देना बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जाहिर है कि श्री ट्रम्प के तेवर दादागिरी वाले हैं और वह अपने देश में आने वाले भारतीय माल पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क लगा कर भारत को डराना चाहते हैं जबकि रूस से सर्वाधिक कच्चे तेल का आयात चीन करता है और गैस आदि का सर्वाधिक आयात पश्चिम यूरोप के देश करते हैं। एेसे हालात में भारत की नीति पूरी तरह तर्कसंगत है।
दरअसल ट्रम्प चाहते हैं कि भारत को अपना विदेश व्यापार उनकी शर्तों पर करना चाहिए। शायद ट्रम्प भूल रहे हैं कि भारत एक स्वयंभू राष्ट्र है और उसकी विदेश नीति स्वतन्त्रता के बाद से ही पूरी तरह स्वतन्त्र रही है। भारत पर दबाव बनाने की गरज से ही श्री ट्रम्प पाकिस्तान के साथ प्रेम की पींगे बढ़ा रहे हैं और बार-बार यह दोहरा रहे हैं कि उन्होंने ही विगत 10 मई को भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध या संघर्ष विराम कराया। बेशक उन्होंने संघर्ष विराम की घोषणा भारत से कुछ घंटे पहले की मगर इससे यह कहां साबित होता है कि उन्होंने मध्यस्थता की जबकि भारत के प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने साफ तौर पर कहा कि युद्ध विराम के सन्दर्भ में उनकी विश्व के किसी भी नेता से कोई बातचीत नहीं हुई। श्री ट्रम्प को यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत अमेरिका की गीदड़ भभकियों के आगे कभी नहीं झुका है।1965 और 1971 मेंे पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में अमेरिका भारत के विरोध में पाकिस्तान के साथ खड़ा हुआ था इसके बावजूद भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी फौज को पानी पिला दिया था और 1965 में तो भारतीय फौजें लाहौर तक पहुंच गई थीं। उस समय पाकिस्तान पर फौजी शासक जनरल अयूब का शासन था। भारत के हमलों से घबरा कर रातोंरात जनरल अयूब चीन से मदद मांगने के लिए बीजिंग पहुंचे थे। मगर तब सोवियत संघ हमारे साथ पर्वत की तरह खड़ा हुआ था।
इसी प्रकार 1971 के बंगलादेश युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया था। उस समय अमेरिका ने अपना सातवां जंगी जहाजी एटमी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में उतार दिया था। मगर तब रूस ने चेतावनी दे दी थी कि यदि जहाजी बेड़े से जरा भी हरकत हुई तो रूसी जंगी जहाजी बेड़े उसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। मगर इस युद्ध को हुए अब पचास साल से भी ज्यादा हो चुके हैं और इस दौरान वैश्विक परिस्थितियों में गुणात्मक सामरिक व रणनीतिक परिवर्तन आ चुका है। सामरिक दबावों की जगह आर्थिक दबावों ने ले ली है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं और सोच रहे हैं कि पूरी दुनिया के देश उनकी आर्थिक ताकत के समक्ष नतमस्तक हो जायेंगे। उनकी यह सोच आत्मकेन्द्रित हो सकती है क्योंकि आज की भारत की नई पीढ़ी कम्प्यूटर व साफ्टवेयर उद्योग में विश्व की सिरमौर है और अपने ज्ञान के भरोसे पर वह शेष दुनिया का नेतृत्व करने में सक्षम है। भारत की इस ताकत को कोई देश नहीं छीन सकता है। मगर यह तस्वीर का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत के मेक इन इंडिया अभियान को वैश्विक बाजार की जरूरत है और अमेरिका को भारत का निर्यात सर्वाधिक रहता है। जिसकी वजह से ट्रम्प आयात शुल्क को बढ़ा रहे हैं। मगर इसका असर उल्टा ही होगा जिस तरफ उन्हीं के देश में कई राजनीतिज्ञ संकेत कर रहे हैं। जहां तक रूस का सम्बन्ध है तो इसने भारत को अपने पैरों पर खड़ा होने में शुरू से ही मदद दी है और परमाणु ऊर्जा से लेकर सामरिक युद्ध सामग्री व औद्योगिक उत्थान में सहयोग किया है। अतः भारत-रूस के सम्बन्धों के बीच अमेरिका को ही अपनी चाल बदलनी पड़ेगी।

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