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अड़ियल चीन की ‘झांसे-बाजी’

भारत-चीन सीमा के प्रबन्धन पर बने कार्यवाहक दल की चौथी बैठक जिस तरह बेनतीजा समाप्त हुई है उसे देखते यही कहा जा सकता है कि चीन ने जो अड़ियल रुख अपनाया हुआ है

12:20 AM Aug 22, 2020 IST | Aditya Chopra

भारत-चीन सीमा के प्रबन्धन पर बने कार्यवाहक दल की चौथी बैठक जिस तरह बेनतीजा समाप्त हुई है उसे देखते यही कहा जा सकता है कि चीन ने जो अड़ियल रुख अपनाया हुआ है

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अड़ियल चीन की ‘झांसे बाजी’
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भारत-चीन सीमा के प्रबन्धन पर बने कार्यवाहक दल की चौथी बैठक जिस तरह बेनतीजा समाप्त हुई है उसे देखते यही कहा जा सकता है कि चीन ने जो अड़ियल रुख अपनाया हुआ है उससे वह हिलने को तैयार नहीं हो रहा है जबकि भारत अपनी तरफ से हर कोशिश कर रहा है कि लद्दाख के क्षेत्र में नियन्त्रण रेखा पर वही स्थिति बने जो दो मई से पूर्व थी। भारत व चीन के बीच प्रबन्धन दल की इसके बाद यह चौथी बैठक थी, जो पहले की तीन बैठकों के मुकाबले इस मायने में भिन्न रही कि इसमें सीमा पर तनाव कम करने के बारे में और दोनों ओर की सेनाओं की मुठभेड़ की परिस्थितियों को बदलने के बारे में कोई ठोस घोषणा नहीं की गई। इस बैठक के केन्द्र में तिब्बत में खिंची नियन्त्रण रेखा के समीप पेगोंग झील का वह इलाका था जहां भारतीय सैनिक चौकी चार पर चीनी सेनाओं ने कब्जा जैसा किया हुआ है और चौकी नम्बर आठ तक के क्षेत्र में आठ किमी तक भीतर तक घुस कर भारत के लिए परेशानी पैदा कर रखी है। चीन ने चौकी नम्बर चार में स्थिति को बदलने के लिए इस वार्ता में कोई पहल नहीं की। इसके साथ ही पेगोंग झील से आगे देपसंग पठारी क्षेत्र में भी चीनी सेनाएं नियन्त्रण रेखा से 18 किमी. अन्दर तक घुसी हुई हैं।
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यह इलाका बहुत ही संवेदनशीन है क्योंकि इससे भारत का दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र बहुत पास है जो कि कारोकोरम दर्रे के निचले इलाके में है, यह इलाका भारत ने सड़क मार्ग से जोड़ा हुआ है। दौलत बेग ओल्डी में ही भारतीय सेना का हैली पैड है जो राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। चीन के इस हठीले रवैये से यही आभास हो रहा है कि वह पूरी नियन्त्रण रेखा की स्थिति को बदल देना चाहता है जिसकी वजह से पिछले तीन महीने से वह तिब्बत में भारतीय इलाकों में डटा हुआ है उसी नीयत को समझ कर ही भारत को आगे की रणनीति तय करनी होगी क्योंकि जब दोनों देशों के विदेश मन्त्री यह मान चुके हैं कि नियन्त्रण रेखा पर तनाव कम करने के उपाय किये जायेंगे और सीमा विवाद को हल करने के लिए गठित विशेष कार्य दल के दोनों तरफ के विशेष प्रतिनिधि (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) भी यही दोहरा चुके हैं तो चीन का हठीला रवैया भारत के लिए गंभीर चिन्ता का विषय है। 1962 से ही भारत के अक्साई चिन इलाके को अपने कब्जे में दबाये बैठे चीन को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि भारत 2020 में भी उसकी चालबाजियों में आ जायेगा और वह वार्ता का ढोंग करके झांसा देता रहेगा। चीन को यह समझ लेना चाहिए भारत एक शान्ति प्रिय देश जरूर है मगर इसका इतिहास वीरतापूर्ण कारनामों से भरा हुआ है। यहां तक कि 1962 में भारत पराजित जरूर हो गया था मगर इसकी वीर सेनाओं के कारनामे आज भी तिब्बत की घाटियों में बोलते हैं। इसके बाद चीन ने जब भी आंखें टेढ़ी करने की कोशिश की उसे सही सबक भारत की जांबाज सेनाओं ने सिखाया, चाहे वह 1967 का नाथूला संघर्ष हो या 2012 का देपसंग संघर्ष, परन्तु चीन जाने किस गलतफहमी का शिकार हो गया है कि समझ रहा है कि भारत 2020 में फिर से सीधी गाय बन जायेगा। उसे समझ लेना चाहिए विगत 15 जून की रात्रि को तिब्बत की गलवान घाटी में उसने जो 20 भारतीय सैनिकों को शहीद किया था उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा, शान्ति का समर्थक होने का मतलब कभी भी कमजोर होना नहीं होता है बल्कि वे ही शान्त होते हैं जो भीतर से बलशाली होते हैं।
भारत का बच्चा-बच्चा चीन से अपनी एक-एक इंच भूमि छुड़ाने के लिए कृत संकल्प है और इस मामले में इस देश के खुले राजनैतिक लोकतन्त्र के आपसी मतभेद कोई मायने नहीं रखते हैं। भारत की यह परंपरा है कि जब भी इसकी भूमि पर कोई विदेशी गलत नजरें गड़ाता है तो पूरा देश चट्टान की तरह एक हो जाता है और कांग्रेस व भाजपा का भेद भी मिट जाता है।  चीन को सबसे पहले अपनी भूमिका को समझना होगा और सोचना होगा कि वह अतिक्रमणकारी है जिसने नियन्त्रण रेखा के भीतर घुस कर भारत की जमीन पर अनाधिकार कब्जा जमा रखा है। बेशक हमसे पूर्व में कुछ गलतियां हुई हैं मगर अब समय बदल चुका है। समझा जा सकता है कि तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करके 2003 में भारत ने एेतिहासिक गलती की थी मगर इसका यह मतलब नहीं है कि चीन हमारे लद्दाख के क्षेत्र में यह कह कर अनाधिकार अतिक्रमण करे कि वह जातीय एकता या समता (ईथनिक बांडिग) के नजरिये से लद्दाख को देखने की जुर्रत करता है। तिब्बत से तो भारत के सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि रोटी-बेटी के रिश्ते रहे हैं और लद्दाख में नियन्त्रण रेखा वास्तव में तिब्बत व भारत की सीमा का ही पर्याय है। इसके बावजूद भारत अपने अंतर्राष्ट्रीय समझौते की पवित्रता में विश्वास रखने वाला देश है। चीन को भी उन सभी समझौतों का अक्षरशः पालन करना चाहिए जो 1992 से लेकर अब तक उसने किये हैं। सीमा प्रबन्धन पर तो 1996 में चीन के साथ विशेष समझौता हुआ था जिसमें हर हाल में शान्ति व सौहार्द बनाये रखने का प्रावधान है परन्तु अब नियन्त्रण रेखा को बदलने की चाहत के चलते हकीकत को नजरअन्दाज करता सा लगता है।
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