'हमने भी अपनी मॉर्फ्ड तस्वीरें देखी हैं...', अब भारत के चीफ जस्टिस बी. आर. गवई भी AI से हुए परेशान!
Supreme Court CJI Gavai: आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का प्रभाव समाज के हर हिस्से तक पहुंच चुका है। जहां एक ओर यह तकनीक कई काम आसान बना रही है, वहीं इसके गलत इस्तेमाल से कई लोग परेशान हैं। इसी संदर्भ में भारत केचीफ जस्टिस (CJI) बी. आर. गवई ने सोमवार को कहा कि न्यायपालिका के लोग भी एआई से जुड़े दुरुपयोग के शिकार हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने बताया कि उन्होंने खुद अपनी मॉर्फ्ड यानी बदली गई तस्वीरें इंटरनेट पर देखी हैं।
उनका कहना था कि ऐसी घटनाएँ यह दिखाती हैं कि एआई तकनीक का गलत इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, जिससे न्यायपालिका के सदस्य भी अछूते नहीं हैं।उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों पर नियंत्रण के लिए नीतिगत कदम उठाना सरकार (कार्यपालिका) की जिम्मेदारी है, न कि न्यायपालिका की। उन्होंने कहा, “यह एक नीति से जुड़ा विषय है, जिस पर फैसला सरकार को लेना चाहिए।”

Supreme Court CJI Gavai (credit-sm)
Supreme Court CJI Gavai: 'यह नीतिगत मसला है'
CJI बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि नई तकनीकों को नियंत्रित करने का मामला पूरी तरह नीतिगत है। इसलिए अदालत सीधे इसमें दखल नहीं देना चाहती। हालांकि, याचिकाकर्ता की अपील पर सुनवाई को दो हफ्तों के लिए टाल दिया गया ताकि मामले पर आगे विचार किया जा सके।
AI को लेकर जनहित याचिका (PIL)
यह मामला एडवोकेट कार्तिकेय रावल द्वारा दाखिल की गई एक जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है। इसमें केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह न्यायिक संस्थानों में जनरेटिव एआई (GenAI) के इस्तेमाल के लिए एक स्पष्ट नीति या कानून तैयार करे। याचिका में कहा गया है कि एआई का इस्तेमाल बढ़ने से न्याय व्यवस्था में एकरूपता, पारदर्शिता और सुरक्षा बनाए रखने की जरूरत है।

Supreme Court CJI Gavai (credit-sm)
CJI Gavai on Misuse of AI: याचिका में जताई गई चिंताएं
याचिका में यह भी कहा गया है कि जनरेटिव एआई एक ‘ब्लैक बॉक्स’ तकनीक की तरह है । यानी इसके अंदर डेटा कैसे काम करता है, यह अक्सर स्पष्ट नहीं होता। इससे न्यायिक प्रक्रिया में भ्रम और असमानता की स्थिति बन सकती है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का उल्लंघन कर सकती है।
याचिका में यह भी चेतावनी दी गई है कि एआई सिस्टम, जो असली दुनिया के डेटा पर ट्रेन होते हैं, वे समाज में पहले से मौजूद पूर्वाग्रहों (biases) को और बढ़ा सकते हैं। इसका असर खासकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर अधिक पड़ सकता है।

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Supreme Court News: डेटा सुरक्षा और नागरिक अधिकारों पर खतरा
इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया कि डेटा की निष्पक्षता, स्वामित्व और पारदर्शिता को लेकर कोई स्पष्ट नियम नहीं हैं। इससे नागरिकों के जानने के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a)) पर खतरा पैदा हो सकता है। अगर भविष्य में अदालतों के दस्तावेज या प्रक्रिया एआई आधारित प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित होती हैं, तो साइबर हमलों और डेटा चोरी का भी जोखिम बढ़ सकता है।
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