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घाटी में फिर टारगेट किलिंग

अब जबकि जम्मू-कश्मीर में अगले वर्ष अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव कराये जाने की संभावनाएं बन गई हैं। मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। हाल ही में जनता का विश्वास जीतने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर का दौरा किया था।

01:12 AM Oct 17, 2022 IST | Aditya Chopra

अब जबकि जम्मू-कश्मीर में अगले वर्ष अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव कराये जाने की संभावनाएं बन गई हैं। मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। हाल ही में जनता का विश्वास जीतने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर का दौरा किया था।

अब जबकि जम्मू-कश्मीर में अगले वर्ष अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव कराये जाने की संभावनाएं बन गई हैं। मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। हाल ही में जनता का विश्वास जीतने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर का दौरा किया था। गृहमंत्री ने कभी आतंकियों के गढ़ रहे बारामूला में भी मंच पर लगा बुलेटप्रूफ कांच हटाकर कश्मीरियों से सीधा संवाद किया था। तो आवाम तक यह संदेश पहुंचा था कि कश्मीर में अब सुरक्षा व्यवस्था काफी पुख्ता है। 35 वर्ष बाद बारामूला में कोई केन्द्रीय मंत्री पहुंचा। अमित शाह के दौरे के दौरान कोई हिंसक घटना या हड़ताल नहीं हुई। अमित शाह को सुनने न केवल वहां भीड़ जुटी बल्कि लोगों ने भारत माता की जयघोष के नारे भी लगाये। गृहमंत्री ने वहां पहाड़ पर रहने वाले लोगों के लिए आरक्षण की घोषणा की थी। इस में कोई संदेह नहीं कि इस समय आतंकवाद अंतिम सांसे गिन रहा है और सुरक्षा बल आतंक पर काफी भारी है। इसी बीच घाटी में एक बार फिर टारगेट किलिंग की घटना से कश्मीरी पंडितों में आक्रोश फैल गया है। आतंकियों ने दक्षिणी कश्मीर जिले के चौधरी गुंड इलाके में कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट्ट की हत्या कर दी। हत्या के विरोध में सैकड़ों विस्थापित कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने विरोध-प्रदर्शन किया। पूरन कृष्ण भट्ट के परिवार ने 90 के दशक में जब कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, तब भी पलायन नहीं ​किया था। भट्ट के दो बच्चों के सर से अब पिता का साया उठ चुका है। एक बार फिर एक मां ने अपना बेटा खोया है और पत्नी ने अपना सुहाग। कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का कहना है कि इस हत्या से उन का डर फिर सच साबित हो गया है कि घाटी में हम सुरक्षित नहीं है। आतंकी संगठन योजनाबद्ध तरीके से कश्मीरी पंडितों और अल्पसंख्यकों की हत्या कर रहे हैं। अब कश्मीरी पंडित सवाल उठा रहे हैं कि कश्मीरी पंडितों की हत्याएं होती रहेंगी?
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कश्मीरी पंडित कर्मचारी पिछले 6 माह से प्रदर्शन कर सुरक्षित  स्थानों पर तबादले की मांग कर रहे हैं लेकिन बार-बार घाटी कश्मीरी पंडितों के लहू से लाल हो रही है। कश्मीरी फ्रीडम फाइटर समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। जब-जब किसी कश्मीरी पंडित की हत्या की जाती है, तब-तब हर बार कोई न कोई नया आतंकी संगठन इसकी जिम्मेदारी लेता है। कश्मीर  में बदलाव की बयार आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को रास नहीं आ रही। बचे-खुचे आतंकवादी पाकिस्तान की शह पर टारगेट किलिंग करके अपनी मौजूदगी का एहसास कराना चाहते हैं। 2020 से लेकर अब तक पूरन भट्ट समेत सात कश्मीरी पंडितों की हत्या हो चुकी है। जो कश्मीरी पंडित सरकार की पुनर्वास योजना के तहत घाटी में पहुंचे थे और उन्हें नौकरी और घर दिए गए थे, उनका भरोसा अब टूटता दिखाई दे रहा है। 
पिछले कुछ सालों में घाटी में अमन बहाली के लिए सख्त सैन्य अभियान चलाए जा रहे हैं। तलाशी अभियान निरंतर चल रहे हैं। पाकिस्तान की तरफ से सड़क मार्ग के जरिए होने वाली तिजारत पर रोक लगी हुई है, जिससे दहशतगर्दों तक पैसा, हथियार वगैरह की आमद लगभग बंद मानी जा रही है। कुछ मौकों पर दोहराया भी गया कि घाटी में दहशतगर्दी अब समाप्त होने को है। मगर हकीकत तब सामने आ जाती है, जब कोई बड़ा हमला हो जाता है।  दरअसल आतंकवादी ताकतें कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया को चुनौती देना चाहते हैं। प्रक्रिया शुरू होने से नैशनल कांफ्रैंस के फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। जम्मू-कश्मीर में अपनी राजनीति की दुकानें चमकाने वाले नेताओं में गुर्जर बकरवाल और पहाड़ी समुदाय को उचित अधिकार दिए जाने से हड़कम्प मचा हुआ है। गुपकार गठबंधन ने फिर से चिल्लाना शुरू कर दिया है, लेकिन उसकी आवाज अब मुखर नहीं रही है। स्थानीय निकायों के चुनाव हुए तो गुपकार गैंग पहले ​विरोध में ​चिल्लाता रहा, लेकिन जब उसे लगा कि राज्य में सत्ता का केन्द्र गांवों में शिफ्ट हो जाएगा तो उसने स्थानीय निकाय चुनावों का समर्थन कर दिया। सरकार द्वारा विधानसभा क्षेत्रों के सीमांकन में पीर पंजाल की विधानसभा सीटों में इजाफा कर ​दिया। इससे भी अलगाववादी नेताओं को सांप सूंघ गया। कश्मीर पर राज करने वाले परिवारों के नेता नहीं चाहते कि सत्ता उनके हाथ से निकलकर गुर्जरों बकरवालों, डोगरी कश्मीरियों और पिछड़ों व दलितों के हाथ में चली जाए। इसलिए वे विरोध कर रहे हैं। कश्मीर में सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं। आतंकी संगठनों में भर्ती होने वाले युवाओं की संख्या भी घटती जा रही है। चुनौती केवल आतंकवाद को समाप्त करने की है। इसके लिए गैर कश्मीरियों की सुरक्षा के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत है। उम्मीद है कश्मीरी पंडितों का खून व्यर्थ नहीं जाएगा और कश्मीर में अमन चैन स्थापित होगा।
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