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भीमा कोरेगांव हिंसा का कड़वा सच

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12:09 AM Jun 09, 2018 IST | Desk Team

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महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में पिछले वर्ष दिसम्बर में भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में हुई जातीय हिंसा में 5 लोगों की गिरफ्तारी के बाद कुछ तथ्य सामने आए हैं कि एफआईआर में कई आरोपी ऐसे भी हैं जिनका नाम पहले नक्सलियों के साथ सम्बन्धों को लेकर आ चुका है। दिल्ली में रोना विल्सन की गिरफ्तारी और उसके घर से बरामद पैन ड्राइव, हार्ड डिस्क और कुछ अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं। पुलिस का कहना है कि उनके पास रोना विल्सन और सुरेन्द्र गाडलिंग के नक्सलियों से सम्बन्ध होने का पता चल चुका है। हिंसा में लिप्त लोगों के विरुद्ध कार्रवाई होनी ही चाहिए लेकिन विडम्बना यह है कि दलित नेताओं की गिरफ्तारी पर सरकार के भीतर और बाहर से सवाल उठाए जाने लगे हैं। 31 दिसम्बर 2017 और 1 जनवरी 2018 को पुणे के पास शनिवारवाड़ा में दलित कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच हुए भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक जनसभा का आयोजन किया था जिसमें हजारों दलित शामिल हुए थे। इस दिन दलित नेता ब्रिटिश फौज की जीत का जश्न मनाते हैं। उनका मानना है कि ब्रिटिश फौज में महार टुकड़ी ने यह जीत दर्ज की थी।

जनसभा में भड़काऊ भाषण दिए गए जिससे कोरेगांव में हिंसा के हालात बने। जिन लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है उनमें नागपुर के वकील आैर दलित आदिवासियों के सामाजिक कार्यकर्ता सुरेन्द्र गाडलिंग पर माओवादी हिंसा में गिरफ्तार लोगों को कानूनी सहायता कराने का भी आरोप है। नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफैसर शोभा सेन और उनके पति तुषार क्रांति भट्टाचार्य को नक्सलियों से सम्पर्क के आरोप में 2010 में नागपुर स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। वहीं महेश राउत पूर्व मंत्री के करीबी हैं और उन पर माओवादियों से सम्बन्ध रखने का भी आरोप है। अगर वकील, प्रोफैसर और अन्य इसी तरह के संभ्रांत माने जाने वाले नागरिकों का माओवादियों से सम्पर्क है तो यह देश के लिए घातक है। भीमा कोरेगांव हिंसा में अब गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी पर भी पुणे पुलिस ने शिकंजा कस दिया है। पुलिस उनसे कभी भी पूछताछ कर सकती है क्योंकि वह कोरेगांव यलगार परिषद में मौजूद थे। पुलिस का दावा है कि हिंसा में नक्सलियों के पैसे का इस्तेमाल किया गया। सामाजिक कार्यकर्ताओं का मुखौटा पहने लोग कैसी-कैसी साजिशों में लिप्त हैं, इसका अनुमान सहज नहीं लगाया जा सकता। गिरफ्तार लोगों में से एक के घर से एक पत्र मिला है जिसमें इस बात का जिक्र है कि माओवादी एक और ‘राजीव गांधी हत्याकांड’ की योजना बना रहे थे। पत्र में एम चार राइफल आैर गो​लियां खरीदने के लिए 8 करोड़ की जरूरत बताई गई है। गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी ने इन गिरफ्तारियों को अम्बेडकरवादी आंदोलन पर हमला बताया है। केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले कह रहे हैं कि यलगार परिषद का भीमा कोरेगांव हिंसा में किसी तरह का सम्बन्ध नहीं।

अम्बेडकर के पदचिन्हों पर चलने वाले नक्सली नहीं हो सकते। इस मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए ताकि सच सामने आ सके। छापेमारी में बरामद चिट्ठी से साफ है कि कुछ लोग अपनी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए साजिश कर रहे हैं। समाज में अशांति फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। दलितों की आबादी को अपनी तरफ आकर्षित करने के ​िलए मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए कुछ राजनीतिक दल किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। कोरेगांव हिंसा के बाद कुछ दलित कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि कुछ हिन्दुत्ववादी संगठन कोरेगांव की हिंसा के लिए जिम्मेदार थे लेकिन उनके आरोप पूरी तरह से झूठे पाए गए। हिंसा के आरोपियों की गिरफ्तारी अम्बेडकर की विचारधारा को कुचलने वाली कैसे हो गई? यह मेरी समझ से बाहर है। वामपंथी विचारधारा के जरिये पूरे दलित आंदोलन को हिंसा की तरफ मोड़ा जा रहा था। नक्सली विचारधारा के पोषक किसी भी कीमत पर अपनी साख बचाए रखने के लिए कोरेगांव को हिंसा की आग में झौंक दिया था। क्या बाबा साहेब अम्बेडकर ने इसी तरह की हिंसा आैर साजिशों की कल्पना की थी? निष्पक्ष जांच-पड़ताल से सच का सामने आना जरूरी है। इसके लिए दलित उत्पीड़न के नाम पर सियासत नहीं होनी चाहिए। साजिशों का पर्दाफाश होना ही चाहिए।

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