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वो लाइट हाउस....

30 साल के एक युवक की छवि टीवी स्क्रीन पर नज़र आई, जो भीड़ के बीच अपने घुंघराले बालों को दोनों हाथों से सहला रहा था

10:09 AM Oct 24, 2024 IST | Kumkum Chaddha

30 साल के एक युवक की छवि टीवी स्क्रीन पर नज़र आई, जो भीड़ के बीच अपने घुंघराले बालों को दोनों हाथों से सहला रहा था

वो लाइट हाउस

30 साल के एक युवक की छवि टीवी स्क्रीन पर नज़र आई, जो भीड़ के बीच अपने घुंघराले बालों को दोनों हाथों से सहला रहा था, वही युवक मोटरसाइकिल पर सवार होकर एक जुलूस का नेतृत्व भी कर रहा था। उसके पीछे चल रही एंबुलेंस में उसके मार्गदर्शक और मित्र, जिन्होंने उसे मित्रता का नया अर्थ सिखाया था, उनका पार्थिव शरीर था। वह युवक शांतनु नायडू थे, जो अब अकेले ही अपने जीवन के धागों को बुनने की कोशिश कर रहे हैं। और वह व्यक्ति जो अब नहीं रहे, वह थे उद्योगपति और परोपकारी रतन जे.आर.डी. टाटा, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में अपनी अंतिम सांस ली।

दुनिया ने उस दूरदर्शी महापुरुष के निधन पर अश्रु बहाए, जिन्होंने व्यापार को नया आयाम दिया और अनगिनत जीवन छुए, जैसा कि बहुत कम लोग कर पाते हैं। उन्हीं में से एक थे शांतनु नायडू, वह युवा व्यक्ति जिन्होंने उस सुबह टाटा जी कीअंतिम यात्रा वाहन का नेतृत्व किया। दोनों के बीच लगभग छह दशकों का आयु अंतर होने के कारण यह स्वाभाविक था कि शांतनु को ही पहले अपने मित्र को अंतिम विदाई देनी पड़ सकती थी लेकिन ऐसा किसी ने भी सोचा नहीं था ​िक यह सब इतनी जल्दी हो जायेगा।

रतन टाटा जी 87 वर्ष के थे जब उनका निधन हुआ, लेकिन उनके जैसे कर्मठ व्यक्ति कुछ और वर्षों के हकदार थे । शांतनु जैसे कई लोग, चाहे युवा हों या वृद्ध, यही चाहते थे क्योंकि रतन टाटा अपने साथ उन सभी के जीवनों के वो हिस्से ले गए जिन्हे उन्होंने छुआ था और रूपांतरित किया था, शांतनु इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। तो, आखिर शांतनु कौन हैं और रतन टाटा जैसे महान व्यक्ति के निधन के साथ उन पर सबकी नज़र क्यों थी? शुरू से शुरू करें तो हमें 2014 में वापस जाना होगा। उस समय नायडू पुणे में एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे। उनके कुत्तों के प्रति प्रेम ने उन्हें आवारा कुत्तों के लिए रात में चमकने वाले कॉलर का आविष्कार करने के लिए प्रेरित किया। इन कॉलरों से कुत्ते रात में दिखाई देने लगे और सड़कों पर होने वाले हादसों से बचने लगे।

यह एक अनोखा विचार था जिसे कई लोगों ने सराहा, लेकिन इसके लिए कोई फंडिंग नहीं थी, जो किसी भी परियोजना को हकीकत में बदलने के लिए जरूरी होती है। शांतनु के पिता ने उन्हें रतन टाटा को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके पीछे दो कारण थे, एक यह कि टाटा पशु प्रेमी थे और दूसरा कि उनके पास अपार धन था। नायडू ने प्रयास किया और यह सफल रहा।

दो महीने से भी कम समय में शांतनु रतन टाटा से आमने-सामने मिले। उन्हें वास्तव में टाटा ने मुंबई स्थित अपने कार्यालय में आमंत्रित किया था। इसके बाद पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं रही। टाटा जी ने शांतनु नायडू के उद्यम ‘मोटोपॉज़’ का मार्गदर्शन किया और इसे समर्थन दिया, जो पशुओं से संबंधित दुर्घटनाओं को रोकने के लिए था। नायडू यहीं नहीं रुके। टाटा जी के मार्गदर्शक, मित्र, दार्शनिक और सलाहकार के रूप में सहयोग मिलने से, शांतनु ने कई परियोजनाओं पर मेहनत से काम किया, जिसमें वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक साथी सेवा ‘गुडफेलोज’ भी शामिल है। बाद में उन्हें टाटा जी के सहायक के रूप में नियुक्त किया गया और नायडू टाटा ट्रस्ट के सबसे युवा महाप्रबंधक (जनरल मैनेजर ) बने।

