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किसानी मसलों के चलते आम जनता परेशान

बीते दिनों केन्द्र की सरकार के द्वारा किसानी कानून लागू किए जाने के बाद…

10:26 AM Dec 11, 2024 IST | Sudeep Singh

बीते दिनों केन्द्र की सरकार के द्वारा किसानी कानून लागू किए जाने के बाद…

बीते दिनों केन्द्र की सरकार के द्वारा किसानी कानून लागू किए जाने के बाद से देश में किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। कई महीनों तक दिल्ली के सिंघू बाॅर्डर सहित अन्य बाॅर्डरों पर किसानी संघर्ष चलता रहा और सरकार द्वारा कानून वापिस लिए जाने के बाद मोर्चा समाप्त कर दिया गया। मगर शायद कुछ राजनीतिक जत्थेबं​िदयों को यह रास नहीं आया क्योंकि किसानों की आड़ में उनकी राजनीतिक रोटियां सिकनी शुरू हो गई थी जिसके चलते उन्होंने इस मुद्दे को पूरी तरह से शांत नहीं होने दिया। होना यह चाहिए था कि सरकार के द्वारा कानून वापिस लिए जाने के बाद भी अगर सरकार और किसानों के बीच कुछ मनमुटाव रह गया था तो सभी राजनीतिक पार्टियों को पंजाब और किसानों की बेहतरी के लिए मिल बैठकर उसे दूर करवाना चाहिए था। पिछले साल फरवरी में एक बार फिर से किसानों के द्वारा दिल्ली कूच की खबरों के बीच हरियाणा के शम्भू बाॅर्डर को सील कर दिया गया। किसानों और प्रशासन के बीच आमने-सामने का टकराव भी हुआ। तब से लेकर आज तक तकरीबन एक वर्ष होने को है किसान शम्भू बार्डर पर पंजाब की ओर सड़कों पर बैठे हैं हालांकि इनकी गिनती पहले से बहुत ही कम है और दूसरा इन्हंे पब्लिक का सहयोग नहीं मिल रहा पर जो भी हो इसके चलते आम जनता एक साल से पिस रही है।

दिल्ली से रोजाना हजारों गाड़ियां, बसें, ट्रक दिल्ली से पंजाब को आते और जाते हैं जिन्हंे मेन हाईवे बंद होने के कारण 8 से 10 किलोमीटर का सफर तीन से चार गुना दूरी तय करके करना पड़ता है इतना ही नहीं गांवों की सड़कें पूरी तरह से टूट चुकी हैं जिसके चलते तकरीबन 2 घण्टे अधिक का समय लगता है। बीमार व्यक्तियों, गर्भवती महिलाओं को इन सड़कों पर चलते हुए और भी अधिक परेशानी होती है। रात के समय लोग रास्ता भटक कर खेतों में चले जाते हैं। पैट्रोल, डीजल की बर्बादी के साथ-साथ गाड़ियों को भी क्षति पहुंचती है। मगर बहुत ही अफसोस की बात कि पंजाब के 13 सांसद और 7 राज्य सभा से चुने नुमाईंदे भी मुंह बंद किए बैठे हैं। समाजसेवी बलदीप सिंह राजा का मानना है कि इसमें सबसे अधिक नाकामी पंजाब की भगवंत मान सरकार की है जिन्हंे अपने राज्य की जनता की रत्ती भर भी परवाह नहीं है। अगर वह केन्द्र की सरकार से मिलकर इस मसले का हल नहीं करवा सकते तो कम से कम उन्हें सरकारी मशीनरी लगाकर गांवों की सड़कों की मरम्मत करवानी चाहिए जिससे जनता की परेशानी को कम किया जा सके। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि किसान अपने खेतों में कार्यरत हैं ऐसे में हो सकता है जो लोग शम्भू बाॅर्डर पर धरने पर हैं उनमें ज्यादातर किसान हो ही ना तो किसानी जत्थेबं​िदयों को भी इसकी पड़ताल करनी चाहिए।

बागपत के रास्ते शीश लेकर आनंदपुर पहुंचे भाई जैता जी

सिख धर्म में अनेक ऐसे सिखों का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है जिन्होंने गुरु साहिबान के प्रति पूर्ण श्रद्धा भावना दिखाते हुए सेवा की यहां तक कि अपनी जान की परवाह भी नहीं की। इनमें से एक नाम है भाई जीवन सिंह जी जिन्हें भाई जैता जी कहकर भी सम्बोधन किया जाता है। भाई जैता जी जिन्होंने गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत के बाद उनके शीश को दिल्ली से लेजाकर आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी को सुपुर्द किया था। बादशाह औरंगजेब की सख्त हिदायत थी कि गुरु साहिब के पार्थिव शरीर को कोई हाथ तक नहीं लगाएगा मगर भाई जैता जी शीश को एक टोकरे में रखकर औरंगजेब के सिपाहियों को चकमा देकर कीरतपुर साहिब के लिए निकल पड़े। देर शाम बागपत पहुंचे और रात्रि विश्राम वहीं पर किया गया जिसके पुख्ता सबूत भी मिलते हैं मगर ना जाने क्यों इतिहासकारों के द्वारा इस स्थान का जिक्र ना करते हुए बड़ खालसा के रास्ते जाने का हवाला दिया जाता रहा है। पिछले 5 वर्षांे से सिख बुद्धिजीवी चरनजीत सिंह, आर एस आहुजा, चरन सिंह और उनकी टीम के द्वारा इस स्थान की पहचान कर दिल्ली के गुरुद्वारा शीशगंज साहिब से पैदल यात्रा बागपत लेकर जाई जाती है और शाम को शहीदी दिवस को समर्पित होकर दीवान सजाए जाते हैं। हालांकि पूरे गांव में केवल एक सिख परिवार है परन्तु गैर सिख परिवारों के द्वारा पूर्ण श्रद्धाभावना के साथ गुरुद्वारा साहिब में सेवा निभाई जाती है और शहीदी पर्व को भी बढ़चढ़ कर मनाया जाता है। स. चरनजीत सिंह की माने तो इस ऐतिहासिक स्थान पर गुरुद्वारा साहिब बनाने के प्रयास दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के सहयोग से किए जायेंगे और अगले साल गुरु साहिब के 350वें शहीदी दिवस तक इस कार्य को करने की कोशिश की जाएगी।

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