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भारत और NATO में बढ़ा तनाव! Russia–Ukraine युद्ध के बाद बदले समीकरण

09:22 PM Jul 20, 2025 IST | Amit Kumar
भारत और nato में बढ़ा तनाव  russia–ukraine युद्ध के बाद बदले समीकरण
भारत और NATO

Russia–Ukraine युद्ध के बाद NATO ने सिर्फ सैन्य गठबंधन तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि अब वह ऊर्जा सुरक्षा, रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक प्रतिबंध जैसे विषयों पर भी सक्रिय हो गया है। इस बीच, भारत द्वारा रूस से सस्ते तेल की खरीद ने पश्चिमी देशों का ध्यान आकर्षित किया है। कई नाटो देश यह मानते हैं कि भारत की यह नीति उनके रूस-विरोधी प्रयासों को कमजोर कर रही है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने यह साफ कहा है कि सस्ते रूसी तेल की खरीद देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए की जा रही है। यह किसी देश के पक्ष में खड़े होने का संकेत नहीं है, बल्कि आर्थिक समझदारी और अपनी जनता की भलाई की नीति है। भारत बार-बार शांति, बातचीत और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन का समर्थन करता रहा है।

पश्चिमी दबाव और भारत की प्रतिक्रिया

नाटो देशों की तरफ से भारत पर संभावित प्रतिबंधों की चर्चा की जा रही है। हालांकि, यह फिलहाल केवल चेतावनी है, लेकिन इससे भारत-पश्चिम रिश्तों में तनाव ज़रूर दिखता है। भारत ने हमेशा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता दी है। चाहे वह रूस से S-400 मिसाइलें खरीदने का मामला हो या जम्मू-कश्मीर पर लिए गए आंतरिक फैसले, भारत ने पश्चिमी आलोचना के बावजूद अपने फैसलों पर कायम रहना चुना।

भारत की संतुलनकारी विदेश नीति

भारत आज एक उभरती शक्ति है जो पुराने और नए साझेदारों के बीच संतुलन बना रहा है। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ "क्वाड" जैसे मंचों में भाग लेने के साथ-साथ वह रूस से अपने ऐतिहासिक रिश्ते भी बनाए रखे हुए है। भारत का मानना है कि वह दोनों पक्षों से संवाद बनाए रखकर वैश्विक स्थिरता में योगदान दे सकता है। (NATO)

रूस-भारत के रिश्ते

भारत और रूस का रिश्ता सिर्फ तेल या रक्षा सौदों तक सीमित नहीं है। यह एक भरोसेमंद रणनीतिक साझेदारी है जो दशकों पुरानी है। 1971 के युद्ध में सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया था, और आज भारत उसी रिश्ते को निभा रहा है। अचानक इस रिश्ते को तोड़ना भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

नाटो की दोहरी नीति पर सवाल

यूरोपीय देश खुद भी युद्ध के शुरुआती महीनों तक रूसी गैस का इस्तेमाल करते रहे। ऐसे में जब भारत अपनी ज़रूरतों के अनुसार कदम उठाता है, तो उसे आलोचना का शिकार क्यों बनाया जाता है? भारत के नीति-निर्माता और जनता, दोनों इस दोहरे मापदंड को समझते हैं।(NATO)

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Amit Kumar

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