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लाॅकडाऊन का ‘मानवीय’ चेहरा

कोरोना के विरुद्ध युद्ध के हथियार ‘लाॅकडाऊन’ के चलते समाज के कमजोर तबके की दिक्कतों को कम से कम रखने के उपाय हालांकि केन्द्र व राज्य सरकारों ने कोशिश भर किये हैं

01:57 AM Apr 17, 2020 IST | Aditya Chopra

कोरोना के विरुद्ध युद्ध के हथियार ‘लाॅकडाऊन’ के चलते समाज के कमजोर तबके की दिक्कतों को कम से कम रखने के उपाय हालांकि केन्द्र व राज्य सरकारों ने कोशिश भर किये हैं

लाॅकडाऊन  का  ‘मानवीय’ चेहरा
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कोरोना के विरुद्ध युद्ध के हथियार ‘लाॅकडाऊन’ के चलते समाज के कमजोर तबके की दिक्कतों को कम से कम रखने के उपाय हालांकि केन्द्र व राज्य सरकारों ने कोशिश भर किये हैं परन्तु इस युद्ध का तरीका इतना अलग है कि भारत की कुल 130 करोड़ आबादी के आधे हिस्से को पूरी तरह सुविधाओं से लैस करना नामुमकिन है। सोशल डिस्टेंसिंग या भौतिक रूप से अलहदगी के चलते भारत की गरीब आबादी की विभिन्न उत्पादन गतिविधियों के जरिये सम्पन्न वर्ग पर निर्भरता की कड़ी पूरी तरह टूटना लाॅकडाऊन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी किन्तु कोरोना की ‘सामाजिक बर्बरता’ को देखते हुए ‘जान है तो जहान है’ की यह प्राथमिक शर्त भी थी। कोमोबेश रूप से पूरे भारत में इस शर्त का 21 दिनों के लाॅकडाऊन में पूरा पालन किया गया और जो कुछ अपवाद भी सामने आये उनके पीछे कुछ शरारती व स्वार्थी तत्वों की साजिश को नकारा नहीं जा सकता।
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 जाहिर है कि जान का वजूद जहान से ही है इसलिए  प्रधानमन्त्री ने जब कहा कि ‘जान भी जहान भी’ तो यह बात साफ हो गई कि कोरोना से लड़ाई जारी रखते हुए ही दुनियादारी की रवायतों को भी अमल में लाना होगा। ये रवायतें जिन्दगी जीने की हैं और इसे रवानगी देने की हैं। रवानगी जहान में जान फूंकने से ही आयेगी और इसकी तरफ सरकार ने कदम बढ़ाने का फैसला बहुत सोच-समझ कर किया है। एक बात पहले ही समझ ली जानी चाहिए कि कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में न कोई कांग्रेसी है न भाजपाई और न कोई कम्युनिस्ट है या समाजवादी। सभी हिन्दू-मुसलमान केवल भारत राष्ट्र के नागरिक हैं। अतः हर स्तर पर हर प्रयास समन्वित होना चाहिए। बेशक सुधार के लिए सुझाव देने का हक हर जिम्मेदार नागरिक से लेकर राजनीतिक दल को है मगर किसी भी कोशिश को नकारा नहीं जाना चाहिए। इस सिलसिले में आगामी 20 अप्रैल से केन्द्र सरकार ने जो छूट की घोषणा कृषि,  ग्रामीण तथा लघु उद्योग क्षेत्र में देने की है उसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इसका असर बहुआयामी होगा।
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किसी भी राज्य की कोरोना ग्रस्त  ‘पाकेटों’  को छोड़ कर शेष स्थानों में दैनिक दिहाड़ी करने वालों से लेकर कामगारों व शहर की सीमा से बाहर छोटा-मोटा धन्धा करने वालों को काम करने की इजाजत होगी मगर भौतिक दूरी बनाये रखने की शर्त के साथ। गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने जिस तरह पलायन करने को उद्यत मजदूरों की समस्या से लेकर लघु व मध्यम दर्जे के उद्योगों में काम करने वाले कामगारों की मुश्किलों को हल करने का प्रयास किया है वह समाज विज्ञान की अर्थवत्ता को सिद्ध करता है। ग्रामीण गरीबों व