भारतीय विद्यार्थी का दर्द...
जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने छात्र वीज़ा पर सख्ती लागू की तो व्यापक असंतोष फैल गया। अनेक मामलों में वीज़ा आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया, जबकि अन्य मामलों में प्रतीक्षा अवधि दस महीने से भी अधिक खिंच गई। कुछ पीएचडी प्रस्ताव तो इस अंतहीन प्रतीक्षा के कारण स्वतः समाप्त हो गए। सरकार का तर्क है कि इस कदम का उद्देश्य उन छात्रों को चिन्हित करना है जो वास्तविक पढ़ाई के बजाय वीज़ा का उपयोग काम और स्थायी निवास पाने के साधन के रूप में करते हैं किंतु इस प्रक्रिया में ईमानदार और गंभीर छात्रों को भी भारी असुविधा का सामना करना पड़ा है।
सरकार ने एक शृंखलाबद्ध सुधारों की घोषणा की है, जिनमें वीज़ा की कठोर शर्तें, अधिक कठिन अंग्रेज़ी भाषा परीक्षण और विदेशी छात्रों को लाने वाले शिक्षा एजेंटों के लिए कड़े नियम शामिल हैं। इन शर्तों ने संस्थानों की नीतियों को भी प्रभावित किया है और कुछ ने तो भारतीय छात्रों पर संपूर्ण प्रतिबंध तक लगा दिए हैं। सरकार यह स्वीकार करती है िक परिवर्तन कठिन होता है किंतु उनका कहना है कि वर्तमान में प्रवासन का स्तर अत्यधिक है और इसे ‘संतुलित स्तर’ पर लाना आवश्यक है।
इन परिस्थितियों ने भारतीय छात्रों के बीच गहरी चिंता उत्पन्न कर दी है। भारत परंपरागत रूप से ऑस्ट्रेलिया में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा समुदाय रहा है। छात्रों का मानना है कि जिस नीति ने कभी खुले द्वारों से उनका स्वागत किया था, वही अब अचानक उनके लिए दरवाज़े बंद कर रही है। अनिश्चितता और अप्रत्याशितता के कारण कई आवेदकों ने अपने वीज़ा आवेदन वापस ले लिए हैं। हालांकि आव्रजन की पारदर्शिता और गंभीरता को लेकर सरकार की चिंताएं उचित कही जा सकती हैं परंतु यह कदम दोनों देशों के बीच बनी आपसी सद्भावना को कमज़ोर कर सकता है।
स्थिति को स्पष्ट करते हुए भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त फ़िलिप ग्रीन ने कहा कि वीज़ा अस्वीकृतियों की संख्या में वृद्धि नहीं हुई है। उनके शब्दों में, यह सही नहीं है। ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों के वीज़ा अनुमोदनों का दर लगातार बढ़ रहा है। भारतीय छात्रों के ऑस्ट्रेलिया जाने का एक लंबा इतिहास रहा है और यह आगे भी जारी रहेगा, पर यह केवल एकतरफ़ा रास्ता नहीं होना चाहिए। मैं बताता हूं कि वास्तव में हो क्या रहा है। भारतीय सरकार ने विदेशी विश्वविद्यालयों को यहां शाखा कैंपस खोलने का अवसर दिया है और भविष्य इसी दिशा में है। फिर भी बहुत से भारतीय उच्च गुणवत्ता वाली ऑस्ट्रेलियाई शिक्षा चाहते रहेंगे और इसके लिए ऑस्ट्रेलिया भी जाते रहेंगे लेकिन इन कैंपसों की वजह से भारतीय परिवारों को कम लागत पर भारत में ही वही शिक्षा पाने का विकल्प उपलब्ध होगा।
कूटनीति की दृष्टि से यह शायद सबसे संतुलित बयान हो सकता था। फिर भी, क्या ये मीठे शब्द वस्तुतः एक ‘अदृश्य प्रतिबंध’ नहीं हैं, क्योंकि शाखा कैंपस भारत में खोले जा रहे हैं? इस पर ग्रीन ने कहा- ‘नहीं’ यह केवल विकल्प देने की बात है। भारतीय छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई का अवसर बना रहेगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि छात्रों की संख्या को लेकर ऑस्ट्रेलिया अपनी क्षमता की सीमा तक पहुंच रहा है। उनके अनुसार यह वास्तविकता है और यह भी सच है कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि भारत से आने वाले छात्र उच्च गुणवत्ता के स्तर पर हों। इसके बावजूद हम भारतीय छात्रों का स्वागत करते रहेंगे और वे ऑस्ट्रेलिया आते रहेंगे। साथ ही, यह दूसरा रास्ता भी खुला रहेगा जिसके ज़रिये कुछ छात्र भारत में ही इन पाठ्यक्रमों का लाभ उठा पाएंगे।
