विदेशी धरती पर कांग्रेस सांसदों का रुख
शशि थरूर और सलमान खुर्शीद के बयान पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया…
भारत का संसदीय लोकतन्त्र इतना सुविचारित और संगठित है कि इसमें चुने हुए हर पार्टी के सांसद के अधिकार सदन के भीतर एक समान होते हैं। इसमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सांसद सत्ता पक्ष के साथ है और कौन विपक्ष के साथ है। संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन से निकली हुई ऐसी नायाब प्रणाली है जिसमें भारत के मतदाता को इसका मालिक बनाया गया है। अपने एक वोट के अधिकार का प्रयोग कर मतदाता हर सांसद को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से चुनता है।
ये सांसद संसद में पहुंच कर उसकी आवाज बनते हैं, मगर जब ये सांसद विदेश की धरती पर होते हैं तो वे भारत की संसद के सदस्य होते हैं और भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। विदेश की धरती पर संसद सदस्यों की अपनी पार्टी की सदस्यता गौण हो जाती है और वे भारत की संसद के सदस्य कहलाते हैं। अतः भारत में जिस भी पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज होती है वह उनकी अपनी सरकार होती है और इसकी नीतियों के अनुसार भारत की छवि विदेश में प्रस्तुत करना उनका धर्म होता है। इस सिलसिले में मुझे भारत के उप-प्रधानमन्त्री व गृहमन्त्री रहे श्री लाल कृष्ण आडवनी का 2012 में किया गया संयुक्त राष्ट्रसंघ का दौरा याद आ रहा है।
उस समय देश में कांग्रेस नीत डा. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार थी। डा. मनमोहन सिंह ने श्री आडवानी को राष्ट्रसंघ की साधारण सभा के 67वें सम्मेलन में भाग लेने भेजा था। श्री आडवानी ने सामाजिक विकास विषय पर अपने सम्बोधन में मनमोहन सरकार की ग्रामीण रोजगार स्कीम ‘मनरेगा’ की बहुत तारीफ की और इसे गरीबी कम करने व आम लोगों के सशक्तीकरण की विश्व की सबसे बड़ी योजना बताया। श्री आडवानी ने कहा कि मनरेगा विश्व की सबसे बड़ी काम के बदले धन की ऐसी योजना है जिसने गांवों से गरीबी दूर करने और लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस योजना के तहत भारत के पांच करोड़ 30 लाख लोगों को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है और इसमें पचास प्रतिशत महिलाओं की शिरकत होती है।
इस योजना से सामाजिक गैर बराबरी भी दूर हो रही है और ग्रामीण लोग आर्थिक रूप से सशक्त भी हो रहे हैं। इसके साथ ही इसकी मार्फत भारत में ग्रामीण आधारभूत ढांचे का भी निर्माण हो रहा है जिससे आर्थिक विकास को बल मिल रहा है। यह अक्तूबर 2012 का महीने था और उस समय तक मनमोहन सिंह सरकार भारत में विभिन्न घोटालों की गूंज से घिर चुकी थी। अतः आज यदि कांग्रेस नेता विदेश की धरती पर जाकर मोदी सरकार की नीतियों का समर्थन करते हुए उसकी पुरजोर वकालत कर रहे हैं तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं को घबराना नहीं चाहिए। मगर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध मोदी सरकार द्वारा विदेशों में भेजे गये बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों में शामिल कांग्रेस के सांसदों की वाणी से भारत में कांग्रेसी नेता घबराये से लगते हैं और कुछ नेताओं को भाजपा का महाप्रवक्ता तक कह रहे हैं।
लोकसभा में कांग्रेस के सांसद श्री शशि थरूर को यह खिताब कांग्रेस के एक नेता ने ही दिया है। इससे लगता है कि कांग्रेस पार्टी का आलाकमान श्री थरूर के विदेश में दिये गये बयानों से असमंजस में है। कांग्रेसी यदि यह नहीं समझ पा रहे हैं कि श्री थरूर विदेश की धरती पर कांग्रेस के सांसद नहीं बल्कि भारत की संसद के सांसद हैं तो यह उनकी समस्या है । विदेश में श्री थरूर का धर्म यही था कि वह वह भारत की सरकार की जमकर पैरवी करें, क्योंकि सवाल उस आतंकवाद का है जिसे पाकिस्तान भारत में चला रहा है। विगत 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जिस निर्मम तरीके से भारत के 27 नागरिकों की उनका धर्म पूछ-पूछ कर हत्या की उससे मानवता भी शर्मसार हो गई थी।
