भारत-बांग्लादेश संबंधों का बदलता स्वरूप
भारत और बांग्लादेश, जो भौगोलिक, सांस्कृतिक और साझा संघर्षों के माध्यम से…
भारत और बांग्लादेश, जो भौगोलिक, सांस्कृतिक और साझा संघर्षों के माध्यम से ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं, उनके द्विपक्षीय संबंधों में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कार्यकाल के दौरान उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। जो कभी सौहार्दपूर्ण कूटनीति का आदर्श हुआ करता था, वह अब तनाव के संकेत दे रहा है। यह स्थिति दोनों देशों के लिए चिंताजनक है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव के पीछे कई कारक हैं, जिनमें अल्पसंख्यकों की स्थिति और संबंध सुधारने के संभावित समाधान शामिल हैं।
हाल ही में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिश्री की बांग्लादेश यात्रा एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक प्रयास था, जिसका उद्देश्य उभरते तनाव के बीच द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करना था। इस बातचीत में तीस्ता जल समझौता, सीमा प्रबंधन और आर्थिक सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। यात्रा ने भारत की इस प्रतिबद्धता को उजागर किया कि वह बांग्लादेश की चिंताओं को गंभीरता से लेता है, विशेष रूप से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के संदर्भ में। यात्रा के प्रमुख परिणामों में बीबीआईएन (बांग्लादेश- भूटान- भारत-नेपाल) पहल के तहत रेल और सड़क संपर्क परियोजनाओं को तेज़ी से लागू करने पर जोर और व्यापार असंतुलन को कम करने के उपाय शामिल थे। दोनों पक्ष सीमा विवाद प्रबंधन और नागरिकों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त रणनीति तैयार करने पर सहमत हुए। यात्रा का उद्देश्य बांग्लादेश को यह विश्वास दिलाना भी था कि रोहिंग्या शरणार्थी संकट के प्रबंधन में भारत उसका समर्थन जारी रखेगा। उल्लेखनीय रूप से, इस यात्रा ने दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित किया।
भारत ने बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करते हुए ऐतिहासिक संबंधों और नए राजनीतिक यथार्थ के बीच संतुलन बनाने की बात कही। यह जुड़ाव भारत की रणनीतिक मंशा को दर्शाता है कि वह ढाका में बढ़ते चीनी प्रभाव को संतुलित करना चाहता है और विश्वास बहाल करना चाहता है। यह यात्रा चुनौतियों के बीच बेहतर संबंधों की दिशा में रचनात्मक संवाद की नींव तैयार करती है।
द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट ने विशेष रूप से बांग्लादेश में हिंदुओं और भारत में मुसलमानों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं। हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, मंदिरों और समुदायों पर हमले बढ़े हैं। अंतरिम सरकार की निष्क्रियता, और कुछ मामलों में मिलीभगत, ने अल्पसंख्यक आबादी के बीच डर बढ़ा दिया है।
संबंधों को पुनः स्थापित करने के लिए भारत को बांग्लादेश की सत्तारूढ़ सरकार के साथ-साथ विपक्षी दलों से भी जुड़ना चाहिए। ऐसे कदमों से बचा जाना चाहिए, जो बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप के रूप में देखे जा सकते हैं। तीस्ता समझौते के समाधान के लिए भारत की केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल के साथ बातचीत करनी चाहिए। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में भारत की भूमिका ने दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों की नींव रखी। वर्षों से व्यापार, संपर्क परियोजनाओं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुए। भूमि सीमा समझौता (2015) और समुद्री सीमा विवाद का समाधान सहयोग के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार, जिसे भारत समर्थक माना जाता है, ने ऊर्जा, सुरक्षा और क्षेत्रीय संपर्क में सहयोग को प्राथमिकता देकर मजबूत संबंध बनाए रखा।
अंतरिम सरकार, जिसे भारत से दूर झुकाव रखने वाली माना जाता है, ने अपनी विदेश नीति को चीन और अन्य क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ संतुलित करने के लिए पुनः परिभाषित किया है। इस बदलाव ने भारत के प्रभाव को कमजोर कर दिया है। विपक्षी दलों, विशेष रूप से बीएनपी, के बीच भारत विरोधी बयानबाजी ने नाराजगी को बढ़ावा दिया है। ये दल भारत पर बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और व्यापार संबंधों में असंतुलन का आरोप लगाते हैं। तीस्ता जल समझौते का अनसुलझा रहना अविश्वास को गहरा करता है।
सुधारों के बावजूद, सीमा पर हत्याओं और तस्करी ने संबंधों को खराब किया है। बांग्लादेश ने अक्सर भारतीय सीमा बलों पर अपने नागरिकों के खिलाफ अत्यधिक कार्रवाई का आरोप लगाया है। इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश के लगभग दस लाख रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रबंधन में भारत की उदासीनता ने तनाव बढ़ा दिया है। बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव से क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ावा मिल सकता है। बीबीआईएन जैसी महत्वाकांक्षी संपर्क योजनाएं तनावपूर्ण संबंधों के कारण बाधित हो सकती हैं। शत्रुतापूर्ण बांग्लादेश भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय विद्रोही समूहों को प्रोत्साहित कर सकता है।
द्विपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने के लिए संपर्क परियोजनाओं को तेजी से लागू करना चाहिए। दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए संयुक्त निगरानी तंत्र स्थापित करने और सांस्कृतिक व सामाजिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना आवश्यक है। सार्क और बिम्सटेक जैसे मंचों का उपयोग साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए किया जाना चाहिए।
अंतरिम सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंधों में गिरावट दोनों देशों के लिए एक चेतावनी है। भू-राजनीतिक बदलावों और घरेलू राजनीति ने इस अलगाव को प्रेरित किया है, लेकिन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध मेल-मिलाप की संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं। विवादित मुद्दों का समाधान, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, और संतुलित आर्थिक और रणनीतिक सहयोग द्विपक्षीय संबंधों में विश्वास बहाल करने के लिए आवश्यक कदम हैं।
भारत और बांग्लादेश के लिए, आगे का रास्ता संवाद और परस्पर सम्मान के माध्यम से शत्रुता को फिर से साझेदारी में बदलने का है।