मीठी ईद का मधुर सन्देश
एक-दो दिन बाद ईद का त्यौहार आने वाला है। भारत के अधिकतर क्षेत्रों में इसे मीठी ईद…
एक-दो दिन बाद ईद का त्यौहार आने वाला है। भारत के अधिकतर क्षेत्रों में इसे मीठी ईद भी कहा जाता है जो कि ‘ईद-उल-फितर’ का ही नाम है। यह त्यौहार रमजान के मुबारक महीने के पूरे होने पर आता है। भारत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह तीज-त्यौहारों का मुल्क है। इस दिन का इतंजार जितनी बेसब्री के साथ मुसलमान नागरिकों को रहता है उतनी ही शिद्दत के साथ हिन्दू नागरिक भी इसकी प्रतीक्षा करते हैं खास कर वे हिन्दू कारीगर और छोटा-मोटा धंधा करने वाले लोग जो खाने-पीने का सामान बेच कर अपने परिवार का पेट पालते हैं या बच्चों के लिए खिलौने व अन्य सामान बेचने का काम करते हैं। रेहड़ी-पटरी वाले या खोमचा लगा कर अपनी रोजी कमाने वाले हिन्दू दुकानदार इस दिन को बड़ी उम्मीद के साथ देखते हैं। भारत में मुस्लिम त्यौहारों पर भी भारतीयता की छाप रहती है। इस देश की रंग-रंगीली संस्कृति ने सभी धर्मों के लोगों को प्रभावित किया है।
मीठी ईद पर मुस्लिम नागरिक अल्लाह की इबादत में विशेष नमाज पढ़ कर अपनी बेहतरी की दुआएं मागते हैं जिसमें जिस देश में वे रहते हैं उसकी बेहतरी भी शामिल होती है। नमाज पढ़ने के बाद वे एक-दूसरे से गले मिलकर सारे गिले-शिकवे दूर करते हैं। इस दिन कोई भी व्यक्ति अपनी माली हालत की वजह से छोटा-बड़ा नहीं होता है। इस्लाम धर्म का यह सन्देश समाज के सभी वर्गों के लिए होता है, अतः हिन्दू नागरिक भी दिल खोल कर मीठी ईद के दिन मुसलमान मित्रों के गले मिलते हैं। वास्तव में यह त्यौहार समाज में मिठास घोलने का त्यौहार है। इसीलिए इसे कुछ ग्रामीण इलाकों में सिवइयों वाली ईद भी कहा जाता है। आपसी भाईचारे का सन्देश देने वाली इस ईद में किसी प्रकार की सामाजिक कलुषता के लिए कोई स्थान नहीं होता। इसलिए भारत में यह परंपरा रही है कि इस दिन हिन्दू नागरिक अपने मुस्लिम मित्रों के घर जाकर उन्हें ईद की मुबारक बाद देते हैं। हम ईद मुबारक केवल सामाजिक रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए ही नहीं कहते बल्कि मुल्क की खुशहाली के लिए भी कहते हैं क्योंकि वही देश स्थायी तरक्की करता है जिस देश में आपसी सामाजिक भाईचारा कायम रहता है। इसी वजह से इस दिन होने वाली नमाज में मुल्क की तरक्की के लिए भी दुआ मांगी जाती है। जिस प्रकार हम होली, दीवाली का त्यौहार मिलजुल कर मनाते हैं उसी प्रकार मीठी ईद का त्यौहार भी हमें मनाना चाहिए और किसी भी तरह के बैर-भाव को भूल कर आपस में गले मिलना चाहिए।
यह भारत की ही विशेषता है कि यहां के सभी तीज-त्यौहार आपसी एकता को बढ़ावा देते हैं। इसकी वजह मूल रूप से इनका कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था से जुड़ना होता है। और जो व्यक्ति खेती करता है वह सबसे पहले एक किसान होता है हिन्दू-मुसलमान बाद में। यह गौर करने वाली बात है कि कोई भी इंसान भगवान या अल्लाह के यहां यह दरख्वास्त देकर जन्म नहीं लेता कि उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया जाये। जो बालक जिस हिन्दू या मुसलमान के घर में जन्म लेता है वह उसी धर्म का पालन करने लगता है। अतः समाज में यह जज्बा सबसे प्रबल होना चाहिए कि वह सबसे पहले इंसान है क्योंकि अल्लाह या भगवान उसे इसी रूप में जन्म देता है। वह जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे ही हिन्दू या मुसलमान बनता जाता है। सबसे पहले उसका धर्म इंसानियत ही होता है। अतः यह बेवजह नहीं है कि हमारे पुरखों ने हमें जो संविधान आजादी के बाद दिया वह मानवीयता पर ही टिका हुआ है। उसमें प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम को बराबर का दर्जा दिया हुआ है।
धार्मिक पर्व या त्यौहार समाज में खुशी बांटने के लिए ही बने होते हैं। मीठी ईद से पहले रमजान के महीने में मुस्लिम नागरिक आत्मशुद्धि के लिए भी कार्य करते हैं। वे पूरे महीने रोजा या व्रत रखते हैं और दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। पूरे महीने वे स्वयं को अल्लाह द्वारा बख्शी गई नेमतों के हवाले ही करते हैं। इन रोजों को रखने वाले मुसलमान नागरिक अमीर व गरीब भी होते हैं मगर इस्लाम धर्म के मुताबिक इस महीने हर मुस्लिम नागरिक अपने से गरीब नागरिक के लिए जकात भी देता है। वह अपनी आमदनी का एक अंश इस कार्य में लगाता है। इस लिहाज से देखा जाये तो यह धर्म का ‘समाजवादी’ स्वरूप है। क्योंकि जीवन जीने के इस तरीके को ही समाजवाद कहा जाता है। लेकिन इसके साथ यह भी हकीकत है कि भारत के 90 प्रतिशत मुसलमान आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े हुए हैं। इनमें अधिकतर वे लोग हैं जिन्हें पसमान्दा मुस्लिम कहा जाता है।
भारत में जिस तरह इस्लाम धर्म फैला है उस पर हिन्दू समाज की तरह जातिवाद का भी असर हुआ और अधिसंख्य गरीब मुस्लिम इसकी जातियों में भी बंटे हुए हैं फर्क केवल इतना है कि उनकी जातियां उनके काम-धंधे या पेशे से बंधी हुई हैं। अतः भारत में पिछड़ी जातियों को जो आरक्षण मिला हुआ है उसमें मुस्लिम समाज भी आता है। मगर मीठी ईद पर पढ़ी जाने वाली नमाज को लेकर जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में बवाल मचा हुआ है वह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इस दिन सड़कों पर या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने पर पाबन्दी लगा दी गई है। विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में। कहा जा रहा है कि कानून-व्यवस्था की गरज से यह किया जा रहा है क्योंकि संभल शहर में एक धार्मिक स्थान को लेकर हिन्दू-मुसलमानों के बीच विवाद बना हुआ है। यह विवाद न्यायालय के विचाराधीन है। अतः इसे न्यायालय पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए और देश में सामाजिक एकता व सौहार्द को बनाये रखने के लिए मीठी ईद का असली सन्देश पढ़ना चाहिए। इस सिलसिले में देश के 32 लाख गरीब मुसलमानों को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से जो ईद का तौहफा दिया जा रहा है उसका खैर मकदम भी होना चाहिए। उसकी आलोचना करना उचित नहीं है।