भारत ने इसका माकूल जवाब सैनिक आपरेशन सिन्दूर चलाकर दिया और पाकिस्तान में नौ आतंकवादी ठिकानों को तहस-नहस कर दिया। इसके साथ ही पाकिस्तान के 11 हवाई सैन्य अड्डों को भी तबाह किया गया। भारत ने यह सैनिक कार्रवाई आत्म सुरक्षा के लिए ही की थी जिसका उसे पूरा अधिकार था। इसी मुद्दे पर विश्व जनमत को भारत के पक्ष में करने के लिए प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने दुनिया के 32 मुल्कों में सांसदों के सात बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे। जाहिर है कि इन प्रतिनिधिमंडलों का धर्म विदेश में भारत का पक्ष रखने का ही था। भारत में जब श्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा नीत एनडीए सरकार है तो ये सभी सांसद इसी सरकार की नीतियों की व्याख्या करेंगे और अपनी पार्टी की नीतियों से ऐसे समय में उनका कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा।
बेशक भारत लौट कर वे अपनी पार्टी की नीतियों के अनुसार किसी भी मामले पर टीका–टिप्पणी करने को स्वतन्त्र होंगे, क्योंकि हम एक मजबूत लोकतन्त्र में रहे हैं, मगर कांग्रेसी नेताओं को इतनी सी बात नजर नहीं आ रही है और वे विदेश भेजे गये प्रतिनिधिमंडलों में शामिल सांसदों के मत की आलोचना कर रहे हैं। शशि थरूर के अलावा कांग्रेस के निशाने पर पूर्व विदेश मन्त्री श्री सलमान खुर्शीद के अलावा लोकसभा सांसद मनीष तिवारी भी हैं। श्री खुर्शीद ने विदेश की धरती पर जब यह कहा कि जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 समाप्त करके इस राज्य के भारत में सर्वांगीण समावेश को पुख्ता किया तो भारत में कांग्रेसी नेताओं को चिढ़ मच गई।
सलमान खुर्शीद ने ऐसा बयान देकर जम्मू-कश्मीर के बारे में भारत की सरकार के मत का ही समर्थन किया और सिद्ध किया कि भारत में कोई भी सरकार मनमोहन या मोदी सरकार हो सकती है, मगर विदेश में वह ‘भारत की सरकार’ ही होती है। घरेलू राजनीति में कश्मीर पर कांग्रेस का रुख कुछ भी हो सकता है, मगर विदेश में तो हर सांसद का मत भारत की सरकार का मत ही होगा और उसकी हर नीति भारत की नीति होगी। इससे विदेशों में यही सन्देश जायेगा कि संकट के समय समूचा भारत एक ही होता है वैसे भी कश्मीर को लेकर भारत के भीतर भी यही मत है कि अनुच्छेद 370 इस राज्य को शेष भारत से अलग जैसा रखता था।
अतः सलमान खुर्शीद ने राजनीतिक पटल पर कोई बिजली नहीं गिरा दी है। इसके अलावा कांग्रेस के ही श्री मनीष तिवारी ने भी आतंकवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत की सरकार का पूरा समर्थन किया और मोदी सरकार की नीतियों के अनुसार ही वक्तव्य दिया। उन्होंने विदेश की धरती पर कहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बख्शा नहीं जा सकता और अगर वह भविष्य में कोई आतंकवादी कार्रवाई करता है तो उसका जवाब बहुत कड़े तरीके से उसी तरह दिया जायेगा जिस तरह ऑपरेशन सिन्दूर के तहत पहलगाम कांड का दिया गया। श्री तिवारी ने साफ कहा कि भारत व पाकिस्तान के बीच 10 मई को हुए संघर्ष विराम में अमेरिका या किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं है। युद्ध विराम दोनों देशों के सैनिक कमांडरों की बातचीत के बाद घोषित किया गया।
वस्तुतः कांग्रेस के सभी सांसदों ने विदेशी धरती पर खड़े होकर राष्ट्रधर्म का पालन किया है, मगर इधर भारत के भीतर ही कांग्रेस के नेता श्री पी. चिदम्बरम ने भी पाकिस्तान के सन्दर्भ में मोदी सरकार की प्रशंसा की और उन्होंने परोक्ष तरीके से कांग्रेस के नेतृत्व को चेताया कि राष्ट्र संकट के समय राजनीतिज्ञों की दलगत पहचान के कोई मायने नहीं होते। उन्होंने भारत में ही कहा कि विदेशी प्रतिनिधिमंडलों में किस पार्टी से कौन सांसद शामिल होगा? इसका चयन करने का पूरा अधिकार सरकार को है, क्योंकि विदेशों में प्रतिनिधिमंडलों को भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा जा रहा है। अतः कांग्रेस पार्टी का कौन सांसद शामिल होगा इसे तय करने का पूरा अधिकार सरकार को है, जबकि कांग्रेस नेता कह रहे थे कि विदेश किस सांसद को भेजा जाये इसे तय करने का हक पार्टी आलाकमान या इस पार्टी के अध्यक्ष को मिलना चाहिए। वैसे ऐसा विवाद खड़ा करके कांग्रेस ने अपनी दूरदर्शिता का ही परिचय दिया है।