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आतंकियों का मक़सद - देशवासियों में भाईचारक सांझ तोड़ना

04:15 AM Nov 13, 2025 IST | Sudeep Singh

आतंकवाद का कोई भी धर्म या मज़हब नहीं होता और ना ही इनके दिलों में मानवता होती है, इनका मकसद केवल समाज में आतंक पैदा कर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करना होता है। पिछले लंबे समय से भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान बड़े पैमाने पर आतंकियों को समर्थन देकर उनका इस्तेमाल भारत में आतंक का माहौल बनाने के लिए करता है। पाकिस्तान की हमेशा मंशा रहती है कि भारत में आपसी प्रेम और भाईचारक सांझ को तोड़ा जाए जिसके लिए वह अक्सर मुस्लिम और सिख भाईचारे के बेरोजगार और जरूरतमंद युवाओं को धर्म की आस्था के नाम पर या फिर पैसे का लालच देकर आतंकी गतिविधियों में शामिल करता है और युवा वर्ग जिसे अपने धर्म के प्रति ज्ञान का अभाव रहता है वह जल्द ही इनके झांसे में फंस जाते हैं। देखा जाए तो कोई भी धर्म इस बात की इजाजत नहीं देता कि बिना वजह किसी का खून बहाया जाए, आतंक पैदा किया जाये।
हाल ही में दिल्ली के लाल किला के पास जहां हमेशा भीड़भाड़ रहती है वहां विस्फोट किया गया जिससे साफ है कि आतंकियों ने केवल आतंक पैदा करने की दृष्टि से ऐसा किया और यह भी हो सकता है कि गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी शताब्दी समागम जो कि लाल किला मैदान में होने वाले हैं जिनकी तैयारियां लगातार जारी हैं और देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर कई श्रमिक और राजनीतिक शख्सियतों के साथ-साथ देश-विदेश से लाखों की गिनती में श्रद्धालुगण भाग लेने वाले हैं। मगर शायद आतंकी संगठनों को यह समागम नाखुशगवार है। वह नहीं चाहते कि हिन्दू-सिख भाईचारा मिलकर रहे और इस काम में खालिस्तानी संगठनों के द्वारा भी कई तरह की साजिशें रची जा रही हैं। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है जहां एक ओर हर कोई लाल किला के पास हुए धमाके पर दुख प्रकट कर रहा है वहीं खालिस्तानी संगठनों के नुमाइंदे बेतुकी बयानबाजी करते दिख रहे हैं जिससे पता चलता है कि उनकी मानवीयता मिट चुकी है, वे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी नीचता तक उतर सकते हैं।
खालिस्तानी संगठनों के प्रतिनिधि इस घटना को 1984 के सिख विरोधी हत्याकांड से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें हजारों सिखों का एक पार्टी विशेष के द्वारा सुनियोजित तरीके से कत्लेआम किया था।
मौजूदा समय में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सहित अन्य सिख संस्थाओं को सहयोग कर गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी समागमों को मनाने जा रहे हैं जिससे आने वाले समय में हिंदू-सिख एकता को मजबूती मिलने वाली है। देश की बागडोर इस वक्त जिन हाथों में है वह इस बात को भली-भांति समझते हैं कि आज अगर देश में लोकतंत्र कायम है, धर्म की आजादी है तो वह गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की बदौलत है, अन्यथा मुगल शासकों ने सैंकड़ों वर्ष पूर्व ही सभा समाप्त करने की ठान ली थी थी।
पाकिस्तान सिखों की भावनाओं से खिलवाड़ बंद करे: पाकिस्तान अपनी गंदी राजनीति से बाज नहीं आ रहा है। एक ओर वह सिख समुदाय का हमदर्द बनकर गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर भारत के सिख श्रद्धालुओं को ननकाणा साहिब में दर्शनों हेतु आमंत्रित करता है, सरकारी सहयोग के साथ पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी पूर्ण इन्तजाम करने का संसार भर में ढिंडौरा पीटती है मगर शायद असलियत कुछ और ही बयान करती है। आज पाकिस्तान में सैंकड़ों गुरुघर ऐसे हैं जिनकी हालत पूरी तरह से खस्ता हो चुकी है या फिर पाकिस्तानियों ने जबरन उन स्थानों पर कब्जा कर लिया है मगर अफसोस की बात कि ना तो पाकिस्तान गुरुद्वारा प्रबन्धक के द्वारा इस पर कोई