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पिघलेगी रिश्ते पर जमी बर्फ!

रोटी-बेटी की सांझ वाले नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा रही हैं। नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है।

12:27 AM Oct 16, 2020 IST | Aditya Chopra

रोटी-बेटी की सांझ वाले नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा रही हैं। नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है।

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पिघलेगी रिश्ते पर जमी बर्फ
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रोटी-बेटी की सांझ वाले नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा रही हैं। नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। वर्तमान प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली भी वामपंथी हैं और नेपाल में नए संविधान को अपनाए जाने के बाद 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे।
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उन्हें वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था। के.पी. शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2015 में भारत की नाकेबंदी के बाद भी उन्होंने संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए के.पी. शर्मा चीन की गोद में बैठ गए।
नेपाल सरकार ने चीन के साथ एक डील कर ली और चीन ने अपने पोर्ट का इस्तेमाल करने की अनुमति नेपाल को दे दी। चीन भारत के खिलाफ घेराबंदी का कोई मौका नहीं चूक रहा। नाकेबंदी के दौरान नेपाल को लगा कि चीन की गोद में जाकर भारत की नाकेबंदी का तोड़ निकाला जा सकता है।
चीन ने नेपाल की ​सियासत में अच्छी खासी घुसपैठ बना ली है। बाद में नेपाल चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरई प्रोग्राम में शामिल हो गया। आलम यह है कि अब चीन नेपाल तक रेलवे लाइन​ बिछा रहा है। चीन ने बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रखा है।
चीन पहले छोटे देशों की हर तरह से मदद करता है फिर उन्हें ऋण के जाल में फंसाता है और बाद में उसकी जमीन कब्जाना शुरू कर देता है। चीन को छूट मिलने के बाद चीन ने नेपाल के सीमांत क्षेत्रों में कई मकान बना लिए, जिसकी सुगबुगाहट नेपाल की सियासत में भी है।
सियासत के एक वर्ग ने सत्ता को चीन की इन हरकतों  से आगाह भी किया है। दरअसल जब वामपंथी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने के.पी. शर्मा से इस्तीफा मांगा था तो के.पी. शर्मा ने भारत के विरुद्ध बयानबाजी कर सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई।
उन्होंने नक्शे में बदलाव कर भारतीय इलाकों लिंपियाधुरा, ​लिपुलेख और कालापानी को अपने नक्शे में दिखाया। यही नहीं नेपाल ने इन भारतीय इलाकों में अपनी हथियारबंद उपस्थिति भी बढ़ा दी। 1816 में ब्रिटिश हुकूमत के हाथों नेपाल के राजा कई इलाके हार गए थे। इसके बाद सुगौली संधि हुई, जिसमें उन्हें सिक्किम, नैनीताल, दार्जिलिंग, लिपुलेख और कालापानी भारत को देना पड़ा था। हालांकि अंग्रेजों ने बाद में कुछ हिस्सा लौटा दिया। यही नहीं तराई का इलाका भी अंग्रेजों ने नेपाल से छीन लिया था लेकिन  वर्ष 1857 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नेपाल के राजा ने अंग्रेजों का साथ दिया था। तब अंग्रेजों ने उन्हें इसका ईनाम दिया और पूरा तराई का इलाका नेपाल को दे दिया।
तराई के इलाके में भारतीय मूल के लोग रहते हैं लेकिन अंग्रेजों ने मनमानी की। 1816 में जंग की हार की कसक नेपाल के गोरखा समुदाय में आज भी बनी हुई है। इसका फायदा वहां के राजनीतिक दल उठा रहे हैं। इस ​िववाद में एक मुश्किल यह भी है कि नेपाल कह रहा है कि सुगौली संधि के दस्तावेज गायब हो गए हैं।
2015 में नेपाल के संविधान में मधेसियों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना डाला। मधेसी भारतीय मूल के लोग हैं और इनकी जड़ें बिहार तथा उत्तर प्रदेश से जुड़ी हुई हैं। मधेसियों और भारत के लोगों में रोटी-बेटी का संबंध है। नेपाल में सरकारी नौकरियों में पहाड़ी समुदाय का कब्जा है।
नेपाल में मधेसियों से भेदभाव हो रहा है। भारत-नेपाल में तल्ख रिश्ते चीन के ही इशारे पर हो रहे हैं। भारत ने हमेशा नेपाल को अपना छोटा भाई समझा। हर संकट में उसकी मदद की। भारत की नीति किसी भी देश की जमीन हथियाना नहीं होती बल्कि मानवता की सेवा करना ही होती है।
नेपाल की पुरानी पार्टियां अब पृष्ठभूमि में जा चुकी हैं, पुरानी पार्टियों के नेता चीन की सा​िजशों से अवगत थे, लेकिन परिदृश्य बदलने के बाद स्थितियां भी बदल गईं। ऐसा नहीं है कि के.पी. शर्मा ओली भारत के महत्व को नहीं जानते हैं। नेपाल द्वारा भारतीय इलाकों पर अपना दावा ठोकने की हवा निकल चुकी है।
नेपाल मंत्रिमंडल ने अपनी ही सरकार के दावों की जांच के लिए समिति बनाकर पूरे दावों को ही मिट्टी में मिला ​िदया। एक-एक करके के.पी. शर्मा के दावों की धज्जियां उड़ चुकी हैं। भारत विरोधी अनर्गल बयानबाजी कर ओली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में खुद को  स्थापित करना चाहते थे। अब भारत और नेपाल के रिश्तों पर बर्फ जमी हुई है, इसी बीच भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे नवम्बर के पहले सप्ताह में नेपाल की यात्रा करेंगे।
इस दौरान नेपाली राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी जनरल नरवणे को नेपाल सेना के जनरल की मानिंद रैंक प्रदान करेंगी, यह परंपरा 1950 में शुरू हुई थी जो  भारत-नेपाल सेनाओं के बीच मजबूत संबंधों काे दर्शाती है। इस दौरान नरवणे नेपाल के शीर्ष सैन्य अधिकारी पूर्णचन्द्र थापा और रक्षा मंत्री से बातचीत भी करेंगे। तल्ख रिश्तों के बीच जनरल नरवणे के दौरे से रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।
भारत-नेपाल की सेनाएं दिसम्बर के अंत में बंगलादेश में संयुक्त युद्धाभ्यास भी करेंगी। नेपाल को याद रखना होगा कि 28 हजार से अधिक नेपाली नागरिक भारतीय सेना की 7 गोरखा राइफल्स में सेवाएं दे रहे हैं। सवा लाख नेपाली तो भारतीय सेना से सेेवानिवृत्त हो चुके हैं, जो भारत से ही पैंशन ले रहे हैं। भारत-नेपाल के संबंध अपने आप में महत्वपूर्ण हैं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा
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