अवैध प्रवासियों की दास्तान
अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों की घर वापसी शुरू हाे चुकी…
अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों की घर वापसी शुरू हाे चुकी है। 104 अवैध प्रवासियों को लेकर अमेरिका का सैन्य विमान बुधवार को अमृतसर हवाई अड्डे पर पहुंचा। जान की बाजी लगाकर डंकी रूट से अमेरिका पहुंचे अनेक युवाओं का विदेश में रहने का सपना टूट गया। कुछ के लिए देश वापसी सुकून देने वाली हो सकती है लेकिन अनेक युवाओं की घर वापसी ने उन परिवारों को झकझोर कर रख दिया है, जिन्होंने अपनी जमीनें गिरवी रखकर या बेचकर रुपया खर्च कर अपने बच्चों को विदेश भेजा था। अनुमान के मुताबिक अमेरिका से 18 हजार भारतीयों को वापिस भेजा जाना है जो गैर कानूनी ढंग से वहां रह रहे हैं। अमेरिका में लगभग 7.25 लाख भारतीय अवैध तरीके से रह रहे हैं। विदेश भेजने का धंधा करने वाले हजारों एजैंटों ने विदेश जाने वाले युवाओं को जमकर लूटा है। गैर कानूनी रूप से विदेश जाने वालों का शोषण भी बहुत हुआ है। कबूतरबाजी और डंकी रास्तों से विदेश जाने वालों का कड़वा सच यह भी है कि उनका इस्तेमाल मानव तस्करी, ड्रग्स के कारोबार आैर अन्य गैर कानूनी कामों में भी किया गया है।
डिपोर्ट किए गए भारतीयों को हथकड़ियां लगाकर भेजे जाने की तस्वीरें देखकर हर भारतीय को बड़ी पीड़ा हुई है। इस मामले की गूंज संसद में सुनाई दी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस मुद्दे पर जवाब देते हुए आश्वस्त किया है कि भारतीयों से अमानवीय व्यवहार का मुद्दा अमेरिका से उठाएंगे। इस मुद्दे पर अमेरिकी रवैये की काफी आलोचना हो रही है। अगर अवैध प्रवासी अमेरिका ही नहीं, किसी अन्य देश में भी पकड़े जाते हैं तो िनश्चित रूप से वे अपराधी तो हैं ही और हर देश अपने-अपने कानून के िहसाब से ऐसा ही व्यवहार करता है। अवैध प्रवासी प्रतीकात्मक अपराधी ही हैं। दूसरा पहलु यह भी है कि विदेश में बसने की ललक में ऐसे लोग भी हैं जो वहां जाकर यह कहते हैं कि भारत में हमारा राजनीतिक उत्पीड़न किया जा रहा है। खालिस्तान समर्थकों ने ऐसे ही कारण बताकर अमेरिका और कनाडा में शरण ली हुई है।
लौटे भारतीयों में पंजाब के 30, हरियाणा के 33, गुजरात के 33, महाराष्ट्र के 3, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के दो-दो लोग शामिल हैं। अमेरिका से डिपोर्ट किए गए भारतीयों ने जो दर्द भरी दास्तानें सुनाई हैं वह रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं। सभी की दास्तान एक जैसी है कि किस तरह उन्होंने सऊदी अरब, कतर और इंग्लैंड में कुछ वर्ष गुजार कर अमेरिका तक का सफर तय किया। कुछ ने एजैंटों को 35-40 लाख रुपए देकर जंगलों के रास्ते भटक कर अमेरिका का बॉर्डर पार किया। कुछ ने जान जोखिम में डालकर नदियां पार कीं और अमेरिका पहुंच कर भी उन्हें जिल्लत भरी जिन्दगी गुजारनी पड़ी। हजारों किलोमीटर दूर से आए इस तूफान के थपेड़े अब पंजाब, हरियाणा आैर गुजरात के छोटे-छोटे गांव में हलचल मचाए हुए हैं। इन लोगों को रंग भेद का शिकार भी होना पड़ा। अमेरिकी लोगों ने इन्हें डॉग और स्टिंकी रैट जैसी गालियां भी दीं। किसी ने इनके मुंह पर थूका तो उफ तक न की, क्योंकि सब्जबाग दिखाने वाले एजैंटों ने उन्हें समझा कर भेजा था िक इस तरह के एक्ट नॉर्मल हैं। कोई चाहे तमाचा मारे, आपकी पगार ही काट ले या आपके मुंह पर थूक दे इन्हें चुप ही रहना है। न वे पुलिस में शिकायत करें, न ही मारपीट करें वरना पकड़े जाओगे। समूचा घटनाक्रम उन लोगों के लिए एक सबक है, जो गलत रास्ते अपनाकर विदेश जाने के इच्छुक हैं। इस मामले में भारत का रवैया जिम्मेदार देश का है। अवैध प्रवासन का भारत समर्थन नहीं कर सकता। भारत ने ट्रम्प प्रशासन को पहले ही यह आश्वस्त किया है कि वह अवैध प्रवासियों को स्वीकार करेगा। भारत में भी अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। अवैध बंगलादेशी भारत में घुसपैठ कर रिश्वत देकर आधार कार्ड, राशन कार्ड इत्यािद बना लेते हैं और भारतीय संसाधनों का दोहन करने लगते हैं।
अब जरूरत इस बात की है कि भारत युद्ध स्तर पर अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान करे और उनको बंगलादेश वापिस भेजा जाए। अवैध घुसपैठ केवल भारत की ही नहीं बल्कि अमेरिका, कनाडा और कई अन्य यूरोपीय देशों की भी समस्या है। अवैध घुसपैठ के चलते कई देशों में जन सांख्यिकी परिवर्तन हो रहे हैं और जेहादी तत्व सिर उठा रहे हैं। यूरोपीय देशों में जेहादी तत्व हिंसक वारदातें कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में कई देशों में अपनी संस्कृति को बचाने का खतरा भी उत्पन्न हो चुका है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प तो दोबारा सत्ता में आए ही अप्रवासन मुद्दे पर हैं। अवैध घुसपैठियों का नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। भारत को अमेरिका से सबक सीखने की जरूरत है। अमेरिका से लौटे भारतीयों से हमारी सहानुभूति जरूर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के युवाओं को रोजगार नहीं िमल रहा, इसलिए वह विदेश जाने की लालसा पाल लेते हैं। दूसरा पहलु यह भी है िक विदेश जाने के िलए लाखों रुपए का धन अगर देश में निवेश किया जाए तो उनकी परिस्थितियां बदल सकती हैं। अब सवाल यह है कि क्या इनके लिए कोई िवशेष नीति बननी चाहिए। इन लोगों का पुनर्वास िकस तरह से किया जाए। इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका अपनी दादागिरि दिखाता है और वह अति संरक्षणवाद की नीतियों को खुलकर हवा दे रहा है लेकिन भारत के लोगों को भी यह समझना होगा कि विदेश में अपमानजनक जिन्दगी जीने से बेहतर है अपने देश में सम्मान के साथ रहकर जीना और कमाना चाहिए।