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संघर्ष से निकले नए भारत के कर्णधार

05:56 AM Aug 20, 2025 IST | Firoj Bakht Ahmed
संघर्ष से निकले नए भारत के कर्णधार

किसी भी राष्ट्र के निर्माण में कुछ कर्णधार हस्तियों का योगदान होता है, जैसे अब्राहम लिंकन का अमेरिका को बनाने में, चर्चिल का ब्रिटेन को बनाने में, शाह अब्दुल्लाह का सऊदी अरब को बनाने में, पुतिन का रूस को बनाने में आदि। इसी प्रकार से मौजूदा दौर में नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अजित डोभाल की तिकड़ी ने भारत को हर क्षेत्र में उन्नति से नवाजा है। इस में अमित शाह ने जिस प्रकार से राष्ट्र के लिए अपने को समर्पित कर दिया है, वह अपने में विलक्षण है। उनकी एक साधारण व्यक्ति से गृहमंत्री की उठान फूलों की सेज नहीं थी, बल्कि कांटों की थी।
अमित शाह आजाद भारत के सबसे लंबे समय तक गृह मंत्री होने का रिकार्ड बना चुके हैं। वे अब तक के सबसे कामयाब गृहमंत्री भी हैं क्या? इसका विश्लेषण लोग अपने- अपने तरीके से कर सकते हैं लेकिन सभी के विश्लेषण में इस बात का जिक्र जरूर होगा कि आखिर देश ने उनके कार्यकाल में क्या हासिल किया और आगे उनसे उम्मीदें क्या हैं? गृहमंत्री के रूप में अमित शाह अपने सातवें वर्ष के कार्यकाल में हैं। इस अवधि में उन्होंने जो सबसे बड़ी सार्वजनिक पहचान हासिल की वह यह है कि वे बड़े साहसी नेता हैं और देश को उनकी जरूरत है। यह भाव केवल सत्ता पक्ष का नहीं है, बल्कि विपक्ष का भी है।
आज देश का हर नागरिक मानता है कि प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित भाई शाह और सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल न होते तो अनुच्छेद 370 कभी नहीं हटता। देश की पुरानी कश्मीर समस्या के समाधान का कोई ऐसा कोई रास्ता नहीं निकलता। पंडित नेहरू ने तो कह दिया था कि अनुच्छेद 370 घिसते-घिसते घिस ही जाएगा, जिसे अमित शाह ने ही घिसा।
मुस्लिम महिलाओं को अधिकार और घुसपैठियों को देश निकला
पाकिस्तान, बंगलादेश और तीन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वाला एक विधेयक पारित नहीं हो पाता। मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक का कानून पास नहीं हो पाता और देश में रह रहे विदेशियों को चुन-चुन कर निकाला नहीं गया होता। अमित शाह ने मई 2019 में गृह मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। तब उनके सामने बहुत सारी चुनौतियां थीं। कश्मीर में पत्थरबाजी चरम पर थी, आतंकवादियों के शव के साथ जुलूस निकालकर उनका महिमामंडन किया जाता था। यहां तक कि कश्मीर के सरकारी तंत्र में भी आतंकवादियों के समर्थक घुस गए थे।
एक लंबे समय से चरमराए और भ्रष्टाचार में लिप्त वक्फ सिस्टम को नए संशोधन लाकर पिछड़े मुस्लिमों और विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं को वक्फ के ऊपर गलत तरीके से काबिज कुछ मुस्लिमों द्वार उनके छीने अधिकारों को वापिस दिलाने की कोशिश में भी अमित शाह, मोटा भाई का पूर्ण सहयोग है। वक्फ की लाखों करोड़ों की संपत्ति पर कुंडली जमाए मोटे-मोटे भ्रष्ट अफसर मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों, खानकाहों, अनाथालयों आदि पर बैठे हैं, अतः यह संशोधन उन्हें उनका हक दिलाएगा, भले ही विपक्ष कितना ही मुस्लिमों को भड़काता रहे।
अमित शाह ने इन सभी घटनाओं पर नियंत्रण स्थापित किया। अब कोई घाटी में पत्थर नहीं चलाता, किसी आतंकवादी का सार्वजनिक जनाजा नहीं उठता। किसी सरकारी विभाग से कोई अलगाववाद की आवाज नहीं आती। हालांकि कश्मीर में अब भी आतंक की वारदात हो जाती है लेकिन अब यह पाकिस्तानी आतंकवादियों की करतूत तक सीमित रह गई है, जिसका काफी हद तक इलाज आपरेशन सिंदूर के जरिए कर दिया गया है।
