थरूर ने सवाल तो वाजिब पूछा है...!
68 वर्षीय शशि थरूर इन दिनों क्या कांग्रेस से बगावत पर उतर आए हैं?
युवाओं के हृदय पर राज करने वाले 68 वर्षीय शशि थरूर इन दिनों क्या कांग्रेस से बगावत पर उतर आए हैं? मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता क्योंकि वे मेरे अच्छे दोस्त हैं और मैं उनके व्यक्तित्व को बहुत करीब से जानता हूं। शशि थरूर बेहद बेबाक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं और जो सच है, उसे कहने में कभी नहीं हिचकते। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली है कि हर राजनीतिक दल उन्हें अपने पास रखना चाहेगा, सभी दलों में वे लोकप्रिय हैं। इसके बावजूद यदि वे कांग्रेस में बने हुए हैं तो इसका कारण कांग्रेस की मूल नीतियों के प्रति उनकी समझ है। सच कहने को बगावत कतई नहीं कहा जा सकता।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए शशि थरूर खड़े हुए तब उनका उद्देश्य युवाओं को आकर्षित करके पार्टी में नई ऊर्जा का संचार करना था। बहुत से लोग आज भी यह महसूस करते हैं कि थरूर यदि अध्यक्ष बने होते तो कांग्रेस की स्थिति निश्चय ही बिल्कुल अलग होती। थरूर के बहुआयामी व्यक्तित्व के बारे में हम सब अच्छी तरह से जानते हैं, वे भीड़ में भी अलग काबिलियत रखते हैं। इसके बावजूद यदि उन्हें लग रहा है कि पार्टी उनका सदुपयोग नहीं करती है और अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के बाद उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया है तो यह कांग्रेस के लिए ज्यादा घाटे की बात है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस के भीतर शशि थरूर के कद का कोई नेता मौजूद नहीं है, वे देश की नब्ज पहचानते हैं तो दुनिया की नब्ज भी उनसे अछूती नहीं है।
उनकी खासियत यह भी है कि वे इतने विद्वान होने के बावजूद अपनी काबिलियत को किसी पर थोपते नहीं हैं। उनका व्यवहार बड़ा सहज और सरल होता है। शशि थरूर को राजनीति में लाने का खयाल सबसे पहले डॉ. मनमोहन सिंह को आया था। 2009 से लगातार तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने जाते रहे हैं। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में वे विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन राज्य मंत्री थे। हालांकि उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें कैबिनेट पद मिलना चाहिए था। लेकिन उन्होंने कभी ऐसी मांग नहीं की, लेकिन उन्हें यह बात बहुत खलती थी कि मनमोहन सिंह को कांग्रेस का एक खेमा बहुत परेशान करने में लगा था। चापलूसी पसंद वह खेमा शशि थरूर को बर्दाश्त नहीं कर सका। गुलाम नबी आजाद के जी-23 में भी शशि थरूर सक्रिय भागीदार थे और तब उन्होंने पार्टी लीडरशिप को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे। जाहिर है कि चापलूसी पसंद खेमा इस बात से भी अब तक नाराज ही चल रहा है।
करीब दो सप्ताह पहले शशि थरूर ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी। उन्होंने राहुल से कहा कि संसद में महत्वपूर्ण बहसों के दौरान उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जाता। लगातार अनदेखी की जा रही है। राहुल गांधी ने क्या जवाब दिया, यह तो पता नहीं लेकिन मुझे भी यह कभी समझ में नहीं आया कि थरूर जैसे व्यक्ति को कोई पार्टी कैसे इग्नोर कर सकती है। उनके जैसा वक्ता पास में हो तो पार्टी प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है। 2014 से 2019 तक मल्लिकार्जुन खड़गे को और उसके बाद अधीर रंजन चौधरी को 2019 से 2024 तक संसदीय दल का नेता बनाए रखा जबकि शशि थरूर जैसा प्रभावी प्रहार करने वाला नेता पार्टी के पास सदन में मौजूद था।
याद कीजिए कि शशि थरूर ने जब ऑक्सफोर्ड में खड़े होकर ब्रिटेन द्वारा भारत की लूट-खसोट पर तथ्यों के साथ भाषण दिया तो पूरा भारत वाह-वाह कर उठा! ऐसा इसलिए कि वे तथ्यों के साथ बात करते हैं, पिछले वर्षों में कांग्रेस ने पार्टी के भीतर ढेर सारे बदलाव किए। अभी हाल ही में दो महासचिवों की नियुक्ति हुई और कई राज्यों के प्रभारी बदले गए लेकिन थरूर के लिए कोई जगह न बननी थी और न बनी। यहां तक कि जिस ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस की पूरी रचना शशि थरूर ने की थी, उसी के प्रभार से उन्हें हटा दिया गया। ताजा मामला यह है कि शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे को सफल बताते हुए तारीफ कर दी। उन्होंने लिखा… ‘प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात के कुछ महत्वपूर्ण परिणाम देश के लोगों के लिए अच्छे हैं। मुझे लगता है कि इसमें कुछ सकारात्मक हासिल हुआ है, मैं एक भारतीय के रूप में इसकी सराहना करता हूं, इस मामले में मैंने पूरी तरह से राष्ट्रीय हित में बात की है।’
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की तारीफ वे कर ही चुके थे। शशि थरूर ने अपने एक लेख में केरल की वामपंथी सरकार की तारीफ करते हुए लिख दिया था कि भारत के टेक्नोलॉजिकल और इंडस्ट्रियल चेंज का नेतृत्व करने के लिए केरल अच्छी स्थिति में है, इन तारीफों से कांग्रेस उबाल पर आ गई। इसी उबाल पर थरूर ने कहा कि वे कांग्रेस के साथ हैं लेकिन पार्टी को मेरी जरूरत नहीं है तो मेरे पास भी विकल्प मौजूद हैं। थरूर यदि इतने धाकड़ तरीके से बात करते हैं तो इसका कारण उनकी जमीनी पकड़ है, तिरुवनंतपुरम संसदीय सीट पर मोदी लहर में भी उनकी जीत यह बताती है कि मतदाताओं पर उनकी पूरी पकड़ है। वे चाहते हैं कि अगले साल केरल विधानसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में कांग्रेस लड़े। वे जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं लेकिन पार्टी को फिक्र कहां है ?
मैं तो बस यही सोच रहा हूं कि जो कांग्रेस देश की धड़कन हुआ करती थी वह तमिलनाडु में 58 साल, पश्चिम बंगाल में 48 साल, केरल में 41 साल, उत्तर प्रदेश में 36 साल, बिहार में 35 साल, गुजरात में 30 साल और ओडिशा में 25 साल से सत्ता में नहीं आई! दिल्ली में पार्टी का सफाया हो गया है। पंजाब में सत्ता से दूर है, महाराष्ट्र में कांग्रेस की धज्जियां उड़ चुकी हैं। इस पार्टी को आखिर हो क्या गया है? यही सवाल करोड़ों कार्यकर्ता भी सोच रहे हैं लेकिन क्या शिखर नेतृत्व भी कभी इस बारे में सोचता है? इस सवाल का जवाब बड़ा मुश्किल है। फिलहाल शशि थरूर ने अपने एक्स एकाउंट पर जो पोस्ट डाला है, उस पर आप गौर कीजिए… ‘जहां लोगों को अज्ञानता में खुशी मिलती है, वहां बुद्धिमानी दिखाना मूर्खता है।’