भारत और ऑस्ट्रेलिया के आपसी दृष्टिकोण पर ग्रीन ने कहा-भारत विकासशील देश है। यह तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यहां गहन ऊर्जा और जीवंतता है और आने वाले दशकों में यह क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर और भी निर्णायक भूमिका निभाएगा। ऐसे में ऑस्ट्रेलिया के लिए यह आवश्यक है कि वह भारत को गहराई से समझे और उससे निकटतर सहयोग बनाए। इस प्रश्न पर कि ‘नए भारत’ की अवधारणा क्या हाल की है या वर्षों से विकसित हो रही है, फ़िलिप ग्रीन ने कहा-पिछले पांच वर्षों में इसकी रफ्तार तेज़ हुई है। मैंने देखा है कि भारत का वैश्विक प्रभाव पहले की तुलना में कहीं अधिक बढ़ रहा है। आज भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले पांच वर्षों में तीसरे स्थान पर होगा। यह इस बात का संकेत है कि हाल के वर्षों में प्रगति कितनी तीव्र रही है।
द्विपक्षीय संबंधों पर बात करते हुए ग्रीन ने क्रिकेट और व्यापार को एक ही सांस में जोड़ा। उनके अनुसार, हमारे बीच आधुनिक और समकालीन संबंध हैं, हमारी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे की पूरक हैं और हमारे पास यह मानवीय सेतु है, लगभग दस लाख भारतीय मूल के लोग ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और यह सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रवासी आबादी है। क्रिकेट भी हमें जोड़ता है, पर हम इससे आगे बढ़ना चाहते हैं और उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहते हैं जो हमें भविष्य की ओर ले जाएंगे। क्रिकेट के लिए आइए और व्यापार के लिए रुकिए यह वाक्यांश इसी भावना से है कि भारतीय क्रिकेट का आनंद लें और साथ ही कुछ समय व्यापारियों के साथ बिताकर ऑस्ट्रेलिया में अपना व्यवसाय बढ़ाएं। मैं आधुनिक रिश्तों पर ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं, पर क्रिकेट की अहमियत को भी नज़रअंदाज़ नहीं करुंगा।
ग्रीन तब चर्चा में आए जब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के उप-प्रधानमंत्री रिचर्ड मार्ल्स को दिल्ली के मालचा मार्ग पर चाय पिलाने ले गए। उन्होंने बताया -हम ऑटो से गए। मुझे नहीं लगता कि उन्हें समझ में आया कि क्या हो रहा है और क्यों लेकिन वे बेहद प्रसन्न हुए। हम एक प्राचीन वृक्ष के नीचे खड़े थे, वहीं पास में एक छोटा सा मंदिर था और दशकों से वहां मौजूद चाय वाला हमें अपनी मशहूर चाय परोस रहा था। उनके लिए यह अनोखा अनुभव था। भारतीय संस्कृति की एक झलक। यह कहते हुए वे अपने लुटियंस दिल्ली स्थित भव्य आवास पर चाय की चुस्की लेते हैं, वह घर जिसे प्रसिद्ध वास्तुकार जोसेफ़ स्टीन ने बनाया था और जो अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है।
अंत में सकारात्मक संदेश देते हुए ग्रीन ने कहा-यह समाज विकास की दिशा में बड़े परिवर्तन से गुज़र रहा है और प्रधानमंत्री मोदी का 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य पूरी तरह सही प्रतीत होता है। कुछ देश आर्थिक रूप से मजबूत और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली बनने के बाद दुनिया से अपने संबंधों में आक्रामक हो जाते हैं। मेरी आशा है कि भारत गांधी की भावना से प्रेरणा लेकर एक वैश्विक शक्ति बनेगा जो शेष विश्व के साथ तालमेल और समन्वय के साथ आगे बढ़े।