राजनीति में खोखले विमर्श के दिन खत्म
महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम मतदाता महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम मतदाताओं की राजनीतिक कुशाग्रता की बेहतरीन अभिव्यक्ति हैं। मनगढ़ंत विमर्श के जरिए जनता का भरोसा जीतने की सियासी कोशिश भले ही कुछ समय के लिए राजनीति में करंट पैदा कर दे…
महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम मतदाताओं की राजनीतिक कुशाग्रता की बेहतरीन अभिव्यक्ति हैं। मनगढ़ंत विमर्श के जरिए जनता का भरोसा जीतने की सियासी कोशिश भले ही कुछ समय के लिए राजनीति में करंट पैदा कर दे, लेकिन उससे न तो देश का भला और न ही ऐसा करने वाले राजनीतिक दलों का उद्धार होगा। इस चुनाव में प्रदेश की जनता ने एक बार पुनः महायुति गठबंधन (एनडीए) को सेवा का अवसर प्रदान किया है। ओडिशा और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों ने पूरे देश को एक नया विश्वास दिया है, इस चुनाव परिणाम ने पीएम मोदी के पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस के मंत्र पर मुहर लगायी है। कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 के बाद ही यह मान बैठी थी कि अब अगले सभी विधानसभा चुनाव में उसकी जीत तय है।
विपक्ष जहां अति आत्मविश्वास में घिरा रहा वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी बूथ स्तर पर काम करती रही। अमित शाह पर्दे के पीछे रहकर खुद इस चुनाव की कमान संभालते रहे। जो सीट जितनी मुश्किल थी, वहां उतने ही बड़े नेता को जिम्मेदारी देकर जीत सुनिश्चित करने का टास्क दिया गया। विधानसभा सीटों के सर्वे रिपोर्ट के आधार पर जिन कमजोर सीटों की पहचान की गई उन सीटों पर माइक्रो मैनेजमेंट की विशेष रणनीति अपनाई गई। जून महीने के शुरुआती सर्वे में बीजेपी की जीत के लिहाज से जो 80 कमजोर सीटें सामने आईं, उन सभी सीटों के हर बूथ पर पार्टी ने बीजेपी के लिए 100 अतिरिक्त वोट जुटाने का लक्ष्य रखा और इस रणनीति को लागू करने के लिए बीजेपी के दमदार कार्यकर्ताओं को काम सौंपा गया।
सीएम के बावजूद फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार कर पार्टी और महाराष्ट्र के लिए जमीनी स्तर पर काम किया, भाजपा ने जहां माइक्रो मैनेजमेंट के जरिए बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं को एकजुट रखा वहीं अति आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर इस कदर निर्भर रही कि पार्टी के दूसरे नेता अपने-अपने गुट के नेताओं के लिए ही प्रचार करते नजर आए। पार्टी ने दर्जन भर सीटों पर अपने बागियों से बात करना तक मुनासिब नहीं समझा। चुनावी नतीजे से पहले ही मुख्यमंत्री बनाने में जुटी कांग्रेस के सामने अब ईवीएम का रोना रोने का अवसर भी नहीं है।
कांग्रेस लोकसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी के साथ 17 में 13 सीट जीतकर ओवर कॉन्फिडेंस में रही। यूबीटी के नेता संजय राउत जहां अनर्गल बयानबाजी करते रहे वहीं भाजपा ने भूपेंद्र यादव को चुनाव से काफी पहले सक्रिय किया। महाराष्ट्र में एनडीए एवं बीजेपी से देवेन्द्र फडणवीस जैसे नेताओं की विश्वसनीयता भी काम आयी, यहां भी पार्टी ने हरियाणा और ओडिशा की तरह दिग्गज नेताओं को जमीन पर कार्यकर्ताओं के बीच, बूथ स्तर पर अहम जिम्मेदारी दी। ओडिशा में जिस तरह धर्मेंद्र प्रधान ने काफी समय से एक-एक विधानसभा पर संगठन को खड़ा किया वहीं हरियाणा और महाराष्ट्र में भी यह फार्मूला काम आया। ख़ास बात यह है कि इन राज्यों में विपक्ष के पास जो बड़े चेहरे थे वह बयानबाजी में आगे रहे, फिर चाहे वह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, ओडिशा में नवीन पटनायक मीडिया में गढ़ी गई अपनी छवि से बाहर नहीं निकल पाए।