संज्ञान आज लिया जाता है और ना ही विदेशों में बैठे पाकिस्तानी एजेन्सियों के रहमो करम पर पलने वाले खालिस्तानियों के द्वारा एक भी शब्द बोला जा रहा है। उन्हें भारतीय हकूमत की खामियां तो दिखाई देती हैं मगर पाकिस्तान का नाम आते ही बोलती बन्द हो जाती है जबकि भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्र व राज्यों की सरकारों के द्वारा सिख गुरु साहिबान के प्रति पूर्ण श्रृद्धा भावना और सिख समुदाय को सम्मान दिया जाता है। पाकिस्तान में स्थित ऐतिहासिक पवित्र स्थलों जिनका सिख इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, अब जर्जर हो चुके हैं और प्रशासनिक लापरवाही के कारण वे धीरे-धीरे खंडहर बन रहे हैं। वजीराबाद में स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब, गुरुद्वारा भाई बेहलो जी और कई अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारे जो सिख धर्म की प्राचीन विरासत से जुड़े हैं, अब खस्ताहाल स्थिति में हैं। दीवारें टूट चुकी हैं, गुंबद गिर रहे हैं और आस-पास की भूमि पर भी अतिक्रमण हो चुका है। 250 से अधिक ऐतिहासिक गुरुद्वारे दयनीय स्थिति में हैं। इसलिए अगर वाक्य में ही पाकिस्तानी सरकार और प्रशासन सिख गुरु साहिबान के प्रति सत्कार यां सिखों से प्रेम रखता है तो इन गुरुद्वारों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए रखरखाव को बेहतर बनाए वरना अपनी नौटंकी से बाज आए।
सिखी स्वरूप में आयरन मैन बनकर ग्रीस में भारत का झण्डा बुलंद किया :आज के समय में देखने को मिलता है किसी मुकाम तक पहुंचने से पहले ही लोग अपने सिखी स्वरूप की तिलांजलि दे देते हैं क्योंकि ज्यादातर युवाओं को यह लगता है कि सिखी स्वरूप कहीं ना कहीं उनकी काबलियत में रुकावट पैदा कर सकता है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। सिखी स्वरूप में रहते हुए ही सिख सैनिकों के द्वारा अनेक युद्धों में विजयी हासिल की। यहां तक कि अंग्रेजी हकूमत के समय में सिख सैनिक अपनी सिखी वेशभूषा में ही रहते थे। कुछ सालों पहले तक जितने भी खिलाड़ी भले ही किसी भी खेल से हों अपने सिखी स्वरूप के साथ ही खेलते हुए देश को अनेक पदक जीतकर दिए। मगर अचानक फैशन प्रस्ती की एक ऐसी हवा चली जिसने सिख युवाओं के दिलों दिमाग पर सिखी स्वरूप से छेड़छाड़ का चलन पैदा कर दिया और आम सिख से लेकर, बडे़ व्यवसायी, खिलाड़ी, फौजी कोई भी इससे बच नहीं पाए। सबसे अधिक नुक्सान सिखी को पंजाबी फिल्मों और पंजाबी सिंगरों ने पहुंचाया। सिख युवा इन्हें ही अपना रोल माडल समझकर इनके जैसे दिखने के चक्कर में सिखी स्वरूप का त्याग करने लगे। जिसके परिणाम स्वरूप आज बहुत ही कम युवा ऐसे बचे हैं जो आज भी पूर्ण सिखी स्वरूप मंे रहकर केवल देश ही नहीं विदेशों में भी जाकर देश, कौम का नाम रोशन कर रहे हैं। इन्हीें में एक हैं विक्रमवीर सिंह बावा जिसने अपने पूरे सिखी स्वरूप के साथ ग्रीस में आयरन मैन का खिताब हासिल किया है। विक्रम वीर सिंह श्री गुरु अंगद देव जी की 16वीं पीढ़ी से हैं। उनसे पहले बावा दासू जी, शिरोमणि पंथ अकाली बुढ़ा दल के पहले मुखी जथेदार बाबा बिनोद सिंह जी, और 15वीं पीढ़ी के बावा गुरिंदर सिंह जो कि अनेक धार्मिक जत्थेबं​िदयों से जुड़े हुए हैं। तख्त पटना साहिब कमेटी सदस्य, एवं चीफ खालसा दीवान महाराष्ट्र के प्रधान गुरिंदर सिंह बावा के पूरे परिवार का गुरुघरों में सेवा से जुड़ाव एवं सिखी प्रचार को समर्पित होने का परिणाम ही है कि परिवार के युवा भी अपने पुर्वजों के दिखाए रास्ते पर चलते हुए देश, धर्म और समाज का नाम रोशन करते आ रहे हैं। जिस वक्त विक्रम वीर सिंह बावा ने यह खिताब जीता, उस समय जयकारों की गूंज से माहौल देखने योग्य था। विक्रम वीर सिंह बावा ने अब तक अपने खाते में तीन “आयरन मैन” खिताब दर्ज किए हैं। उन्होंने 2017 में तुर्की, 2023 में गोवा और अब 2025 में ग्रीस में यह उपलब्धि हासिल की है।

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