देश में नक्सलवाद की समस्या लगभग 6 दशक पुरानी है। लाखों लोग खूनी वाम विचारधारा की भेंट चढ़ गए लेकिन इसका स्थाई समाधान नहीं हो पाया परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में ही यह ऐलान कर दिया था कि लाल क्रांति की राह छोड़ कर जो धरती को हरा-भरा करने में आगे आएंगे, उन नक्सलियों को सामान्य और इज्जत की जिंदगी जीने में पूरा सहयोग देंगे लेकिन जो फिर भी हथियार चलाएंगे, उनको समाप्त कर देंगे। प्रधानमंत्री के संकल्प को गृहमंत्री अमित शाह ने पूरा करने का प्रण लिया और यह तय किया गया कि 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया कर दिया जाएगा। अब नक्सल आंदोलन अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। आंकड़ों से परिणाम को समझा जा सकता है।
2009 और 2014 के बीच नक्सली हिंसा में कुल 5225 लोग मारे गए थे लेकिन 2019 और 2024 के बीच यह संख्या 600 से कम हो गई। सबसे ज्यादा सुखद परिणाम सुरक्षाकर्मियों की हताहत के मामले में आया है। अब पहले की अपेक्षा नक्सली आपरेशन में हमारे सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु की संख्या में 56 प्रतिशत की कमी आई है। इस दौरान नक्सल नेतृत्व को लगभग खत्म कर दिया गया है। 21 प्रमुख नक्सली नेताओं को मार गिराया गया है। यह अमित शाह की आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहनशीलता नीति का ही परिणाम है।
आंतरिक सुरक्षा के लिए जरूरी है कि लोगों में यह विश्वास जगे कि सरकार और कानून उनके साथ है। इस विश्वास की बहाली के लिए पिछले कुछ सालों में कानूनी खामियों को दूर करने के कई बदलाव किए गए हैं। जैसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम में 2019 में संशोधन। पिछले साल लिए गए इस संशोधन के बाद एनआईए के अधिकार क्षेत्र में विस्तार तो हुआ ही साथ ही कई ऐसे अपराध भी उसकी परिधि में आ गए जो नए जमाने के साथ उभरे हैं। अब एनआईए मानव तस्करी, जाली मुद्रा, प्रतिबंधित हथियार, साइबर आतंकवाद और विस्फोटक पदार्थों से संबंधित अपराधों की भी जांच कर सकेगा, भले ही वे भारत के बाहर किए गए हों। विदेशों में बैठे भारतीय अपराधियों को अब देश में लाना आसान हो गया है।
देश में कांग्रेस की सरकार के दौरान कई ऐसे संगठन कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो गए, जिनका मुखौटा वाम या अलगाववादी राजनीतिक आंदोलन का था लेकिन काम वे देश हित के खिलाफ करते थे। अमित शाह ने गृह मंत्री के रूप में कई ऐसे ही संगठनों को ना केवल प्रतिबंधित किया, बल्कि उनके नेतृत्व के खिलाफ कठोर कार्रवाई भी की।
पिछले दस वर्षों में मोदी सरकार ने 23 ऐसे ही संगठनों को गैरकानूनी संगठन घोषित किया है। अमित शाह के गृह मंत्रालय संभालने के बाद 9 संगठनों को पहली बार गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया। इनमें पीएफआई और हुर्रियत भी शामिल है। देश के पूर्वोत्तर राज्य वर्षों से आंतरिक संघर्ष में उलझे हुए थे। गृहमंत्री अमित शाह ने बड़ी सूझबूझ से पूर्वोत्तर के कई उलझे मामले सुलझा दिए हैं। पिछले 6 वर्षों में इस क्षेत्र में 12 शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं जो कि एक रिकार्ड है। इस कारण पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में स्थाई शांति का वातावरण तैयार हुआ है। यहां की हिंसक घटनाओं में 71 प्रतिशत की कमी आई है। 10,500 से अधिक उग्रवादियों का आत्मसमर्पण हुआ है। पूर्वोत्तर में शांति का सबसे बड़ा सबूत आर्मड फोर्सेज स्पेशल पावर के दायरे में आई कमी है। त्रिपुरा और मेघालय से एएफएसपी को पूरी तरह से हटा दिया गया है। असम के केवल 3 जिले, अरुणाचल प्रदेश के 3 जिले और नगालैंड के कुछ क्षेत्राें में ही एएफएसपी लागू है।
अमित शाह को लोग टास्क मास्टर कहते हैं। उन्हें काम करना और करवाना बखूबी आता है। प्रधानमंत्री मोदी के सबसे करीबी होने के कारण भले ही उनको अवसर मिला लेकिन पहचान उन्हें उनके काम से मिली है। वह बहुत सारे काम एक साथ कर सकते हैं। वह इस समय देश में प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे उपयोगी सहयोगी हैं।

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