दम तोड़ता लाल आतंक
नक्सलवादी हिंसा देश में आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती रहा है। नक्सलवाद की…
नक्सलवादी हिंसा देश में आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती रहा है। नक्सलवाद की शुरूआत 1967 में पश्चिम बंगाल के गांव नक्सलबाड़ी से हुई थी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कानू सान्याल और चारू मजूमदार ने इस आंदेलन की शुरूआत की थी। वास्तव में यह आंदोलन सामाजिक और आर्थिक असमानता के विरुद्ध था। 1969 में जंगल भूमि के अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ एक व्यापक लड़ाई शुरू कर दी गई थी। नक्सली नेताओं का कहना था कि भूमि उसी की हो जो उस पर खेती करे। श्रमिकों और किसानों की दुर्दशा खत्म करने के लिए नक्सली हिंसा का सहारा लेने लगे। धीरे-धीरे यह आंदोलन फैलता चला गया। पशुपतिनाथ (काठमांडाै) से लेकर तिरुपति तक एक लाल गलियारा (रेड कॉरिडोर) स्थापित हो गया था। छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य नक्सली हिंसा से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। नक्सलियों का इरादा यही रहा कि वे हथियारों के बल पर सत्ता को उखाड़ फैंकें और पूंजीपतियों का शासन तंत्र और कृषि तंत्र पर वर्चस्व खत्म किया जाए। धीरे-धीरे इस आंदालन पर भी राजनीति का वर्चस्व बढ़ने लगा आैर यह आंदोलन अपने मूल मुद्दों से भटक गया। यह लड़ाई जल,जंगल और जमीन की न रहकर जातीय वर्ग की लड़ाई बन गई। नक्सली भले ही यह कहते हैं कि वे गरीब और आदिवासी लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन वे इसके नाम पर हिंसा करते रहे, लोगों से उगाही करते रहे और स्कूलों, अस्पतालों को निशाना बनाते रहे। पिछले 5 दशकों में उन्होंने सुरक्षा बलों के जवानों समेत हजारों निर्दोषों का खून बहाया। उन्होंने लगातार सुरक्षा बलों, सरकारी सम्पत्ति और लोकतांत्रिक संस्थाओं को निशाना बनाया।
अब नरेन्द्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों के समन्वित अभियान के चलते देश में लाल आतंक दम तोड़ चुका है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नारायणपुर में सुरक्षा बलों ने 27 नक्सलियों को मार गिया, जिनमें डेढ़ करोड़ का ईनामी कमांडर केशव राव उर्फ बस्व राजू शामिल है। इससे एक सप्ताह पहले 21 दिन लम्बे ऑपरेशन में 31 माओवादियों की मौत हुई थी और अब नारायणपुर की मुठभेड़ में 27 माओवादियों के मारे जाने का दावा है। केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों का ऐसा आंकलन है कि करेंगुट्टालू की पहाड़ियों, घाटियों और गुफाओं में बड़ी संख्या में माओवादी छिपे हुए थे, जिसके बाद हजारों की संख्या में सुरक्षाबलों को इस इलाके में उतारा गया। इस घटना में 31 माओवादियों की मौत के दावे के साथ ही सुरक्षाबलों ने यह भी दावा किया कि माओवाद विरोधी अभियान में कुल 214 माओवादी ठिकाने और बंकर नष्ट किए गए हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की थी कि 31 मार्च, 2026 तक देश में नक्सलवाद को समाप्त कर दिया जाएगा। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि सरकार नक्सलमुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने की ओर बढ़ रही है। केन्द्र सरकार ने 2015 में एक खास नीति बनाई और उसके अनुसार एक्शन प्लान बनाकर काम करना शुरू किया। सरकार बीते एक दशक से नक्सलवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। सरकार योजनाओं को पूरी तरह से लागू करके वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों का विकास करना चाहती है। इसका मतलब है कि सरकार नक्सलवाद को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करने वाली और उसे खत्म करने के लिए हर संभव कदम उठाएगी। इसका असर आंकड़ों को देखने से पता चलता है। मसलन, आज से डेढ़ दशक पहले अगर नक्सली वारदातों में 700 से ज्यादा नागरिकों की जानें जा रही थीं तो 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या घटकर 121 तक रह गई थी।
गृह मंत्रालय के अनुसार भारत में नक्सलवाद से प्रभावित जिलों की कुल संख्या पहले 38 थी। इनमें से सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या अब घटकर 6 हो गई है। साथ ही चर्चित जिलों और अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या में भी कमी आई है। नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित छह जिलों में अब छत्तीसगढ़ में चार जिले बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा, झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिला व महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला शामिल है। इसके अतिरिक्त चर्चित जिलों की संख्या जिन्हें गहन संसाधनों और ध्यान की आवश्यकता है 9 से घटकर 6 रह गई है। ये जिले आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू, मध्य प्रदेश में बालाघाट, ओडिशा में कालाहांडी, कंधमाल और मलकानगिरी और तेलंगाना में भद्राद्री-कोठागुडेम हैं।
एक तरफ सरकार वामपंथी उग्रवाद समाप्त करने के लिए काम कर रही है तो दूसरी तरफ नक्सल प्रभावित जिलों में विकास की परियोजनाएं तेज गति से चला रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल िबछाया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में अब तक सरकार नहीं पहुंची थी वहां शासन पहुंच रहा है। विकास की योजनाओं के चलते कई बड़े नक्सली कमांडर और कैडर आत्मसमर्पण कर रहे हैं। बड़े-बड़े नक्सली कमांडर ढेर किए जा चुके हैं। अब परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं और देश में नक्सलवाद अंतिम सांसें गिन रहा है।