मोबाइल पर लम्बी बातें करने के दिन लदे
अब मोबाइल पर लम्बी बातचीत करने के दिन लद गए हैं क्योंकि देश की टेलीकॉम कंपनियों रिलायंस जियो, वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल ने अपने टैरिफ बढ़ा दिए हैं।
04:04 AM Dec 03, 2019 IST | Ashwini Chopra
Advertisement
अब मोबाइल पर लम्बी बातचीत करने के दिन लद गए हैं क्योंकि देश की टेलीकॉम कंपनियों रिलायंस जियो, वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल ने अपने टैरिफ बढ़ा दिए हैं। वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल को काफी नुक्सान हो चुका है अगर सरकार राहत का ऐलान न करती तो इन कंपनियों का चलना संभव ही नहीं था। उपभोक्ताओं ने भी टेलीकॉम कंपनियों की स्कीमों का जमकर लाभ उठाया है। जो लोग दिनभर मोबाइल से चिपके रहते थे उन्हें अपनी आदत बदलनी होगी अन्यथा बिल बहुत बढ़ जाएगा। इन कंपनियों के ग्राहक भी करोड़ों में हैं। इसके बावजूद निजी कंपनियों को ताे घाटा हुआ ही, सरकारी कंपनियाें बीएसएनएल और एमटीएनएल की आर्थिक हालत भी खस्ता है। सरकार बीएसएनएल के विनिवेश का ऐलान कर चुकी है।
Advertisement
टेलीकॉम कंपनियों को घाटे के अलावा लाइसैंस फीस और स्पैक्ट्रम फीस के रूप में बड़ी रकम सरकार को चुकानी है। दूसरी तरफ हर क्षेत्र में मांग और खपत कम हो रही है। वाणिज्यिक कामकाज लगभग हर क्षेत्र में धीमी गति से चल रहा है। देश के आठ कोर सैक्टरों में से पांच में वृद्धि की रफ्तार कम हुई है। क्या इन कंपनियों को घाटा बाजार में चली प्राइस वार के चलते हुआ है? इस सवाल का जवाब हर जगह चल रही चर्चा में आम लोग यही देंगे कि इन कंपनियों का घाटा प्राइस वार से हुआ है लेकिन वास्तविकता तो यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से इस उद्योग का संकट काफी बढ़ गया है।
Advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में टेलीकॉम कंपनियों को कहा है कि वह सरकार को 92 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया चुकाएं। इस पर जुर्माना और ब्याज जोड़ने के बाद यह धनराशि 1.33 लाख करोड़ तक पहुंच जाती है। पिछले 14 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की परिभाषा का मामला चल रहा था। टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि इसमें लाइसैंस फीस और स्पैक्ट्रम फीस ही होनी चाहिए और कुछ नहीं होना चाहिए लेकिन सरकार का तर्क था कि इसमें लाइसैंस और स्पैक्ट्रम शुल्क के अलावा यूजर चार्जेज, किराया, लाभांश और पंूजी बिक्री पर मिलने वाला लाभांश भी शामिल किया जाना चाहिए।
सरकार का कहना था कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) की गणना किसी टेलीकाॅम कंपनी को होने वाली सम्पूर्ण आय या राजस्व के आधार पर होनी चाहिए जिससे डिपॉजिट इंट्रस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोतों से हुई आय भी शामिल हो। जबकि कंपनियों का कहना था कि एजीआर की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर ही होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। तीन साल पहले इन कंपनियों पर इस मद में कुल बकाया 29,474 करोड़ रुपए था। जो बढ़कर अब 92 हजार करोड़ हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद घाटे में चल रही कंपनियों के शेयर गिर गए। पूरा उद्योग संकट में है लेकिन रिलायंस जियो ही बेहतर स्थिति में है। अम्बानी की इस कंपनी का गठन 2016 में हुआ था और उस समय से ही जियो दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की कर रही है। यह संकेत पहले ही मिलने लगे थे कि रिलायंस जियो धीरे-धीरे अन्य कंपनियों को पीछे धकेल देगी। उससे या तो दूसरी कंपनियां बंद होंगी या फिर किसी दूसरी कंपनी के साथ उनका विलय होगा।दूरसंचार क्षेत्र में एक ही कंपनी के वर्चस्व का अर्थ एकाधिकारवादी स्थिति ही होती है।
वोडाफोन को हचिसन एस्सार की हिस्सेदारी खरीदने के लिए 11 अरब डॉलर के सौदे और नियामकीय मुद्दों को लेकर मुकद्दमे का सामना करना पड़ा था। प्राइस वार ने कंपनी की मुश्किलें काफी बढ़ा दी थी। घाटे में चल रही कंपनियों ने मोदी सरकार से राहत देने की मांग की थी और यह कहना शुरू कर दिया था कि अगर सरकार ने शीघ्र कोई कदम नहीं उठाया तो भारत में कामकाज करना संभव नहीं होगा। दूरसंचार क्षेत्र में एक लाख नौकरियों पर तलवार लटक गई थी। अंततः सरकार ने वित्तीय संकट से जूझ रही कंपनियों को राहत देते हुए उनके लिए स्पैक्ट्रम फीस किश्त का भुगतान दो साल के लिए टाल दिया है और स्पैक्ट्रम भुगतान की शेष बची किश्तों को बिना समय बढ़ाये बराबर बांटा जाएगा।
वोडाफोन-आइडिया और भारती एयरटेल का सम्मिलित घाटा 74 हजार करोड़ रुपए के पार चला गया है। सरकार के राहत देने से टैलीकॉम कंपनियों को 40 हजार करोड़ की राहत मिलेगी। कुल मिलाकर सस्ते कॉल-डेटा के दिन लद गए हैं। कंपनियों द्वारा टैरिफ बढ़ाये जाने से मोबाइल बिल तो बढ़ेंगे ही। उम्मीद की जानी चाहिए कि टेलीकॉम क्षेत्र फिर से मजबूती के साथ खड़ा हो जाएगा।
Advertisement

Join Channel