Top NewsindiaWorldViral News
Other States | Delhi NCRHaryanaUttar PradeshBiharRajasthanPunjabjammu & KashmirMadhya Pradeshuttarakhand
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariBusinessHealth & LifestyleVastu TipsViral News
Advertisement

अखाड़ों की विचित्र दुनिया : योगी के लैपटाप

महाकुम्भ 2025 के महासूत्रधार योगी आदित्यनाथ जब मेले-क्षेत्र के पुनरीक्षण पर निकलते…

10:19 AM Jan 19, 2025 IST | Dr. Chander Trikha

महाकुम्भ 2025 के महासूत्रधार योगी आदित्यनाथ जब मेले-क्षेत्र के पुनरीक्षण पर निकलते…

महाकुम्भ 2025 के महासूत्रधार योगी आदित्यनाथ जब मेले-क्षेत्र के पुनरीक्षण पर निकलते हैं कि कड़े सुरक्षा पहरे के साथ-साथ दो लैपटॉप ऑपरेटर भी साथ-साथ चलते हैं। योगी 400 एकड़ के मेला-परिसर से हर कदम पर साक्षात जुड़े रहते हैं। वह जानते हैं कि विश्व के इस सबसे बड़े मेले में हुई कोई भी चूक कितनी महंगी सिद्ध हो सकती है।

महाकुम्भ से पहले उन्होंने 1954 से लेकर सभी कुम्भ-मेलों का पूरा विवरण पढ़ा था। उन्हें मालूम था कि वर्ष 1954 के महाकुम्भ में भगदड़ क्यों मची थी? योगी के निकटस्थ सूत्रों के अनुसार, वह इन दिनों मुश्किल डेढ़ से दो घंटा ही सो पाते हैं। शेष ऊर्जा वह योगासनों से जुटा लेते हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि शरारती एवं उपद्रवी-तत्वों के साथ-साथ निरंकुश अघोरी बाबाओं पर भी कड़ी नज़र रखनी होती है। वैसे एक सुखद बात यह भी है कि सभी 13 अखाड़ों में अनुशासन पर अखाड़ा-प्रशासन भी कड़ी नज़र रखते हैं। कुछ अखाड़ों में नशे पर कड़ी पाबंदी है। उदाहरणार्थ निर्मती पंचायती अखाड़ा न तो नशे की अनुमति देता है, न ही भभूत रमाने में, जबकि उदासीन अखाड़ों के अपने नियम हैं। इन अखाड़ों की अपनी-अपनी अदालतें होती हैं और दोषियों को कड़े दण्ड भी दिए जाते हैं।

निर्मल अखाड़े का आधार पवित्र-गुरु ग्रंथ साहब है, इसके प्रवेश द्वार पर निशान साहिब हैं। अंदर हॉल में सिंहासन पर विराजमान गुरु ग्रंथ साहिब, ग्रंथी गुरुवाणी का पाठ कर रहे हैं। सनातन के 13 अखाड़ों में से एक इस अखाड़े के हर टेंट में गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान हैं। साधु तड़के चार बजे उठकर स्नान करके गुरुवाणी का पाठ करते हैं। वह अकेला ऐसा अखाड़ा है जहां साधु चिलम, बीड़ी, सिगरेट, गांजा, भांग जैसा नशा नहीं करते। इस अखाड़े में न धूनी जलती है और न ही शरीर पर भस्म/भभूत लगाई जाती है। इस अखाड़े के साधु शरीर को वस्त्र से ढककर रखते हैं, उन्हें तपस्वी कहा जाता है। शैव व वैष्णव अखाड़ों में बाल मुंडवाकर संन्यासी या विरक्त होने की दीक्षा मिलती है जबकि निर्मल अखाड़े में केश रखवाए जाते हैं। अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह के अनुसार, उनका अखाड़ा नानकपंथी है। पहले निर्मल पंथ के साधु उदासीन अखाड़ों के साथ ही स्नान करते थे। हालांकि 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज ने पंजाब के पटियाला में अलग अखाड़े की स्थापना की। मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में बना। गुरुद्वारे के द्वार पर निशान साहिब फहराते हैं। निर्मल अखाड़े के खंडा के नीचे गेरुआ रंग की पताका होती है, जिस पर ओंकार अंकित रहता है।

