लालच की बाढ़ में बहते देश के शहर
मुंबई में हुई मूसलाधार बारिश से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे देश के महानगर इतने…
मुंबई में हुई मूसलाधार बारिश से दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे देश के महानगर इतने बदहाल हो गये कि इनकी गलियां नदी में, घर सैलाब में और सपने त्रासदी में तब्दील हो गये। बेंगलुरु में बस से उतरते ही एक युवक मेनहोल में गिर गया, तो दिल्ली में दीवार ढहने से कुछ श्रमिकों की मृत्यु हो गई। दो मई को कुछ ही घंटों में देश की राजधानी में 80 मिलीमीटर बारिश हुई, जो 1901 के बाद सबसे ज्यादा वर्षा थी। ऐसे ही, 26 मई को मुंबई में एक घंटे में 104 मिलीमीटर वर्षा हुई, जिससे मीठी नदी उफनने लगी। नतीजतन कुर्ला में बाढ़ आ गई और मैट्रो लाइन की तीन सेवाएं रोकनी पड़ीं। कुर्ला में आई बाढ़ से आठ लोग मारे गये, जिसमें पंद्रह साल की आयशा भी थी, जिसके परिवार की दुकान बाढ़ में नष्ट हो गई। लगातार बारिश से बेंगलुरु ने व्हाइटफील्ड जैसे अपने आइटी कॉरिडोर को डूबते देखा। एक्स की एक पोस्ट में दुख जताते हुए लिखा गया, ‘टेक सिटी गंदगी में डूब रही है।’
मुंबई कुछ सेकंड में अरबों डॉलर दूसरे महादेशों में भेज सकने की क्षमता रखती है, लेकिन लाखों डॉलर के आलीशान कॉन्डो (कॉन्डोमिनियम) में रहने वाले वहां के अरबपति मॉनसून के दौरान एक गली से दूसरी गली में नहीं जा सकते। राजधानी दिल्ली तीन वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में जी-20 के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर सकती है, लेकिन यहां के लोगों को बेकार पड़े सीवेज सिस्टम के बदबूदार पानी और कीचड़ के बीच रहना पड़ता है। बेंगलुरु की वृषभावती नदी की जलधारा काली और जहरीली है- महानगर से निकाले गये 180 करोड़ लीटर सीवेज का 80 फीसदी अनुपचारित होता है। बेंगलुरु पूरी दुनिया से जुड़ सकता है, लेकिन निराशा से खुद को अलग नहीं कर सकता। एक्स की एक पोस्ट में निराशा भरे शब्दों में कहा गया, ‘आइटी पार्क चमकते हैं, लेकिन बारिश से आई बाढ़ ने हमारी शर्म को सार्वजनिक कर दिया है।’आजादी के 75 साल बाद भी देश के 70 फीसदी से अधिक शहरों में बेहतर सीवेज सिस्टम या कूड़ों के निपटान की व्यवस्था नहीं है। मानसून में भीषण वर्षा से आयी बाढ़ अचानक घटी कोई घटना नहीं है, बल्कि देश की तहस-नहस करने वाली नदियों और अवरुद्ध पड़े ड्रेनेज सिस्टम का उदाहरण है। गंगा से लेकर महानदी तक देश में 400 से अधिक जलमार्ग हैं। इसी साल आई एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 603 नदियों का 46 फीसदी भाग भीषण रूप से प्रदूषित है। रिपोर्ट में 275 नदियों के जलमार्ग में 320 जहरीले इलाके हैं। गंगा रोज अपने साथ 2.9 अरब लीटर अनुपचारित सीवेज ढोती है, तो मुंबई की मीठी नदी कीचड़ से भरी हुई है। भारत की शहरी सीवेज प्रणाली उपेक्षा के भार से दबकर ध्वस्त हो चुकी है। दिल्ली में रोज 380 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है, लेकिन इनमें से 260 करोड़ लीटर ही उपचारित है। मुंबई में रोज 210 करोड़ लीटर सीवेज निकलता है, जिसका आधा ही उपचारित है। बेंगलुरु अपने दैनिक सीवेज के 30 फीसदी को ही साफ करता है।
