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युद्ध से बाज आएं महाशक्तियां

पिछले वर्ष दिसम्बर के अंतिम दिनों में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा।

02:20 AM Feb 16, 2022 IST | Aditya Chopra

पिछले वर्ष दिसम्बर के अंतिम दिनों में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा।

युद्ध से बाज आएं महाशक्तियां
पिछले वर्ष दिसम्बर के अंतिम दिनों में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। एक तरफ जहां यूक्रेन की सीमा पर रूसी फौज का भारी जमावड़ा लगा हुआ है, वहीं दूसरी ओर इस तनाव को कम करने की राजनयिक कोशिशें भी जारी हैं। यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्र अपने भविष्य को लेकर परेशान  हैं और उनके अभिभावक उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। यूक्रेन के लोग हथियारों की ट्रेनिंग ले रहे हैं। यूक्रेन संकट के युद्ध में तब्दील होने की आशंका से सिहरन दौड़ जाती है। जंग हुई तो हजारों लोग मारे जाएंगे, इससे भी ज्यादा लोगों के घर तबाह हो जाएंगे। जंग शुरू करना आसान होता है लेकिन जंग में विध्वंस के बाद की विभि​षका को झेलना काफी दुखद होता है। बाब डिलन की कविता की पंक्तियां याद आ रही हैं।
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‘‘आओ युद्ध के मालिकों
तुमने ही बनाई सारी बंदूकें
तुमने ही बनाए मौत के सारे जहाज
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तुमने बम बनाए
तुम जो दीवारों के पीछे छिपते हो
छिपते फिरते हो तुम तिपाई के पीछे
तुमने कभी कुछ नहीं किया,
लेकिन जो भी बनाया वह विनाश के​ लिए
तुम मेरी दुनिया से करते हो खिलवाड़।’’
मानव दो-दो विश्व युद्ध झेल चुका है और अब तीसरा विश्व युद्ध झेलने की उसमें कोई क्षमता नहीं है। जंग हुई तो भयंकर नतीजे होंगे। यह सब जानते हुए भी वैश्विक ​शक्तियां उलझी हुई हैं।
रूस की सेना ने यूक्रेन को घेर रखा है और  अमेरिका समेत पश्चिमी देश चेतावनी दे रहे हैं कि अगर रूस ने यूक्रेन की ओर एक कदम बढ़ाया तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। सारी दुनिया की नजरें टकराव की जगह शांतिपूर्ण और स्थाई शांति के रास्तों पर नजर लगी हुई है। बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी दूतावास के अधिकारी परिवारों समेत कीव छोड़ चुके हैं। अमेरिकी दूतावास कीव से लबीन शहर में शिफ्ट कर दिया गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आरोप है कि अमेरिका यूक्रेन के मसले पर रूस को युद्ध में खींचना चाहता है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का रूस को लेकर रुख पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से ज्यादा सख्त लग रहा है। उसकी अपनी वजह भी है। एक तो उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी मानती है कि रूस अमेरिका के मामले में अवैध हस्तक्षेप करता है, दूसरी ओर अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के फैसले के चलते बाइडेन की जो किरकिरी हुई है, उसकी भरपाई रूस को झुका कर की जा सकती है। बाइडेन खुद को ताकतवर दिखाना चाहते हैं। अमेरिका और उसके मित्र देशों ने रूस को सख्त पाबंदियों की चेतावनी दी है। जवाब में रूस यूरोपीय देशों को गैस सप्लाई रोक सकता है। इससे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी और उथल-पुथल मच जाएगी।
हालात की गम्भीरता इसी से पता चलती है कि अमेरिका ने भी यूक्रेन का साथ देने के लिए अपने सैनिक भेज दिए हैं। युद्ध को टालने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने मास्को का दौरा किया है। इससे पहले ऐसा नहीं देखा गया कि जब यूक्रेन को लेकर रूस ने इस तरह के आक्रामक तेवर दिखाए हों और नाटो और अमेरिका भी मैदान में खुलकर आया हो। अब यह क्षेत्र दुनिया के ​लिए नए खतरे का अखाड़ा बन गया है। रूस ने अब यह संकेत दिया है कि वह इस मसले पर बातचीत को तैयार है। रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो जबकि अमेरिका और नाटो देश उसे यूरोपीय संघ में शामिल करना चाहते हैं। रूस को डर है कि अगर ऐसा हुआ तो अमेरिकी हस्तक्षेप काफी बढ़ जाएगा। रूस यूक्रेन की आबादी को स्वाभाविक रूप से अपना ही मानता है। यूक्रेन का एक बड़ा वर्ग भी महसूस करता है कि हजारों मील दूर बैठकर अमेरिका इस विवाद में बिना ​कारण कूद रहा है। यूक्रेन के लोग समझ रहे हैं कि मदद की आड़ में अमेरिका यहां भी उसी तरह पांव जमा लेगा जिस तरह उसने अफगानिस्तान पर दुनिया में दूसरी जगह करता आया है। इन्हीं भावनाओं काे यूक्रेन के राष्ट्रपति ने भी व्यक्त किया था और कहा था कि अमेरिका रूसी हमले का डर दिखाकर उसकी अर्थव्यवस्था पर चोट कर रहा है।
युद्ध होने की स्थिति में भारत की उलझनें और बढ़ेंगी। भारत अभी तक अपने को तटस्थ बनाए हुए है। अगर रूस पर पाबंदियां बढ़ीं तो भारत के लिए बड़ी मुश्किल स्थिति होगी। यूक्रेन पर टकराव बढ़ा तो रूस की चीन से नजदीकियां बढ़ेंगी। रूस भारत का घनिष्ठ मित्र रहा है। रूस आज भी हमारी रक्षा जरूरतें पूरी करने का बड़ा स्रोत है। मौजूदा दौर में अमेरिका भी भारत के ​लिए काफी महत्वपूर्ण है। अमेरिका निश्चित रूप से भारत पर रूस से संबंधों पर पुनर्विचार के लिए दबाव डालेगा। अब यह अग्नि परीक्षा के समान होगा कि भारत कैसे संतुलन बनाए रख सकता है। बेहतर यही होगा कि महाशक्तियां युद्ध से बाज आएं और वार्ता में शांति का मार्ग तलाशें। अगर महाशक्तियों ने अपने हित पूरे करने के लिए यूक्रेन को युद्ध में धकेला तो उन्हें विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा, यह उनकी जीत नहीं हार ही होगी।
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