डिजिटल लिंचिंग से छलनी होता देश
भारत का डिजिटल लैंडस्कैप, जो लाखों-करोड़ों भारतीयों के जुनून का…
भारत का डिजिटल लैंडस्कैप, जो लाखों-करोड़ों भारतीयों के जुनून का माध्यम है, मानवीय भावनाओं का शवगृह बन गया है। अपरिचय के जहरीले आवरण में ढके वे चेहरे ट्रोल्स ने की-बोर्ड्स को गिलोटिन में बदल दिया है। वे लगातार जहर उगल रहे हैं, जिससे देश की आत्मा छलनी होती जा रही है। इन ट्रोल्स के निशाने पर कौन हैं? एक शोकाहत विधवा, एक क्रिकेट दिग्गज, टेनिस के एक सितारे, बॉलीवुड की एक चर्चित शख्सियत, एक कमेंटेटर, और दूसरे असंख्य लोग। ट्रोलिंग डिजिटल चिन्ता है, जो निजता का उल्लंघन कर वर्चुअल लिंचिंग को बढ़ावा देती है। जो लोग इन ट्रोल्स का शिकार हुए या हो रहे हैं, उनमें एक जवान विधवा है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने उनके जीवन को विध्वस्त कर दिया। आतंकियों ने उनके पति को, जो एक सैनिक थे, मार दिया, उनकी शादी को कुछ ही दिन हुए थे शहीद की विधवा का कसूर क्या था?
उन्होंने तो बस राष्ट्र की एकता बनाये रखने की अपील करते हुए कहा था, ‘हम किसी भी समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाना नहीं चाहते, हम शांति और न्याय चाहते हैं।’ इसकी प्रतिक्रिया में क्रूरता की जैसे झड़ी लग गयी। एक्स पर किसी ने लिखा, ‘शहीद को मिलने वाली धनराशि हड़पने के लिए ये घड़ियाली आंसू हैं।’ हजारों लोगों ने इस पोस्ट को लाइक किया। एक और ने टिप्पणी की, ‘आपके पति कायर थे, अच्छा हुआ कि वह नहीं रहे।’ इसे सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर साझा किया गया। इसका हर री-ट्वीट उस विधवा महिला के दुख पर करारा तमाचा था। हालांकि ऑपरेशन सिंदूर ने त्वरित न्याय प्रदान किया, लेकिन ट्रोल्स को दिया गया जवाब भी उतना ही सटीक था, जब उन्होंने कहा, ‘घृणा फैलाने वाले लोगों का इस पृथ्वी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।’
इससे पहले एक क्रिकेट दिग्गज को भी, जो कभी भारतीय गर्व के प्रतीक थे, ऐसे ही कटु अनुभव से दो-चार होना पड़ा था। वर्ष 2023 के विश्व कप की हताशा ने उनके जीवन में तूफान खड़ा कर दिया। ‘सेल्फी के लिए हमेशा बेकरार।’ उन पर किसी की पोस्ट वायरल हुई, तो हजारों लोगों ने उस पर टिप्पणी की, वर्ष 2022 में उनके होटल रूम का एक वीडियो लीक हुआ, जिसमें उनके निजी सामान दिख रहे थे, जिस पर लोगों ने मौज ली। इंस्टाग्राम पर उन्हें टिप्पणी करनी पड़ी, ‘मेरी निजता का उल्लंघन ठीक नहीं’ इस पर ट्रोल्स ने उनका मजाक उड़ाया। वर्ष 2021 में यह कहते हुए ट्रोल्स ने उनकी छोटी-सी बच्ची के साथ बलात्कार करने की धमकी दी, ‘तुम्हारी विफलता की कीमत तुम्हारी बच्ची को चुकानी पड़ेगी।’ सोशल मीडिया पर यह पोस्ट देखते ही देखते जंगल की आग की तरह फैल गयी।
टेनिस की एक अग्रणी खिलाड़ी को पाकिस्तान में शादी करने के लिए लगातार ताने सुनने पड़े। वर्ष 2020 में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में उन्हें ऐसा गद्दार कहा गया, जिसने खुद को पाकिस्तान के हाथ बेच दिया है। पहलगाम हमले के खिलाफ आवाज उठाने के बावजूद ट्रोल्स ने उन्हें नहीं बख्शा और कहा, ‘अपने पति के देश में चली जाओ,’ खेल से जुड़ी एक महिला ने अपनी नवजात की तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा की, तो किसी ने क्रूरता भरी टिप्पणी की, ‘अपनी शोहरत के लिए बेटे का इस्तेमाल।’ सोशल मीडिया पर लोगों की दी जाने वाली यह यातना अचानक नहीं है। इसे तैयार किया गया है, भारत की विशाल डिजिटल आबादी ने गर्मी सहने वाला एक ऐसा पात्र विकसित किया है, जिसमें घृणा पकती है, एलगोरिद्म (कलन विधि) से यह घृणा ज्यादा से ज्यादा जगहों तक फैलती है। यह सत्य पर विवाद और नकारात्मकता को तरजीह देता है। इसके विस्तार का असर जिस स्तर पर है, वहां तक शेयर बाजार का लाभांश कभी नहीं पहुंच सकता।
