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तेरी मिट्टी में मिल जावां... इतनी है दिल की आरजू

हर भारतवासी का एक सपना, एक ख्वाहिश होती है कि वो इस देश के लिए कुर्बान हो जाए, परन्तु यह भी किसी-किसी की किस्मत में होता है। आज सारा देश उन 20 जवानों की शहीदी पर गर्व कर रहा है परन्तु साथ में उदासी है,

12:15 AM Jun 21, 2020 IST | Kiran Chopra

हर भारतवासी का एक सपना, एक ख्वाहिश होती है कि वो इस देश के लिए कुर्बान हो जाए, परन्तु यह भी किसी-किसी की किस्मत में होता है। आज सारा देश उन 20 जवानों की शहीदी पर गर्व कर रहा है परन्तु साथ में उदासी है,

हर भारतवासी का एक सपना, एक ख्वाहिश होती है कि वो इस देश के लिए कुर्बान हो जाए, परन्तु यह भी किसी-किसी की किस्मत में होता है। आज सारा देश उन 20 जवानों की शहीदी पर गर्व कर रहा है परन्तु साथ में उदासी है, दुख है और बदला लेने का जोश भी। उनके परिवारों का दुख देखा नहीं जाता। किसी की एक महीने पहले शादी हुई थी, किसी की एक महीने बाद होने वाली थी। कोई अपने माता-पिता की अकेली संतान थी।
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एक मां ने तो सबके दिलों को चीर कर रख दिया, जब वह अपने बेटे को कंधा दे रही थी और भारत माता की जय भी बाेल रही थी और अपने बेटे को अमर रहे करके नारे भी लगा रही थी। देश पर मर मिटने वाले हर शहीद की मां को सलाम, परन्तु बहुत बड़ा दिल चाहिए जो इस मां ने किया। मां जो खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुलाती है। बचपन में लोरियां गाती है, डांटती है, दुलारती है और आज वो अपने जवान बेटे को कंधा दे रही है। वाह! मां तेरे जज्बे को सलाम और हर देशवासी और सिपाही को सलाम, जिसके लिए देश यानि भारत माता सबसे पहले है।
जिस तरह से हमारे बीस सैनिकों ने लद्दाख में देश की सुरक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी है अगर मैं यह कहूं कि ऐसा उदाहरण भारतीय इतिहास में नहीं मिलता तो यह गलत होगा। चीन की करतूतें बेनकाब हो गयी और इस दुखदायी बेला में पूरा देश बीस जवानों के परिवारों के साथ खड़ा है। इसके बावजूद किसी मां के बेटे, किसी बहन के भाई और किसी का सुहाग छिन जाने की जो पीड़ा है वह कम तो नहीं हो सकती परंतु हमें यह अहसास  इन जांबाज शहीदों के परिवारों को दिलाना होगा कि पूरा देश आपके साथ खड़ा है। लद्दाख की गलबान घाटी में हमेशा तापमान शून्य से नीचे रहता है और अब हमारी सरकार ने वहां पर किसी अकेली एक रेजिमेंट को तैनात नहीं किया बल्कि पूरे देश की अलग-अलग रेजिमेंटों के जवान वहां हम सब की सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं। हालांकि सबसे ज्यादा शहीद बिहार रेजिमेंट से हुए हैं, इसी तरह पंजाब रेजिमेंट के तीन जवान शहीद हुए हैं, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश देश के हर हिस्से से जवान शहीद हुए हैं और सैनिकों की इस शहादत से पूरे देश में गुस्से का उबाल है। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी, गृहमंत्री अमित शाह  और रक्षामंत्री राजनाथ के अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि चीन की बर्बरता का जवाब दिया जायेगा और हमारे संयम को कमजोरी न माना जाये। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे जवानों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने दिया जायेगा परंतु यह सच है कि देश इस समय बदला चाहता है। 
