एक लद्दाखी का दर्द
लद्दाख अब भी बेचैनी की स्थिति में है। हिंसा भले ही थम गई हो, लेकिन पहाड़ी राज्य के लोगों में गहरी निराशा और सरकार द्वारा जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को निशाना बनाए जाने को लेकर असंतोष बरकरार है। उन्हें रिहा करने की सभी अपीलें अनदेखी कर दी गई हैं और वांगचुक अब भी हिरासत में हैं। एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चे़रिंग दोरजे लाखरूक, जो राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची सहित अन्य मांगों को लेकर सरकार से बातचीत कर रहे हैं, कहते हैं, “हम मानते हैं कि वह निर्दोष हैं। वह न तो िजम्मेदार हैं और न ही लद्दाख की हिंसा के पीछे उनका कोई हाथ है। वास्तव में, हमारी मांग पूरे भारत में इसलिए प्रमुख बनी क्योंकि उन्होंने उसे आवाज दी।”
वांगचुक पर भड़काऊ भाषण देने के आरोपों को खारिज करते हुए लाखरूक ने कहा, “उन्होंने लोगों को हिंसा के लिए उकसाया नहीं। उलटे, उन्होंने अहिंसा की बात की। संभव है कि कुछ लोगों ने उनकी बातों को गलत समझा हो। हमारे लिए वह निर्दोष हैं।”
सरकार द्वारा उन्हें निशाना बनाए जाने के पीछे का कारण बताते हुए लाखरूक ने कहा कि वांगचुक की वजह से “हमारे आंदोलन को गति मिली,” और दोहराया कि वांगचुक निर्दोष हैं और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “आरोपों को साबित किया जाना चाहिए और सरकार जांच करने के लिए स्वतंत्र है,” यह संकेत देते हुए कि जब तक ऐसा नहीं होता, उन्हें दोषी ठहराना अनुचित है।
उन्होंने रेखांकित किया कि प्रदर्शन और उसके बाद की हिंसा “संचित रोष” का परिणाम थे। लाखरूक ने आरोप लगाया कि सरकार “अपनी कमजोरियां छुपाने” के लिए दोषारोपण की राजनीति कर रही है। उनका कहना है कि असली मुद्दा बेरोजगारी है।
शिक्षित युवा सरकार से और उसके अधूरे वादों से तंग आ चुके हैं। छह साल पहले उन्हें छठी अनुसूची देने का वादा किया गया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए नाराजगी बढ़ती गई जैसे कि शिक्षित युवाओं को नौकरियां देने के मुद्दे पर भी और अन्य कई बातों पर।
एपेक्स बॉडी की मांगों की सूची पर नजर डालें तो गतिरोध साफ दिखता है। लाखरूक कहते हैं, “हम राज्य का दर्जा, एक अतिरिक्त सांसद और नौकरियां चाहते हैं।” इसी बीच एपेक्स बॉडी सरकार से इस बात पर बातचीत कर रही है कि वह कितनी दूर जा सकती है, उनकी मुख्य मांगें क्या हैं और सरकार वास्तव में क्या देगी या क्या नहीं देगी?
बातचीत के समानांतर चल रही एक और मांग वांगचुक की रिहाई की है, हालांकि यह बातचीत की पूर्व-शर्त नहीं है। लाखरूक कहते हैं, “हमने कभी नहीं कहा कि उनकी रिहाई बातचीत में शामिल होने की शर्त है। हमने सिर्फ इतना कहा है कि उन्हें बिना किसी शर्त के रिहा किया जाए। वह हमारी संस्था के सदस्य हैं, एपेक्स बॉडी का हिस्सा हैं, इसलिए उनका समर्थन करना हमारा कर्तव्य है। सिर्फ वही नहीं, और भी कई लोग जेल में हैं और हम उनकी रिहाई की भी मांग कर रहे हैं।”
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का स्वागत करने वालों में शामिल लाखरूक और उनके लोग अब निराश हैं। लाखरूक कहते हैं, “हम अलगाव चाहते थे, लेकिन एक अलग तरीके से। हम विधायिका के साथ केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा चाहते थे। हमें यूटी तो मिला, लेकिन विधायिका नहीं मिली। यह बहुत बड़ा अंतर है। पहले जब हम जम्मू-कश्मीर का हिस्सा थे, तब हमारे चार विधायक और दो एमएलसी होते थे, अब कुछ नहीं है। हमने अनुच्छेद 370 का विरोध इसलिए किया था क्योंकि यह लद्दाख के लिए यूटी का दर्जा पाने में बाधा था। हमें यूटी मिला, लेकिन वह संरक्षण खो दिया जो अनुच्छेद 370 हमें देता था, जमीन की सुरक्षा, नौकरियों की सुरक्षा, और बाहर के लोगों द्वारा भूमि खरीद पर रोक, अब यह सब बदल चुका है।”
इस बात को “दिलचस्प संयोग” बताया जा रहा है कि छह वर्षों से जमा गुस्सा ठीक उसी समय फूटा जब वांगचुक ने राज्य का दर्जा मांगने की बात उठाई। लाखरूक कहते हैं, “गुस्से को भड़कने के लिए एक चिंगारी की जरूरत होती है अगर लोगों में आक्रोश है तो वे अवसर का इंतजार करते हैं।” उन्होंने यह भी खारिज किया कि यह “चिंगारी” वांगचुक के विरोध प्रदर्शनों से लगी: “मुझे नहीं लगता,” उन्होंने कहा।
वांगचुक के पाकिस्तान से कथित संबंधों पर उन्होंने कहा, “अगर कोई व्यक्ति किसी सम्मेलन के लिए पाकिस्तान जाता है तो क्या वह पाकिस्तान-समर्थक या भारत-विरोधी हो जाता है? वह पर्यावरण पर बहस में हिस्सा लेने गए थे। वह दुनिया भर में जाते हैं- पाकिस्तान, चीन तो इसमें गलत क्या है? मैं भी पाकिस्तान गया था, तो क्या मैं राष्ट्र-विरोधी हूं?”
सरकार द्वारा लद्दाख के लोगों को राष्ट्र-विरोधी करार देने पर प्रतिक्रिया देते हुए लाखरूक ने कहा, “हम हमेशा भारत के साथ रहे हैं और हमारा संघर्ष मुख्यधारा के और करीब आने का है, न कि कश्मीर के अलगाववादियों की राह पर चलने का। हम भारत समर्थक थे, हैं और रहेंगे। इसलिए यह लेबलिंग लोगों को बहुत आहत करती है।”
छठी अनुसूची पर लोगों को ठगा गया महसूस होने के सवाल पर उन्होंने कहा, “यह सरकार का वादा था। अगर चुनाव के दौरान कोई वादा किया गया है, तो उसे पूरा करना चाहिए था। वरना यह वादा करना ही नहीं चाहिए था।”
भाजपा से नाता तोड़ चुके लाखरूक जो कभी मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष रह चुके, ने कहा, “मैंने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि महामारी के दौरान हमारे छात्र देशभर में फंसे हुए थे।
हमने पार्टी से मदद मांगी, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। जब कोई सहायता नहीं मिली, तो मैंने पद छोड़ दिया।” सत्ता और प्रतिष्ठा छोड़ने के बावजूद, लाखरूक कहते हैं कि वह अपने लोगों और अपने क्षेत्र के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।