अब गेंद केन्द्र के पाले में
पंजाब-हरियाणा सीमा पर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के झंडे तले किसान…
पंजाब-हरियाणा सीमा पर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के झंडे तले किसान लगभग एक साल से धरने पर बैठे हुए हैं। कैंसर रोगी 70 वर्षीय बुजुर्ग किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेेवाल के आमरण अनशन ने आंदोलन को एक नया मोड़ दे दिया है। डल्लेवाल के आमरण अनशन को 41 दिन पूरे हो चुके हैं। आंदोलित किसानों की सबसे अहम मांग यही है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए लेकिन केन्द्र सरकार किसान आंदोलन के प्रति उदासीन बनी हुई है और कोई साकारात्मक संकेत भी नहीं दे रही। दिल्ली की सेवाओं पर लम्बे चले किसान आंदोलन को जब समाप्त कराया गया था तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विवादास्पद कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा की थी। उसके बाद एक समिति गठित की गई थी, जिसकी अध्यक्षता पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को सौंपी गई थी। उस समिति की दो साल से अधिक समय के दौरान करीब 100 बैठकें हो चुकी हैं लेकिन समिति की कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। जगतीत सिंह डल्लेवाल के समर्थन में हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर किसानों की महापंचायत में डल्लेवाल ने अपना अनशन समाप्त करने से इंकार कर दिया। उन्होंने सभी राज्य के किसानों से आंदोलन करने की अपील की और कहा कि मांगें पूरी न होने तक उनका अनशन जारी रहेगा। डल्लेवाल की बिगड़ती सेहत के दृष्टिगत उन्हें चिकित्सा सेवा दिलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट कई बार पंजाब सरकार को कह चुका है मगर हर बार पंजाब सरकार शीर्ष अदालत से समय मांग लेती है।
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बाद पंजाब सरकार ने यह सुनिश्ति करने का भरोसा दिया है कि किसान नेता का अनशन तुड़वाए बिना उन्हें चिकित्सा सहायता मुहैय्या कराने की कोशिश करेगी। पंजाब सरकार की दलील है कि वह इस मसले पर बल प्रयोग नहीं करना चाहती। पंजाब सरकार ने अब गेंद पूरी तरह से केन्द्र के पाले में डाल दी है। पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर किसानों का आंदोलन समाप्त कराने के लिए हस्तक्षेप की मांग की है। पंजाब सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा था कि अनशनकारी जगजीत सिंह डल्लेवाल का कहना है कि वे चिकित्सा सहायता तभी स्वीकार करेंगे जब केन्द्र बातचीत की इच्छा व्यक्त करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आगाह किया था कि अगर पंजाब सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटती है तो उसे केन्द्र सरकार से हस्तक्षेप के लिए कहना पड़ सकता है।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का 17 फीसदी से अधिक का योगदान है और देश के कार्यकाल में करीब 47 फीसदी कृषि और किसान का योगदान है। देश की करीब दो-तिहाई आबादी कृषि के भरोसे है। किसान की आय से अधिक खर्च बढ़े हैं और प्रति किसान 91000 से अधिक का कर्ज है। किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं। पिछले दिनों उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी किसानों को लेकर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल किए थे। यह पहली बार है कि उपराष्ट्रपति ने कृषि मंत्री से ऐसे सवाल किए हैं। उपराष्ट्रपति का सवाल है कि देश का किसान लगातार परेशान, पीड़ित और आंदोलित क्यों है? वास्तव में यदि एक बार फिर राजधानी दिल्ली या उसके आसपास के क्षेत्रों में किसान लामबंद होते हैं तो चौतरफा जन-व्यवस्था अराजक हो जाएगी। दूसरी ओर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि एमएसपी की कानूनी गारंटी कोई समाधान नहीं है। सिर्फ खुला बाजार देने से ही किसान के हालात बदल सकते हैं। सवाल है कि किसान फिर से आंदोलन पर उतारू क्यों हैं।
यह बहस का विषय है कि अदालत का अल्टीमेटम ऐसी स्थितियों में कितना उपयोगी होगा जब नीतिगत, कानून एवं व्यवस्था और राजनीति के मसले सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। शायद, अदालतों को इतना हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और सरकारों को इस किस्म के घटनाक्रमों से निपटने के लिए ज्यादा सक्रिय और सजग होना चाहिए। मेज पर मांगें लंबे समय से लंबित हैं और कृषि से जुड़े संकट बहुआयामी हैं लेकिन कोई व्यक्ति आमरण अनशन पर बैठता है तो ऐसे स्थायी धरना-प्रदर्शनों की इजाजत देना एक जटिल समस्या है क्योंकि यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि उसे भूखा मरने के लिए मजबूर किया जा रहा है या उसे अनशन खत्म करने की इजाजत नहीं दी जा रही है। कई किसान नेताओं ने डल्लेवाल से मुलाकात कर उनसे भूख हड़ताल खत्म करने का अनुरोध किया है। हालांकि, उनके समर्थकों द्वारा अन्य किसान नेताओं को सरकार का एजेंट करार दिए जाने के चलते ऐसे अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया है। किसानों के बीच मौजूद लोग यह कहते रहे हैं कि डल्लेवाल को आमरण अनशन के बजाय संयुक्त विरोध-प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए।
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को किसान नेता डल्लेवाल का अनशन समाप्त कराने के लिए तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए और किसानों से सीधी बातचीत का रास्ता प्रशस्त करना चाहिए। पंजाब और हरियाणा सरकार तथा केन्द्र सरकार को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि डल्लेवाल की जिन्दगी खतरे में न पड़े। जहां तक किसानों की मांगों का प्रश्न है उन पर कृषि मंत्री को ठोस पहल करनी चाहिए ताकि कोई अप्रत्याशित स्थिति पैदा न हो। अब इस मसले पर लटकाऊ नीति काम नहीं आने वाली। किसानों और केन्द्र का टकराव खत्म किया जाना देशहित में है।