विपक्ष का यही हाल महाराष्ट्र में हुआ, जहां शरद पवार, उद्धव ठाकरे भाजपा और हिंदुत्व पर हमालावर हो गए। महाराष्ट्र चुनाव इसलिए भी याद किए जाएंगे क्योंकि काफी समय बाद दोनों दलों के दिग्गज नेताओं के बजाय चुनावी जंग उनके राजनीतिक दलों के बीच थी। इस चुनाव में भाजपा किसी भी चेहरे के साथ आगे नहीं बढ़ी बल्कि सामूहिक नेतृत्व से कांग्रेस की रणनीतियों को पस्त किया। पिछले पांच साल में महाभारत की रणभूमि रहे हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में कभी संविधान को खतरे में बताया गया तो कभी झूठ की प्रयोगशाला स्थापित करने की नाकाम कोशिश हुई। हरियाणा चुनाव में विपक्ष के नैरेटिव को ध्वस्त करने में अहम रोल रहा। बीजेपी के बड़े ओबीसी फेस प्रधान सांगठनिक कौशल और माइक्रो मैनेजमेंट से ओडिशा में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के साथ हरियाणा की ऐतिहासिक जीत पार्टी को दिलाने में अहम भूमिका निभाई। हरियाणा की ऐतिहासिक जीत ने अन्य राज्यों में बीजेपी की जीत का रास्ता प्रशस्त कर दिया, हरियाणा चुनाव नतीजों ने विशेषज्ञों को चौंकाया। चुनावी जनादेश यह बताने के लिए पर्याप्त है कि इस जीत के असल वाहक किसान, युवा और महिलाएं रही हैं।
2014 में प्रधानमंत्री के रूप में संट्रेल हॉल में प्रवेश करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था उनकी सरकार किसान, गरीब, महिलाओं और युवाओं की सरकार है। पीएम मोदी के लिए यह सिर्फ भाषण के शब्द नहीं थे, पिछले दस वर्ष के कार्यकाल में केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों के प्रत्येक निर्णय में यह परिलक्षित हुआ है। किसान सम्मान निधि, विभिन्न फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से लेकर केंद्रीय व राज्य की किसान हितैषी योजनाएं किसानों के जीवन स्तर में गुणवत्ता का कारण बनीं हैं। ऐसे में किसानों के नाम पर राजनीतिक फसल काटने की कोशिश करते हुए कांग्रेस ने न सिर्फ नकारात्मक छवि बनाई बल्कि किसानों की आय बढ़ाने का वह कोई विकल्प भी पेश नहीं कर सकी।
मौजूदा कांग्रेस न तो जमीन पर नजर आती है और न ही जनता के बीच। उसके मुद्दे जनता के जनसरोकार के बजाय कुछ खास तबके तक सिमटे नजर आते हैं। इस तरह के सियासी शॉर्टकट से भले ही उसे छोटी-मोटी सफलताएं मिल जाए लेकिन दीर्घकालिक रूप से उसे हमेशा मुंह की खानी पड़ेगी। देश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने न सिर्फ संवैधानिक संस्थाओं के विरुद्ध अभियान चलाया बल्कि देश के लिए गर्व पहलवान और एथलीट को भी राजनीति का मोहरा बनाया है। देश के एथलीट जब अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं तो वह किसी दल नहीं देश के अभिमान होते हैं। भारत के ऐसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को किस तरह विपक्ष ने राजनीतिक हित साधने के लिए इस्तेमाल किया, यह किसी से छिपा नहीं है। अंतत: हरियाणा और फिर महाराष्ट्र की जनता ने जनादेश से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक प्रतिबद्धता पर मुहर लगाते हुए खोखले विमर्श स्थापित कर जनता को भ्रमित करने वालों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकारों के द्वारा लागू की जी रही जनकल्याणकारी नीतियां एक नया वोट बैंक विकसित कर रही हैं। योजनाओं के हितग्राहियों की शक्ल में मौजूद यह वोट बैंक जाति, मजहब, पंथ और क्षेत्र की राजनीति से ऊपर है। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला, विश्वकर्मा योजना, आयुष्मान जैसी योजनाओं के साथ भाजपा शासित राज्यों की विकासपरक नीतियों पर सवार यह वोटर अपने जीवन स्तर में गुणवत्ता को देख रहा है। अपने स्वयं और समाज के जीवन में आए परिवर्तन के आधार पर मतदान कर रहा है।
कांग्रेस जहां जाति जरिया बनाकर समाज को बांटते हुए सत्ता की सोशल इंजीनियरिंग करने में मदमस्त है वहीं भाजपा सांस्कृति राष्ट्रवाद, अंत्योदय, देश की एकता और अखंडता से लेकर लोककल्याण के मंत्र पर विकास का सर्वस्पर्शी और सर्वव्यापी मॉडल खड़ा कर रही है। भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाली चुनावी राजनीतिक सफलताओं के पीछे किसी एक रणनीति को श्रेय देना जनादेश की सीमित व्याख्या होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति में प्रतिबद्धता और कथनी-करनी में एकरुपता का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिससे पार्ट टाइम पॉलिटिक्स करने वाले दलों और नेताओं को अब पुनर्मूल्यांकन करना होगा। देश की बागडोर तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ सौंपने से लेकर हरियाणा और उसके बाद महाराष्ट्र का जनादेश भरोसे की राजनीति की प्रमाणिक अभिव्यक्ति है।
– देवी चेरियन