दरअसल शहादत और खून की होली के बारे में सबसे ज्यादा वे लोग जानते और समझते हैं जिन्होंने इसे झेला हो। हमारे अपने पंजाब केसरी परिवार में परम श्रद्धेय अमर शहीद लाला जगत नारायण जी और श्री रमेश चंद्र जी ने आतंकवाद की बलिवेदी पर अपने प्राण न्यौछावर किये थे। इसलिए मैं इस पीड़ा को समझ सकती हूं। बात 1980 के दशक के बाद की है जब पंजाब में आतंकवाद जन्म ले रहा था और निरीह हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा था तब परम श्रद्धेय लाला जी ने और श्री रमेश जी ने शहीद परिवार फंड स्थापित किया था ताकि जो लोग पंजाब की धरती पर आतंकवादियों द्वारा मारे जा रहे हैं उनके परिवारों की यथा संभव मदद की जा  सके।
जब 2008 में मुंबई अटैक हुआ तो हमारे कई जवान वहां भी शहीद हुए। सेना के जवान देश के लोगों की रक्षा केवल बॉर्डर पर ही नहीं बल्कि देश के अंदर भी हर मोर्चे पर कर रहे हैं और ऐसा करते हुए कश्मीर घाटी में हमारे सीआरपीएफ, जम्मू कश्मीर पुलिस, बीएसएफ और हमारी सेना के जवानों ने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दी हैं। मुंबई अटैक के एक शहीद कमांडो के परिजनों से हम मिले और उनको हमने सम्मान पूर्वक अपने साथ जोड़ा। वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की चेयरपर्सन होने के नाते हमने बुजुर्गों के सम्मान के साथ-साथ देश के लिए शहीद होने वाले जवानों के परिवारों से भी रिश्ता बनाया। 
जितनी भी किताबें मैंने वरिष्ठ नागरिकों के लिए लिखीं उनकी बिक्री का पैसा शहीदों के परिवारों को दिया। वैसे यह बहुत थोड़ी सी तुच्छ भेट होती है, उन परिवारों को बताने के लिए एक भावना होती है कि सारा देश और वरिष्ठ नागरिक क्लब आपके साथ खड़ा है क्योंकि सरकारें भी बहुत कुछ करती हैं, हम तो सिर्फ अपना प्यार और साथ देने का अहसास देते हैं।  करनाल, पानीपत, पलवल, गुरुग्राम,जयपुर तक हमने  शहीद परिवारों के परिजनों के साथ मिलकर उनके साथ खड़े होने का अहसास दिलाया। 
लद्दाख में शहीद होने वाले गुरदासपुर के सतनाम सुबेदार सिंह हो या पटियाला के नायब सुबेदार मनदीप सिंह या फिर बिहार रेजिमेंट के सीओ कर्नल संतोष बाबू हों या हवलदार पालानी हों, हम सबका फर्ज है कि शहीदो के परिजनों के दु:ख दर्द हम अब अपने नाम कर लें, यही सही मायनों में जीवन है। 26 साल के शहीद कुंदन ओझा अभी बीस दिन पहले ही एक नन्हीं बेटी के पिता बने थे और वह उसका चेहरा भी न देख पाये। रीवा के दीपक सिंह की उम्र महज 21 साल थी और अभी आठ महीने ही उनकी शादी हुई थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ के जवान गणेश कुंजम, जो वीरगति को प्राप्त हुए, भी महज एक महीने पहले ही लद्दाख में तैनात हुए थे। सीओ कर्नल संतोष बाबू की माता ने कहा कि मेरा एक मात्र बेटा था जिसे मैंने खो दिया लेकिन उसने देश के लिए कुर्बानी दी है मुझे इसलिए उस पर गर्व है। शहीद सुनील कुमार की पत्नी रीता कुमारी ने कहा कि मेरे पति की शहादत तब पूर्ण होगी जब चीन से बदला लिया जायेगा। 
यद्यपि हर शहीद की राजकीय सम्मान के साथ विदाई हो गयी परंतु शहीद परिवार से जुड़ी होने के कारण सरकार से प्रार्थना है कि शहीदों के परिवारों ने चीन पर जो आर्थिक पाबंदी लगाने की बात कही है उसका सम्मान किया जाना चाहिए। भारतीय बाजार से चीनी सामान का बहिष्कार हो, यही सबसे बड़ा प्रतिशोध चीन से होगा। पूरा देश हर चीनी आइटम का अपने घर से बहिष्कार करने का संकल्प ले ले तो चीन की ऐंठन हमारे घुटनों पर आ जायेगी। आखिर में यही कहूंगी कि इन शहीदों के साथ हमारे हर देशवासी की यही ख्वाहिश होनी चाहिए-तेरी मिट्टी में मिल जावां…!
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