इसी साल प्रकाशित आईआईटी, बॉम्बे के एक अध्ययन के मुताबिक, वहां का 1860 में बना ड्रेनेज सिस्टम अब अवशेष भर रह गया है और महानगर के 2.2 करोड़ निवासियों के लिए किसी काम का नहीं है। इसके बावजूद, पिछले साल नालियों से गाद निकालने के लिए 1,200 करोड़ रुपये का ठेका शेल कंपनियों को दिया गया। बेंगलुरु में कभी 800 झीलें थीं, जो बाढ़ और बारिश का पानी अपने में समाहित कर लेती थीं, लेकिन ज्यादातर झीलों को रियेल एस्टेट के लोगों ने भर दिया, नतीजतन अब उनकी संख्या घटकर मात्र सत्रह रह गई हैं। विगत मई में हुई भारी बारिश से दिल्ली के नाले उफन गये, जिससे 170 इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति बन गई, जबकि मुंबई में मीठी नदी के वर्षा से उफनने के कारण 12,000 घर जलमग्न हो गये। जुलाई, 2024 में ऐसी ही स्थिति में दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर स्थित एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे तीन छात्र डूबकर मर गये थे।
‘प्रगति’ की दौड़ में, जिसके तहत नये हवाई अड्डे, हाइवे और स्मार्ट सिटीज का निर्माण हुआ है, हमारी प्राकृतिक रक्षा प्रणाली नष्ट हो चुकी है। नदीपथ वाले रास्तों में निर्मित दिल्ली के यमुना एक्सप्रेस-वे के कारण बाढ़ के पानी को समाहित करने की यमुना नदी की क्षमता प्रभावित हुई है। बेंगलुरु में 27,000 करोड़ रुपये से निर्मित पेरिफेरल रिंग रोड के कारण 1,100 एकड़ में फैले ग्रीन कवर और झील नष्ट हो चुके हैं। इस साल प्रकाशित नेशनल वेटलैंड्स इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से अब तक देश में 40 फीसदी वेटलैंड विलुप्त हो चुके हैं। चेन्नई के पल्लीकरानाई में कभी 5,500 हैक्टेयर तक दलदल था, जो अब घटकर 600 हैक्टेयर में सिमट गया है। हवाई अड्डे के विस्तार को इसकी वजह बताया जा रहा है। इसका नतीजा 2023 में आयी भीषण बाढ़ के रूप में सामने आया। वर्ष 2000 के बाद से शहरी इलाकों में खुले इलाके 30 फीसदी सिकुड़ गये हैं, जिससे स्थिति भयावह हुई है।
दरअसल भ्रष्टाचार इन सारी बुराइयों की जड़ है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक, नमामि गंगे परियोजना में 2014 से अब तक 32,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं, इसके बावजूद इसकी 68 फीसदी सीवेज ट्रीटमेंट इकाइयां 2025 में निष्क्रिय पायी गईं। बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने 2020 से 2024 के बीच नालियों से गाद निकालने में 1,500 करोड़ रुपये गंवा दिये, जिनमें से 60 प्रतिशत धनराशि ऐसी कंपनियों को दी गईं, जो अस्तित्व में ही नहीं थीं। इसके विपरीत, वैश्विक शहर अद्भुत उदाहरण पेश करते हैं। जैसे, टोक्यो के भूमिगत जलाशय और फुटपाथ सालाना होने वाली 1,500 मिलीमीटर वर्षा का आधा हिस्सा अवशोषित कर लेते हैं, और इस तरह शहर को बाढ़ से बचाते हैं।
न्यूयॉर्क के 10,600 किलोमीटर लंबे ड्रेनेज सिस्टम की रीयल टाइम मॉनिटरिंग होती है और वहां 500 करोड़ लीटर सीवेज को साफ किया जाता है। जर्मनी के 99 फीसदी कचरे को ऊर्जा में बदला जाता है, जबकि भारत में 6.2 करोड़ टन कचरे में 1.2 करोड़ को ही उपचारित किया जाता है। जापान अपने कचरे के 70 फीसदी का ट्रीटमेंट करता है, जबकि भारत में कुल कचरे का 80 फीसदी पहाड़ के रूप में इकट्ठा होता है। इंदौर का कचरा प्रबंधन मॉडल तथा मेघालय के उमंगोट संरक्षण व्यवस्था बताती है कि भारत में भी बदलाव संभव है, लेकिन उसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए।
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)