वर्ष 2023 का एक अध्ययन बताता है कि एक्स और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने भेदभाव को काफी बढ़ाया है, जिनमें घृणात्मक पोस्ट बोट्स और हैशटैग हाइजैकिंग के जरिये लाखों लोगों तक पहुंचती है। यह डिजिटल लिंचिंग या सार्वजनिक तौर पर लोगों को सूली पर चढ़ाना है, जिसमें एलगोरिद्म कफन में कील ठोकने का काम करता है। न्यूज मीडिया में आये एक विधवा के दुख को ट्रोल कार्निवल द्वारा हाइजैक कर लिया गया, और लिखा गया, ‘यह औरत सहानुभूति का व्यापार कर रही है’ यह पोस्ट लाखों लोगों के बीच पहुंच गयी, नतीजतन सांस्कृतिक सड़ांध को विस्तार मिलता गया है, जिसने भेदभाव के बीज बोकर समुदायों के बीच के रिश्ते खत्म कर दिये। एक शहीद विधवा के शांति के आह्वान को ‘तुष्टीकरण’ की संज्ञा देकर सांप्रदायिक विद्वेष को हवा दी गयी। राष्ट्रीय महिला आयोग ने उनको निशाना बनाये जाने की तीखी निंदा की, लेकिन ट्रोल्स पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। ट्रोल्स के कारण नामचीन शख्सियतों ने ये प्लेटफॉर्म्स ही छोड़ दिये -आमिर खान ने ‘जहरीली पड़ताल’ बताते हुए 2021 में इसे छोड़ा, जबकि सोनाक्षी सिन्हा ने ‘घृणा से बीमार’ हुए लोगों का मंच बताते हुए 2020 में ही इसे छोड़ दिया था।
अध्ययन बताता है कि ट्रोलिंग चिंता, अवसाद और हादसे के बाद का तनाव बढ़ाता है, और इसके ज्यादातर भारतीय उपयोगकर्ता मानसिक तनाव की शिकायत करते हैं। एक विश्वसनीय डिजिटल कंटेंट क्रिएटर ने, जिसे एक वीडियो के कारण ट्रोल किया गया था, अपनी पीड़ा साझा करते हुए लिखा था, ‘घृणा मेरी आत्मा को खा गयी, मैं हफ्तों तक नहीं सो पाया।’ वर्ष 2000 के साइबर एक्ट में दंडित करने का प्रावधान है, पर इसके क्रियान्वयन में कमी है। पहलगाम हमले के बाद कुछ विदेशी यूट्यूब चैनल्स पर प्रतिबंध लगाये गये हैं, पर घरेलू ट्रोल्स आजाद घूम रहे हैं। ‘कुल्हड़ पिज्जा’ जोड़ी (सहज अरोड़ा और गुरप्रीत कौर) को लगातार ट्रोलिंग से डरकर इस साल ब्रिटेन भाग जाना पड़ा। सोशल मीडिया के कर्ताधर्ता लाभ कमा रहे हैं। एक्स की ग्लोबल टीम ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर इस वर्ष विदेशी सेंसरशिप का मुकाबला किया, पर घरेलू स्तर पर फैलायी जा रही घृणा से वे कन्नी काट जाते हैं। आचार और नैतिकता पर मुनाफे को वरीयता देने वाले सभी प्लेटफॉर्म्स इस पाप के भागीदार हैं। यह डिजिटल लिंचिंग भारत के अपमान की वजह है।
देश में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या 37.8 करोड़ है, जिनमें से 36.29 करोड़ लोग इंस्टाग्राम पर और 2.54 करोड़ एक्स पर हैं। इन्होंने सोशल मीडिया को मानवीय भावनाओं का कत्लगाह बना दिया है, सरकार को कुछ करना होगा। कठोर साइबर कानून की अविलंब आवश्यकता है। भारत को इस डिजिटल द्रोह पर अंकुश लगाना होगा, घृणा के इस एलगोरिद्म को खामोश करना होगा।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)