बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है...
कश्मीर में आतंकवाद के 30 वर्षों के इतिहास में सबसे बड़ा हमला हुआ है। अपने जवान खोने के बाद सीआरपीएफ ने संकल्प लिया है कि वे न तो भूलेंगे और
कश्मीर में आतंकवाद के 30 वर्षों के इतिहास में सबसे बड़ा हमला हुआ है। अपने जवान खोने के बाद सीआरपीएफ ने संकल्प लिया है कि वे न तो भूलेंगे और न माफ करेंगे। केन्द्र सरकार ने भी पाकिस्तान को दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया है। पूरा देश उबल रहा है लेकिन सवाल मुंह बाए खड़े हैं?
– क्या पाक परस्त अलगाववादियों को दी गई सुरक्षा वापिस ली जाएगी?
-क्या घाटी में आतंकवादियों की फसल तैयार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी?
-पाकिस्तान से हवाला के जरिए करोड़ों बटोरने वाले और उन पैसों का इस्तेमाल युवाओं को बरगलाने, पत्थरबाज तैयार करने वालों की कमर कब तोड़ी जाएगी?
-क्या भारत मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादियों की सूची में शािमल कराने में सफल होगा?
सवाल यह है कि क्या इतना कुछ करने के बाद दोजख बनी घाटी जन्नत बन जाएगी? आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। इससे पहले कि कश्मीर के मल्टीपल अार्गन फेल हो जाएं, भारत को अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए पुलवामा हमले के गुनहगारों तक पहुंचने के लिए बड़ी कार्रवाई को अंजाम देना होगा। स्वाभिमान किसी से उधार नहीं लिया जा सकता, उसकी रक्षा करने की कूव्वत भारत को अपने भीतर पैदा करनी होगी। स्वाभिमान की रक्षा का सबक भारत को अमेरिका और इस्राइल से लेना चाहिए।
अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर 9/11 हमले के गुनहगार लादेन को मार डाला था। आज इस्राइल से दुनियाभर के दुश्मन खौफ खाते हैं। दुश्मन उसकी खुफिया एजैंसी माेसाद से सबसे ज्यादा भयभीत रहते हैं। 13 दिसम्बर 1949 में शुरू की गई मोसाद एजैंसी को किलिंग मशीन भी कहा जाता है क्योंकि यह अपने दुश्मनों को दुनियाभर में ढूंढ-ढूंढ कर कत्ल कर डालती है। भारतीयों को याद होगा कि 1972 में आतंकवादियों ने इस्राइल के 9 खिलाड़ियों को मार दिया था जिसके बाद मोसाद ने इस वारदात में शामिल हर एक शख्स को ढूंढ-ढूंढ कर मार डाला। फौज और मोसाद के कारण ही इस्राइल को सबसे सुरक्षित देश माना जाता है। 1976 में युगांडा में इस्राइल के 54 नागरिकों को बंधक बना लिया गया था लेकिन माेसाद वहां घुसा और अपने 54 लोगों को मौत के मुंह से निकाल लाया था। भारत को आतंकवाद के खिलाफ इस्राइल की तर्ज पर लड़ना होगा।
पुलवामा का आतंकी हमला इंटैलीजैंसी की विफलता का स्पष्ट संकेत दे रहा है। हमने कारगिल में भी धोखा खाया था। अटल जी लाहौर में दोस्ती का पैगाम दे रहे थे उधर कारगिल में पाक की घुसपैठ हो रही थी। हैरानी की बात तो यह थी कि भारत के गुप्तचर तंत्र को पता ही नहीं चला कि वहां क्या हो रहा है। हमें अपनी ही धरती पर युद्ध लड़ना पड़ा और सैकड़ों जवानों की शहादत देनी पड़ी। यह पहली बार नहीं है जब जैश ने भारत में इस तरह के हमले किए हैं। इस सिलसिले की शुरूआत हुई थी 1994 में जब जैश सरगना मौलाना अजहर मसूद को कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में श्रीनगर में गिरफ्तार किया गया था। तब अजहर मसूद को रिहा कराने के लिए भारतीय विमान का अपहरण कर लिया गया था।
विमान का अपहरण कर कंधार ले जाया गया। 6 दिन बाद 31 दिसम्बर को अपहरणकर्ताओं की शर्तों पर अजहर मसूद, मुश्ताक जागर और शेख उमर सईद जैसे आतंकवादियों को भारतीय जेलों से बाहर निकाल कर विमान से कंधार ले जाकर छोड़ा गया। उसी विमान में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी सवार थे। यह वाजपेयी सरकार की विफलता थी। इसके बाद ही मौलाना मसूद अजहर ने फरवरी 2000 में जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी जो भारत के लिए अब तक सिरदर्द बना हुआ है।
हैरानी की बात तो यह है कि पुलवामा हमले के दो दिन पहले राज्य की पुलिस ने सुरक्षा बलों के साथ एक वीडियो साझा किया था। सोमालिया के आतंकी हमले का 33 सैकेंड का वीडियो आतंकियों द्वारा ट्विटर हैंडल के माध्यम से प्रसारित किया गया था। वीडियो के अंत में कहा गया था- इंशा अल्लाह ऐसा ही हमला कश्मीर में होगा। सवाल यह भी है कि इस वीडियो की जानकारी के बावजूद सावधानी क्यों नहीं बरती। सवाल यह भी है कि आतंकियों को ट्विटर और सोशल मीडिया के इस्तेमाल की इजाजत क्यों मिलती है। हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद के हमलावर आदिल अहमद का वीडियो जारी करके सोशल मीडिया के माध्यम से मजहबी ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश की जा रही है। सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से बढ़ रही कट्टरता आैर ध्रुवीकरण पर लगाम कैसे लगाई जाए।
भारत की लड़ाई उस अवधारणा से है जो केवल स्वयं को ठीक समझती है आैर बाकी सब को गलत मानती है। हमारी लड़ाई हुर्रियत के लोगों से है जिन्होंने धर्म के नाम पर पाखंड खड़ा किया हुआ है। खतरा इस्लाम से नहीं बल्कि इस्लामी आतंकवाद से है। जेहादी विचारधारा का लक्ष्य एक है- खून बहाना। जीत गए तो गाजी, मारे गए तो शहीद! अभी भी नहीं जगोगे तो हम ही मिट जाएंगे। कविवर दिनकर की वाणी तो मानो हृदय बेधती है-
है बहुत देखा-सुना मैंने मगर
भेद खुल पाया न धर्म-अधर्म का
आज तक ऐसा, कि रेखा खींच कर
बांट दूं मैं पुण्य काे ओर आप को
जानता हूं लेकिन जीने के लिए
चाहिए अंगारे जैसी वीरता,
पाप हो सकता नहीं वह युद्ध है
जो खड़ा होता है ज्वलित प्रतिशोध पर
छीनता है स्वत्व तेरा और तू
त्याग तप से काम ले ये पाप है,
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है।