टॉप न्यूज़भारतविश्वराज्यबिजनस
खेल | क्रिकेटअन्य खेल
बॉलीवुड केसरीराशिफलसरकारी योजनाहेल्थ & लाइफस्टाइलट्रैवलवाइरल न्यूजटेक & ऑटोगैजेटवास्तु शस्त्रएक्सपलाइनेर
Advertisement

तेल बिगाड़ रहा है खेल

NULL

10:14 AM May 07, 2019 IST | Desk Team

NULL

देश में पैट्रोल की खपत लगातार बढ़ रही है। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत की विदेशी कच्चे तेल पर निर्भरता बढ़ी है। पैट्रोलियम मंत्रालय के पैट्रोलियम योजना एक विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) के आंकड़ों के अनुसार उपयोग तेजी से बढ़ने और उत्पादन एक ही स्तर पर टिके रहने की वजह से देश की कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता 2018-19 में बढ़कर 83.7 फीसदी हो गई जो 2017-18 में 82.9 फीसदी थी। 2015-16 में आयात पर निर्भरता 80.6 फीसदी थी। देश में कच्चे तेल की खपत 2015-16 में 18.47 करोड़ टन थी जो 2018-19 में बढ़कर 21.16 करोड़ टन पहुंच गई है। खपत बढ़ती जा रही है आैर इसके विपरीत घरेलू उत्पादन लगातार घट रहा है। देश में कच्चे तेल का उत्पादन 2015-16 में 3.69 करोड़ टन था जो 2016-17 में घटकर 3.60 करोड़ टन रह गया। 2018-19 में यह और घटकर 3.45 करोड़ टन रह गया। आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2018-19 में कच्चे तेल के आयात पर 111.9 अरब डॉलर खर्च किए। चालू वित्त वर्ष में तेल आयात बिल बढ़कर 112.7 अरब डॉलर होने का अनुमान है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि देश को 2022 यानी अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ तक तेल आयात पर अपनी निर्भरता 10 प्रतिशत घटाकर 67 फीसदी तक लाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने 2030 तक कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटाकर 50 फीसदी पर लाने का लक्ष्य रखा था। भारत की विदेशों से आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता बढ़ना आर्थिक मोर्चे पर अच्छी खबर नहीं है। अगर भारत अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा तेल आयात बिल चुकाने में लगाता रहा तो इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। देश का आयात बिल जिस तरीके से बढ़ा है उससे विदेश व्यापार घाटे का ग्राफ भी चढ़ता दिखाई दे रहा है। 2018-19 में भारत का निर्यात 9 फीसदी बढ़कर 331 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यद्यपि निर्यात का यह रिकार्ड स्तर है लेकिन निर्यात के साढ़े तीन सौ अरब डॉलर के लक्ष्य से कम ही है। पिछले वित्त वर्ष में लगातार घाटा बढ़कर करीब 176 अरब डॉलर का रहा।

इस समय देश के व्यापार घाटे के सामने एक बड़ी चुनौती अमेरिका की तरफ से भी आ रही है और चीन से भी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं पर अन्यायपूर्ण तरीके से आयात शुल्क लगाए हैं और अमेरिका भी भारत का विभिन्न प्रकार की निर्यात सम्बन्धी रियायतों पर अंकुश लगाएगा। अमेरिका ऐसा कर भी रहा है। पिछले एक दशक में चीन की भारतीय बाजारों में घुसपैठ बढ़ी है। 2001-02 में भारत और चीन का व्यापार केवल 3 अरब डॉलर था जो अब बढ़कर 88 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत के सामने आयात बिल घटाने और निर्यात बढ़ाने की बड़ी चुनौती है।

अर्थव्यवस्था में सुस्ती के जो संकेत आ रहे हैं उससे साफ है कि उद्योग, कारोबार, बैंकिंग आैर वित्तीय क्षेत्र, सेवा क्षेत्र और दूरसंचार जैसे प्रमुख क्षेत्र के हालात पिछले कुछ समय से अच्छे नहीं रहे हैं और न आने वाले महीनों में अच्छे रहने वाले हैं। सरकार की तरफ से भी अर्थव्यवस्था में सुस्ती के तीन कारण बताए जा रहे हैं। उनमें पहला कारण मांग में कमी, दूसरा स्थायी निवेश में बढ़ौतरी न के बराबर होना और तीसरा कारण निर्यात का सुस्त होना शामिल है। यही कारण रहा कि केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने इस वर्ष फरवरी में 2018-19 की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7.20 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया था। पिछले महीने रिजर्व बैंक ने रेपो दर में कटौती कर जो कदम उठाया था, उसका मकसद अर्थव्यवस्था में तेजी लाने की दिशा में आगे बढ़ना था।

तेल आयात के मोर्चे पर अमेरिका पाबंदियां लगा रहा है, उससे भारत के लिए आने वाले दिन ज्यादा मुश्किल भरे हो सकते हैं। अमेरिका अपने लिए कहां से तेल निकाल ले, कुछ पता नहीं। जहां-जहां तेल है वह अपनी तोप-तमंचा लेकर पहुंच जाता है। उसकी पाबंदियां दूसरे देशों के लिए हैं। ईरान पर पाबंदी के बाद भारत को नए ​देशों से तेल खरीदना महंगा पड़ सकता है। इससे तेल तो ​जनता का ही निकलेगा। आम चुनाव के शोर-शराबे के बीच चुनौतियां बढ़ रही हैं। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए ढेर सारे कदमों की जरूरत होगी। नई सरकार को अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए नई नीतियां बनानी होंगी। फिलहाल तो तेल अर्थव्यवस्था का खेल बिगाड़ ही रहा है। यह भी देखना होगा कि हम तेल पर निर्भरता किस प्रकार घटाते हैं।

Advertisement
Advertisement
Next Article