Top NewsIndiaWorld
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabJammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Business
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

अंधविश्वास-आस्था और बाबाओं की दुकानें

04:55 AM Jul 07, 2024 IST | Shivam Kumar Jha

नानक दुखिया सब संसार। आज हर व्यक्ति को कोई न कोई दुख है, चिंता है, अशांति है तो लोग सुख-शांति ढूंढने के लिए किसी गुरु या बाबा का सहारा लेते हैं। इतिहास गवाह है और मेरा भी मानना है कि इन गुरुओं में मुश्किल से एक प्रतिशत गुरु ही ठीक होंगे, बाकी तो सब मतलबी, व्यापारी ही नजर आते हैं। हाथरस का वाकया देख कई मासूमों की मृत्यु देखकर तो यही लगता है कि कब तक यह बाबे गरीब, मासूम, दुखी लोगों को ठगते रहेंगे। कब तक इनकी दुकानें चलती रहेंगी।

हाथरस के एक बाबा के सत्संग में मची भगदड़ के भयानक मंजर ने पूूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कुल 122 लोगों की माैत का जिम्मेवार कौन है? इस सवाल का जवाब मांगा जा रहा है लेकिन बाबा के भक्तों की हिमाकत देखिए कि बाबा को निर्दोष बता रहे हैं जबकि सोशल मीडिया पर इस बाबा की गिरफ्तारी की मांग रोज बुलंद हो रही है। सत्संग में मरने वाली 118 महिलाएं और 2 बच्चों के अलावा 2 पुरुष भी हैं।

हाथरस और निकटवर्ती इलाकों में सौ से ज्यादा परिवार बिलख रहे हैं। गांव-गांव, शहर-शहर मातम ही मातम है लेकिन कदम-कदम पर खुद को शिवजी का अवतार बताने वाला यह बाबा फरार है। उसके चरणों की धूल लेने की होड़ में महिलाएं एक के ऊपर एक गिरती चली गईं आैर पाखंडी बाबा के भक्तों की टीम बाबा की लम्बी गाड़ी को वहां से निकाल कर ले गई, आज यह बाबा लोगों की मदद करने की बजाय जहां भागा है वहां सुरक्षित बताया जा रहा है। होना तो यह चाहिए था कि बाबा इस हादसे के बाद मौके पर पहुंचकर घायलों की मदद करता लेकिन सोशल मीडिया पर जब देखते हैं और उसकी लम्बी गाड़ी पर फरार होने की तस्वीरें सामने आती हैं तो राजनीति शुरू हो जाती है। ऐसा लगता है कि देश में बाबाओं की दुकानें हर छोटे-बड़े कस्बे से लेकर महानगर तक सज गई हैं। चैनल बड़े इत्मिनान से इन्हें प्रस्तुत करते हैं। अंधविश्वासी लोग या तो धर्म से डरते हैं या फिर धर्म के प्रति उनकी अंधी आस्था है।

बड़े-बड़े राजनेता इन बाबाओं को प्रमोट करते हैं तथा अतीत का इतिहास अगर देखा जाए तो जो चित्र उभरता है वह वर्तमान हालात के अनुकूल ही है। बाबा के प्रमोटर नेता भी बेनकाब किए जाने चाहिए तथा सरकार अगर ऐसे बाबाओं के खिलाफ कोई एक्शन लेती है तो हम इसका स्वागत करेंगे। इन बाबाओं को आश्रमों के लिए सस्ती दरों पर जमीन कौन दिलाता है, राजनेताओं से इस सवाल का जवाब भी लिया जाना चाहिए। रेपिस्ट और व्यभिचारी बाबा पकड़े जाते हैं और जेलों में रह कर भी ‘‘राज’’ ही करते हैं। इन लोगों को बचाने वाले यह कौन नेता हैं उन्हें भी बेनकाब करना जरूरी है। राजनीतिक संरक्षण बंद होना चाहिए। रामायण में तुलसी दास ने ठीक ही कहा है-
समरथ को नहीं दोष गुसाईं

अर्थात जो ताकतवर या समर्थवान है उसकी कोई गलती नहीं निकाली जा सकती। बाबा के समर्थक सोशल मीडिया पर इसी तरह दनदना रहे हैं और पूरा सरकारी अमला तथा राजनीतिक सिस्टम बाबा के समर्थन में खड़ा है। जबकि अगर बाबाओं का इतिहास देखा जाए तो उनके कुकर्म अदालताें में जजों के आदेशों से उदाहरण बनकर दर्जनों बाबाओं को सलाखाें के पीछे पहुंचा चुके हैं। मेरा खुद का मानना है कि श्रद्धालुओं की अंधभक्ति इतने कांड होने के बाबजूद कम होने का नाम नहीं ले रही। यह कैसा मनोविज्ञान है, यह बात मेरी समझ से बाहर है। भगवान के वजूद के बाबजूद साधारण नौकरीपेशे वाला व्यक्ति जो कल तक एक पुलिस विभाग में काम करता था उसे शिवजी के दर्शन हो गए और वह खुद को बाबा बताने लगा। लोगों ने उसे भगवान मान लिया।

भगवान के उपदेशक और संत तो लोगों की बलाएं अपने ऊपर लेकर उनकी रक्षा करते हैं लेकिन इस बाबा ने दिखावे के चक्कर में 122 लोगों को भगदड़ में काल का ग्रास बना दिया। अगर यह बाबा सचमुच में नारायण है तो फिर उसके सत्संग में इतने लोग मर कैसे गए? सत्संग की एक मर्यादा होती है, एक व्यवस्था होती है, सूट-बूट पहन कर कोई प्रवचन नहीं करता। सत्य आज के जमाने में जिस प्रकार ढूंढने से भी नहीं ​मिलता ऐसे ही सच्चा गुरु आज के जमाने में गायब हो चुका है। भीड़ जुटाना बाबाओं और उनकी टीम का गोरखधंधा है। गांव के लोगों काे, विशेष रूप से महिलाओं को तरह-तरह के इलाज से उनके दुख तथा निर्धनता को दूर करने के दावे इनके पाखंड का हिस्सा है, मैं समझती हूं कि जनता को खुद समझना चाहिए कि वेद-पुराण-रामायण और सच्चा गुरु किसे कहते हैं। पाखंड से बचो, नकली बाबाओं से बचो आैर बचाओ, यह आदर्श लोगों का होना चाहिए। मुझे संत कवि कबीर दास जी का एक दोहा याद आ रहा है-

फूटी आंख विवेक की
लखे न संत-असंत
जाके संग दस-बीस है
ताको नाम महंत

अर्थात हमारी बुद्धि की आंखें नष्ट हो चुकी हैं जो संतों और पाखंडियों में कोई फर्क नहीं देख रही। आज की तारीख में जिसके साथ दस-बीस लोग हैं वही अपने आप को महंत बता रहा है। कहने का मतलब आज पाखंडी और प्रपंची लोग झूठ के सहारे धंधा कर रहे हैं। बाबाओं के धंधे का एक और उस्ताद बेनकाब हो चुका है अब देखते हैं किसके खिलाफ एक्शन कब होगा लेकिन लोगों को भी समझना चाहिए।

Advertisement
Advertisement
Next Article