Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

स्वस्थ भारत की राह

NULL

09:23 AM Nov 05, 2018 IST | Desk Team

NULL

देश में स्वास्थ्य सुविधाओं को देखें तो इस समय बहुत बुरा हाल है। प्राइवेट अस्पताल मरीजों को लाखों का बिल थमा ​रहे हैं। सरकारी अस्पतालों की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। कोई भी बीमारी फैलने पर चाहे वह डेंगू की बीमारी हो या कोई और, मरीजों को बैड तक नसीब नहीं होते। देश में वर्तमान में 14,379 अस्पताल हैं और इन अस्पतालों में 634 लाख बैड उपलब्ध हैं। देश में 879 लोगों के लिए एक अस्पताल है। दुनिया के कई देशों में 10,000 की जनसंख्या के लिए औसतन 30 अस्पताल हैं। इस ​दृष्टि से देखें तो भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत कम हैं। शहरों में तो सुविधाएं मिल भी जाएं मगर ग्रामीण क्षेत्रों में 1,000 लोगों के लिए 131 बैड ही उपलब्ध हैं। ‘प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना’ के तहत 55 करोड़ लोगों को उपचार की सुविधाएं देने की योजना है। इस योजना को लागू होने के बाद अब सरकार को देश में अस्पतालों की कमी की चिन्ता सताने लगी है। अस्पतालों में 6.5 लाख और बिस्तर की जरूरत है।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों में नए अस्पताल खोलने के लिए सलाह मांगी है क्योंकि इतने अस्पताल खोलने के लिए बजट रोड़ा बन सकता है इसलिए निजी अस्पतालों को इन शहरों आैर कस्बों में आने को कहा गया है। इसके लिए केंद्र आैर राज्य सरकारें मिलकर निजी कम्पनियों को अस्पताल खोलने के लिए बिजली, पानी, जमीन और अन्य तरह की स्वीकृति देंगी। नए अस्पताल प्राइवेट-​पब्लिक पार्टनरशिप में खोले जाने की योजना है। पिछले महीने नीति आयोग ने देशभर के निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। सरकार ने 2028 तक अस्पतालों में 13 लाख बिस्तरों की व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लागू हुए एक माह से ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर लाभार्थी सरकारी अस्पतालों की बजाय प्राइवेट अस्पतालों को तरजीह दे रहे हैं। योजना के तहत अब तक दो तिहाई सर्जरी और उपचार अकेले प्राइवेट अस्पतालों में ही किए गए हैं। ऐसा इसलिए है कि सरकारी अस्पतालों पर लोगों का विश्वास ही नहीं है।

अब सवाल यह है कि प​ब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत नए अस्पताल खोले गए तो जाहिर है कि कोई भी निवेश करेगा तो वह फायदे के लिए ही करेगा। सरकार चाहेगी कि इन अस्पतालों में लोगों को सस्ते में उपचार उपलब्ध हो। क्या ऐसा सम्भव हो पाएगा? प्राइवेट सैक्टर हमेशा ही सरकार से ज्यादा सुविधाओं की मांग करता है। निजी अस्पतालों को बिजली कमर्शियल दरों पर दी जाती है। ​जिन अस्पतालों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत सूचीबद्ध होना है उन्हें नेशनल हैल्थ एजैंसी द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप स्टैंडर्ड बरकरार रखना होगा। सरकार नए अस्पतालों को स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्रों को सुविधाएं देने पर विचार कर रही है। राज्य सरकारों को कहा गया है कि नए अस्पतालों के लिए उपलब्ध कराई जाने वाली भूमि की जानकारी दे। अस्पताल खोलने के लिए आगे आने वाले निजी क्षेत्र को सिंगल विंडो के तहत त्वरित मंजूरी दी जाए। इसमें कोई संदेह नहीं कि नरेन्द्र मोदी सरकार देश में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुविधाओं के विकास के लिए बहुत कुछ करने का इरादा रखती है लेकिन अब राज्य सरकारों को इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। देश में अस्पताल तो हैं लेकिन वह खुद बीमार हैं। डाक्टर और दूसरे अन्य स्टाफ की कमी है। लगातार बढ़ती आबादी के बीच बदहाल होती स्वास्थ्य सेवाएं लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं। डाक्टरों की कमी का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों के विभाग तो नर्सों और अन्य स्टाफ के भरोसे ही चल रहे हैं। फाइव स्टार अस्पतालों में जाएं तो लाखों का बिल थमा दिया जाता है।

प्राइवेट अस्पतालों की कहानियां तो दिल दहलाने वाली हैं। हरित क्रांति, श्वेत क्रां​ित आैर संचार क्रांति ने देश की तस्वीर को बदलकर रख दिया जिसने न सिर्फ देश को आर्थिक मजबूती प्रदान की बल्कि विश्व स्तर पर देश को स्वावलम्बी भी बनाया। भारत ने अपने विकास के पथ पर कई बुनियादी सेवाओं को खड़ा किया लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र अभी भी क्रांति की उम्मीद कर रहा है। अभी भी भारत जीडीपी का महज 1.06 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है जबकि श्रीलंका, थाइलैंड, चीन, ब्राजील जैसे देशों में स्वास्थ्य सेवाओं पर तीन-चार फीसदी खर्च किया जाता है।

संविधान में स्वास्थ्य को राज्य आैर केन्द्र दोनों का विषय बनाने के बावजूद अभी भी इसे बुनियादी तौर पर मजबूत नहीं बनाया जा सका। अभी भी ऐसे कई इलाके हैं जहां स्वास्थ्य सेवाएं सहजता से उपलब्ध नहीं हैं। प्रतिष्ठित अस्पतालों में गरीब मरीजों की अनदेखी की जाती है। उन्हें दरवाजे पर ही दुत्कारा जाता है। एम्स जैसे सरकारी अस्पताल भी भ्रष्टाचार और धांधलियों से अछूते नहीं हैं। मैडिकल टूरिज्म का भारत में भविष्य उज्ज्वल है लेकिन पैसा कमाने की होड़ में लगे अस्पताल गरीबों के प्रति बेरुखी कब बन्द करेंगे? स्वस्थ भारत की राह आसान नहीं। देखना है कि सरकार की नए अस्पताल खोलने की योजना किस तरह से आगे बढ़ती है।

Advertisement
Advertisement
Next Article