मोदी-भागवत की बैठक के बाद ही तय होगा नया अध्यक्ष?
ऐसा लगता है कि अगले भाजपा अध्यक्ष को लेकर सस्पेंस अभी कुछ और समय तक बना रहेगा, कम से कम तब तक जब तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी नाम को अंतिम रूप देने के लिए आमने-सामने की बैठक तय नहीं कर लेते। दोनों नेताओं की व्यस्तताओं के कारण यह बैठक नहीं हो पा रही है। भाजपा के खेमे में उम्मीद थी कि यह महत्वपूर्ण चर्चा दिल्ली में 4 से 6 जुलाई तक चलने वाली आरएसएस की तीन दिवसीय बैठक के आसपास होगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री आरएसएस की बैठक शुरू होने से दो दिन पहले, 2 जुलाई को पांच देशों के दौरे पर निकल पड़े। इस दौरे में 6 और 7 जुलाई को ब्राज़ील में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भी शामिल था।
जानकार सूत्रों के अनुसार, इस कदम ने आरएसएस को चौंका दिया क्योंकि उनकी दिल्ली बैठक की तारीखें तीन महीने से भी पहले तय हो गई थीं और भागवत-मोदी की बातचीत के लिए दिल्ली को सूचित कर दिया गया था। लेकिन पीएम का ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेना भी तय था। अब आरएसएस और भाजपा को इन दोनों की बैठक के लिये एक बार फिर तिथियां तय करनी होंगी। इस बीच, भाजपा के खेमे में संभावित भाजपा अध्यक्ष के तौर पर तमाम तरह के नाम उछल रहे हैं, और संघ से किसी सकारात्मक संकेत की उम्मीद है। आरएसएस ने अभी तक इन सुझावों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है
नौकरशाहों पर क्यों निशाना साध रहे योगी के मंत्री
उत्तर प्रदेश भाजपा में 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद शुरू हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर अभी जारी है। इस बीच योगी मंत्रिमंडल के एक और मंत्री औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल नंदी ने अधिकारियों पर निशाना साधा है और उन पर पक्षपात और अवज्ञा का आरोप लगाया है। नंदी पिछले कुछ महीनों में अधिकारियों की आलोचना करने और उन पर इसी तरह के आरोप लगाने वाले आठवें मंत्री हैं। अन्य मंत्रियों में ब्रजेश पाठक, आशीष पटेल, संजय निषाद, दिनेश प्रताप सिंह, जयवीर सिंह, दिनेश खटीक और प्रतिभा शुक्ला शामिल हैं।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि यह सब योगी को कमज़ोर करने की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। कोई भी पार्टी नेता, ख़ासकर कोई भी सरकारी मंत्री, योगी की आलोचना सीधी करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री एक हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में व्यक्तिगत रूप से जनता में काफी लोकप्रिय हैं। इसलिए उनके आलोचकों ने नौकरशाहों पर निशाना साधकर उन्हें कमजोर करने का प्रयास किया है। सूत्रों का कहना है कि इस बढ़ते असंतोष का एक मुख्य कारण उत्तर प्रदेश के लिए नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने में हो रही देरी है। वर्तमान अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है। और नया अध्यक्ष नहीं चुना जाने के कारण अभी भी चौधरी ही अध्यक्ष पद को संभाल रहे हैं। विधानसभा चुनाव दो साल से भी कम समय में होने वाले हैं, लेकिन लोकसभा चुनावों में आशातीत प्रदर्शन नहीं करने के बाद से भाजपा में एक-दूसरे की टांग खिंचाई करने का दौर अभी थमा नहीं है।
कंगना से खफा शीर्ष नेतृत्व, नड्डा के दौरे के दौरान अनदेखी
मंडी से सांसद कंगना रनौत ने पहले तो मानसून की बाढ़ के दौरान अपने संसदीय क्षेत्र से दूरी बनाकर और फिर पीड़ितों के राहत और पुनर्वास कार्यों की ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़कर पार्टी को परेशानी में डाल दिया। उन्होंने कहा कि उनके पास मंडी संसदीय क्षेत्र में काम करने के लिए न तो कैबिनेट मंत्री पद है और न ही धन। उनकी इस टिप्पणी से भाजपा कार्यकर्ता इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को एक आपातकालीन संदेश भेजा। नड्डा को मंडी में मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिए अचानक दौरा करना पड़ा। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव कार्य तेज़ करने का आदेश दिया।
हिमाचल प्रदेश में अब तक बाढ़ ने 85 लोगों की जान ले ली है। मंडी दौरे पर गई नड्डा की टीम में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर शामिल थे, लेकिन कंगना रनौत को नज़रअंदाज़ कर दिया गया, हालांकि कि वह उस क्षेत्र की सांसद हैं। यह कंगना के लिये आंखे खोलने वाला था, जिन पर स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा उपेक्षा और उदासीनता का आरोप लगाया जा रहा है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंगना को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह लोकसभा सांसद होने के आकर्षण और प्रसिद्धि के लिए मंडी से सांसद बन पाई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने कंगना पर मंडी में राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए अपनी सांसद निधि (एमपीएलएडी) का इस्तेमाल न करने का भी आरोप लगाया है। एमपीएलएडी कार्यक्रम के तहत, प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र के कार्यों पर खर्च करने के लिए सालाना 5 करोड़ रुपये मिलते हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं ने नड्डा से शिकायत करते हुए कहा कि पांच साल के लोकसभा कार्यकाल में यह राशि 25 करोड़ रुपये होती है, जो मंडी में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए पर्याप्त से भी ज़्यादा है।