अंतिम अमृत स्नान करता है अखाड़ा

कुम्भ के अमृत स्नान के लिए जाने वाला यह सबसे आखिरी अखाड़ा है। इस अखाड़े में पहले महामंडलेश्वर बनाने की परंपरा नहीं थी। साक्षी महाराज इस अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर बने, जो फिलहाल उन्नाव से भाजपा के सांसद हैं। अखाड़े में अब तक केवल 6 महामंडलेश्वर हैं।

पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा परिसर के बीच में पंच देव का मंदिर है, साथ ही एक पात्र में गोला साहिब हैं। कुछ साधु ध्वजा जी के सामने खड़े होकर हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं। बड़ा उदासीन अखाड़े की छावनी में एक हाईकोर्ट टेंट है। पूरी छावनी में यह एकमात्र ऐसा टेंट है जहां धूनी पर बैठे साधु चिलम पी सकते हैं। दरअसल, एक समय साधुओं के चिलम पीने पर मनाही हो गई तो बड़े उदासीन अखाड़े के साधुओं ने ‘हाईकोर्ट’ से चिलम पीने के लिए मुकदमा जीता, तब से उनका समूह अखाड़ा छावनी में ‘हाईकोर्ट’ कहलाने लगा। इसके उलट नया उदासीन अखाड़े में कोई साधु-चिलम नहीं पी सकता। बड़ा व नया दोनों उदासीन अखाड़ों की परंपराएं एक जैसी हैं। दोनों में पंचदेव (सूर्य, गणेश, शक्ति शिव और विष्णु) की उपासना होती है। पताका में एक तरफ हनुमानजी और दूसरी ओर पंजा बना है। बड़ा उदासीन अखाड़े के महात्मा चेहरे व शरीर पर धूनी की भभूत लगाते हैं लेकिन नए उदासीन अखाड़े में साधु सफेद, काले, पीले व लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं। बड़ा उदासीन अखाड़ा के महंत अद्वैतानंद ने कहा कि यह एकमात्र ऐसा अखाड़ा है जो कुम्भ खत्म होने के बाद यात्रा पर निकल जाएगा। कुम्भ में ही फिर से जुटेगा। अन्य अखाड़ों के साधु कुम्भ के बाद मूल स्थानों पर लौटते हैं लेकिन उदासीन अखाड़ों के लोग देश में भ्रमण करते रहते हैं।

गोलोक धाम मुरैना के संत उद्वव दास शाम 6 से रात 9 बजे तक गड्ढे में भरे पानी में बैठकर तपस्या करते हैं। वे 30 साल से दिवाली से शिवरात्रि तक ऐसा करते हैं।

400 एकड़ भूमि, 1 लाख 50 हजार टेंट, 40 हजार पुलिस कर्मियों की तैनाती। जल, थल व नभ में ‘ड्रोन सेना’ अलग। गत 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी 2025 तक चलने वाला यह महाकुम्भ विश्वभर से 40 से 45 करोड़ तीर्थ यात्रियों को आकर्षित कर रहा है। आने वाले लगभग 50 हज़ार मीडिया कर्मी (इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया) पूरा समय डटे रहेंगे। यद्यपि उनकी टीमें बदलती रहेंगी।

जहां तक इस महाकुम्भ के बजट का सम्बन्ध है, इस पर 12670 करोड़ रुपए का खर्च आंका गया है जबकि इससे 2.50 लाख करोड़ की आय का अनुमान है। अर्थ विशेषज्ञों के अनुसार, स्थानीय अतिथि गृहों, होटलों, मोटलों व रेस्तराओं को 40 हज़ार करोड़ रुपए की आय का अनुमान है।

हेलीकॉप्टर-सेवाएं एक ट्रिप के 5000 रुपए पर उपलब्ध है और उन्हें भी लगभग सात हजार यात्री प्रति दिन मिल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, 40 से 45 करोड़ यात्री किराए-भाड़े व खान-पान, दान-पुण्य आदि पर प्रति व्यक्ति 6000 से 8000 रुपए तक खर्च करेंगे। हस्तशिल्प आदि की बिक्री वाले संस्थानों को पूरा विश्वास है कि वे भी 20 से 25 हज़ार करोड़ रुपए कमा लेंगे। हेलीकॉप्टर सेवा के साथ-साथ परिवहन के अन्य संसाधनों टैक्सी, टैम्पो आदि भी 10 हज़ार करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखे हुए हैं। कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि यह विश्व का सबसे बड़ा मेला है और प्रबंधन के आधार पर ऐसी ‘मैनेजमेंट’ विश्व में कभी भी, कहीं भी सुनी या देखी नहीं गई।

Advertisement
Advertisement
Next Article