नायडू ने टाटा जी के साथ अपने संबंध और उनके जैसे एक महान औद्योगिक हस्ती के साथ काम करने के अद्वितीय अनुभव पर एक किताब भी लिखी है। फिर वह ‘शर्ट की कहानी’ या वह घटना जब नायडू ने टाटा जी को केक का एक टुकड़ा खिलाया, जैसे और भी कई पल थे। शांतनु ने अपनी किताब ‘केम अपॉन ए लाइटहाउस’ में कई ऐसे किस्से साझा किए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि नायडू का ‘लाइटहाउस’ और कोई नहीं बल्कि वही अद्वितीय रतन टाटा हैं; वही व्यक्ति जिनकी मृत्यु ने एक ‘गहरा घाव’ छोड़ दिया है, जिसे शांतनु ने कहा कि वह अपनी पूरी ज़िंदगी भरने की कोशिश करेंगे।

यह सिर्फ दो व्यक्तियों की दुर्लभ और प्रिय मित्रता के बारे में नहीं बताता, जो उम्र के बड़े अंतर से अलग थे, बल्कि यह भी उजागर करता है कि रतन टाटा कैसे व्यक्ति थे। एक ऐसे व्यक्ति जो मानवीय संबंधों को सबसे अधिक महत्व देते थे, एक व्यक्ति जो ईमानदारी को सर्वोपरि मानते थे, और वह व्यक्ति जिन्होंने शांतनु द्वारा गलती से उनकी शर्ट फाड़ देने के बाद, वैसी ही शर्ट को अमेरिका में खोज निकाला।

रतन टाटा की मृत्यु के बाद दुनियाभर से श्रद्धांजलियां आईं, लेकिन जो दिल को छू गईं, वे आम लोगों द्वारा लिखी गईं और साझा की गईं कहानियां थीं कि कैसे वह कोलाबा में अपने कुत्तों को टहलाने ले जाते थे और बच्चों से बातचीत करने का समय निकालते थे, ऐसी और भी बहुत सी बेहतरीन कहानियां हैं। लोग रतन टाटा के बारे में बात करते समय कई गुणों का उल्लेख करते हैं, उनकी दूरदर्शिता, नैतिकता, सम्मान, ईमानदारी, उत्साह, दृढ़ता और करुणा। वह हमेशा दूसरों की मदद करने का सोचा करते थे। जो लोग उनसे मिले थे, वे खुद को धन्य मानते हैं और जो नहीं मिल पाए, उन्होंने इच्छा जताई कि काश वह मिल पाते।

उनकी व्यावसायिक पहलों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है, जिसमें एक औसत भारतीय के लिए कारों को सुलभ बनाने के लिए “नैनो” का लॉन्च भी शामिल हैऔर साथ ही जैगुआर, लैंड रोवर और टेटली जैसी कंपनियों का अधिग्रहण करना भी ।

लेकिन शायद ही कोई सफलता बिना विवादों के आती है। रतन जी के साथ भी ऐसा हुआ, ममता बनर्जी द्वारा नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ सिंगूर में किए गए विरोध प्रदर्शन, जिसने टाटा मोटर्स को गुजरात स्थानांतरित होने पर मजबूर कर दिया। साइरस मिस्त्री द्वारा लगाए गए कई आरोप, जिन्हें टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था, बॉम्बे डाइंग के प्रमुख नुस्ली वाडिया द्वारा टाटा पर दायर मुकदमे और इसी तरह के कई अन्य मामले।

परन्तु जिस इंसानियत की मिसाल रतन टाटा थे, उसका कोई मुकाबला नहीं, बेहद विनम्र और ज़मीन से जुड़े हुए। हर उस व्यक्ति की मदद के लिए तत्पर, जिसने उनसे सहायता मांगी, शांतनु इसका एक शानदार उदाहरण हैं। विडंबना यह है कि अगर रतन टाटा को ‘लोक नायक’ कहा जाए, तो यह गलत होगा क्योंकि वे मितभाषी थे और अक्सर लोगों के बीच दिखाई नहीं देते थे। फिर भी, उन्होंने जीवनों को छुआ, और देश के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों और वैश्विक शक्ति के रूप में होते हुए भी, उन्होंने हमेशा लोगों के साथ चलना चुना।

– कुमकुम चड्ढा

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