शहरों के कामगारों की हालत लाॅकडाऊन समय में सोचनीय इसलिए हो गई थी क्योंकि इन्हें ‘खैरात’ पर जीना पड़ रहा था। लोकतन्त्र में अपने एक वोट की ताकत से किसी भी सरकार  को बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखने वाले ये लोग सुबह होते ही उत्पादनशील गतिविधियों में संलग्न होकर रोजी-रोटी कमाने में माहिर होते हैं, इसके आत्मसम्मान की रक्षा करना प्रजातान्त्रिक सरकारों का पहला दायित्व होता है और श्री शाह ने इसी तरफ कदम बढ़ाया है। उनके मन्त्रालय ने साफ दिशा-निर्देश जारी कर दिये हैं कि जिन शहरों या कस्बों की पालिका सीमा के भीतर मजदूर उपलब्ध  हैं वहां भी निर्माण कार्य की छूट होगी। इसके अलावा शहर या पालिका सीमा से बाहर सड़क निर्माण से लेकर सिंचाई व औद्योगिक परियोजनाओं पर काम शुरू हो सकेगा, फैक्टरियां चल सकेंगी, ईंट भट्ठों  में धुआं उठ सकेगा, चाय-काॅफी  बागान में काम हो सकेगा, रबड़ उद्योग खुल सकेगा, गौशालाओं में सामान्य कामकाज शुरू किया जा सकेगा, सड़कों के किनारे शहर क्षेत्र से बाहर ढाबे खुल सकेंगे। सभी प्रकार के माल का ढुलान खोला जायेगा और ई-कामर्स कम्पनियां मौसम व समय को देखते हुए जरूरी उत्पाद ग्राहकों को बेच सकेंगी।
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 गृह मन्त्रालय ने यह रियायत देने का एेलान पहले से ही इसलिए किया  है जिससे शेष चार दिनों के भीतर विभिन्न राज्य सरकारें इस बाबत तैयारी कर सकें और लाॅकडाऊन के नियमों के पालन हेतु सभी को सावधान कर सकें। वास्तव में लाॅकडाऊन का यही ‘मानवीय चेहरा’ है जिसका जिक्र अक्सर सुनने को मिलता रहता है  परन्तु यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि श्री शाह की छवि एक कठोर प्रशासक की है। रियायतें देने के साथ ही उन्होंने कुछ हिदायतें भी राज्य सरकारों को दे दी हैं। ये हिदायतें हर हालत में लाॅकडाऊन के ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ नियमों का पालन करने की हैं।
पिछले दो दिनों में मुरादाबाद (उ.प्र.), इन्दौर (म.प्र.), मुर्शीदाबाद (प. बंगाल), बान्द्रा ( मुम्बई) व बिहार के एक शहर से जिस तरह भीड़ इकट्ठा होने की खबरें आयी हैं उससे अभी तक के किये-धरे पर पानी फिर सकता है। अतः श्री शाह ने निर्देश जारी कर दिया है कि जिस राज्य में जिस जगह भी ऐसी वारदात होगी वहां के आला अफसर के खिलाफ कार्रवाई होगी। किसी भी कीमत पर कोई धार्मिक समागम, सांस्कृतिक या सामाजिक आयोजन के बहाने लोगों के इकट्ठा होने की इजाजत नहीं दी जायेगी और यह नियम 3 मई तक सख्ती के साथ लागू रहेगा। कृषि क्षेत्र को पहले ही रबी की फसल की कटाई को देखते हुए छूट दे दी गई है और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी चालू करने की इजाजत दे दी गई है और मनरेगा कानून के तहत काम करने को भी 20 अप्रैल के बाद जायज कर दिया जायेगा। लघु व मध्यम उद्योग की मशीनरी भी चालू हो जायेगी। जाहिर है इससे मजदूरों, कामगारों व गरीबों को मदद मिलेगी, साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था का चक्का चल पड़ेगा जो स्वाभाविक तौर पर समूची अर्थव्यवस्था को चलायमान करने में उत्प्रेरक बन कर 3 मई के बाद औद्योगिक जगत को जीवन्त बनाने का काम करेगा। बेशक वित्त मन्त्रालय को इसे गतिमान बनाने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करनी पड़ेगी।
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