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समय बदल रहा है...

एक समय ऐसा आ गया था कि लग रहा था कि हर इंसान भाग रहा है। कहीं बड़ी-बड़ी रैलियां, कहीं बड़ी-बड़ी शादियां, कहीं बड़े इवेंट, कहीं बर्थडे पार्टी और कहीं वैडिंग एनीवर्सरी। एक सामाजिक व्यक्ति को चैन नहीं था।

12:39 AM Nov 29, 2020 IST | Kiran Chopra

एक समय ऐसा आ गया था कि लग रहा था कि हर इंसान भाग रहा है। कहीं बड़ी-बड़ी रैलियां, कहीं बड़ी-बड़ी शादियां, कहीं बड़े इवेंट, कहीं बर्थडे पार्टी और कहीं वैडिंग एनीवर्सरी। एक सामाजिक व्यक्ति को चैन नहीं था।

समय बदल रहा है
एक समय ऐसा आ गया था कि लग रहा था कि हर इंसान भाग रहा है। कहीं बड़ी-बड़ी रैलियां, कहीं बड़ी-बड़ी शादियां, कहीं बड़े इवेंट, कहीं बर्थडे पार्टी और कहीं वैडिंग एनीवर्सरी। एक सामाजिक व्यक्ति को चैन नहीं था। चारों तरफ भाग-दौड़ थी। तब भी आधे से ज्यादा लोग नाराज रहते थे कि आप फलां फंक्शन पर पहुंचे नहीं। चारों तरफ खाने की बर्वादी और फिजूलखर्ची भी नजर आ रही थी। बस सिर्फ एक ही काम साथ-साथ अच्छा था कि लोगों को रोजगार बहुत मिल रहा था। चाहे वो कैटरिंग (खाना परोसने वालों), टैंट, होटल, इवेंट मैनेजमैंट, फूल, म्यूजिक वाले हों,  बस ऐसे लोगों को देखकर विश्वास होता था कि बहुत से परिवार पल रहे हैं। रोजगार मिल रहे हैं। रैलियों के लिए झंडे, बैनर और बैक ड्रोप बनाने वालों को भी रोजगार मिल रहा था।
परन्तु साथ ही साथ इतना शोर हो रहा था कि पूछो मत, बहुत से लोग पिस भी रहे थे। कहते हैं न जब किसी भी बात की अति हो जाती है तो ईश्वर अपना रूप दिखाता है, परन्तु इस बार तो प्रकृति और ईश्वर ने अपना बहुत ही विकराल रूप दिखाया। कोरोना जैसी महामारी ने सारे विश्व को अपने प्रकोप में ले लिया। एकदम लॉकडाउन हो गए। जिन्दगी ठहर गई, सहम गई। किसी को इस बीमारी की समझ नहीं आ रही थी। बहुत से अपनों को इस बीमारी ने छीन लिया।
शुरू-शुरू में तो लोग बहुत सहमे, फिर धीरे-धीरे अब जिन्दगी पटरी पर लौट रही है। भले वैसी जिन्दगी का अभी हम सपना भी नहीं ले सकते परन्तु गुजारे लायक शुरू हो रही है। आफिस  में भी धीरे-धीरे लोगों की वापसी हो रही है। परन्तु समय के अनुसार सब कुछ बदल गया है। अधिकतर फंक्शन वर्चुअल हो रहे हैं। यहां तक कि किरया, रस्म पगड़ी सहित कई अन्य इवेंट्स लेकिन  शादियां  वर्चुअल नहीं हो सकतीं  किन्तु आगे से इसमें भी फर्क आ गया। हमारा परिवार लाला जी और अश्विनी जी तो हमेशा से शादियों को सादगीपूर्ण ढंग से करने के हक में थे इसीलिए मेरी शादी और बेटे की शादी भी आर्य समाज मंदिर में सादे ढंग से हुई थी। शायद लाला जी, रोमेश जी, अश्विनी जी की बहुत दूरगामी सोच थी इसलिए अब सारे चाहे कोरोना के डर से इसे अपना रहे हैं। यहां तक कि  सरकार का भी आदेश है कि 50 से अधिक लोग शादी में सम्मिलित न हों।
अब तो अधिकतर निमंत्रण पत्र भी वर्चुअल हैं। जो अपने आप आते हैं उसमें सेनेटाइजर और मास्क भी साथ आते हैं। दूल्हा घोड़ी पर मास्क लगाकर बैठता है, सभी बाराती भी मास्क पहने होते हैं और बार-बार सेनेटाइज से हाथ साफ कर रहे होते हैं। कई जगह तो दूल्हा-दुल्हन मास्क पहन कर फोटो लेते हैं।
कोरोना जैसी महामारी की गम्भीरता को हमारे पीएम मोदी जी ने एक दार्शनिक की तरह समझा और दो गज की दूरी-बहुत जरूरी, जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं जैसे नारे सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करने के लिए देशवासियों को ​दिए। यह मोदी जी ही थे जिन्होंने एक मुसीबत भरे समय को अवसर में बदला और स्वदेशी अभियान को शानदार ढंग से आगे बढ़ाते हुए लोकल पर वोकल का नया नारा बुलंद किया। आज एन 95 मास्क हो या अन्य मास्क या फिर सेनेटाइजर एवं अन्य पीपीई किट या अन्य उपकरण, भारत कोरोना काल में सादगी से ही आत्मनिर्भर हो रहा है। कोरोना में देशवासियों ने लाॅकडाउन देखा तो कठिन समय के बावजूद हमने अनेक चरणों में अनलाक भी देखा। इस कड़ी में पीएम मोदी एवं गृहमंत्री शाह जी ने कोरोना को लेकर जिस प्रकार से मोर्चा लगाया वह पूरी दुनिया के समक्ष एक उदाहरण बन कर उभरा है।
हमारा मानना है कि सामाजिक जीवन में सादगी का महत्व बहुत ज्यादा है। हमने अपने यहां कितने ही पर्व, गुरु पर्व, नवरात्रे महोत्सव, दशहरा, दीवाली, छठ पूजा सब सादगी में ही मनाए गए और भीड़ न हो, कोरोना से बचाव के लिए सब कुछ सादगी से मनाने के आह्वान किए जा रहे हैं तो यह समय की मांग भी है। शादी समारोहों को लेकर जितनी भव्यता अर्थात् महंगी शादियों की होड़ भारत में रहती है, वह एक सामाजिक बुराई के रूप में ही जानी जाती है। अमीर आदमी की भव्यता के चक्कर में आम आदमी अर्थात् मिडल क्लास सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। दिखावा संस्कृति ने आज देश में एक बड़े विवाह उद्योग को जन्म दिया है। इवेंट के नाम पर फार्म हाऊसों की बुकिंग, सौ-सौ खाने-पीने के व्यंजन, दूल्हा-दुल्हन के सार्वजनिक फोटो सैशन्स, हमारे समाज को मान-मर्यादा का ध्यान तो रखना ही चाहिए। इस कड़ी में सिख समाज व कई जैन परिवारों ने सादगी के मामले में अहम भूमिका​ ​निभाई है। उस दिन एक डिबेट में समाज में भव्यता को लेकर चर्चा में जिस प्रतिनिधि ने इसका गुणगान किया उसकी कम्पनी प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपए का व्यापार इवेंट के नाम पर करती है। एंकर ने सादगी का हवाला दिया तो उसने कहा कि लोग भारी खर्च की परवाह न करके महंगी लग्जरी इवेंट की डिमांड करते हैं। 
एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के फार्म हाऊसों के आसपास अतिक्रमण इवेंट व सोशल गैदरिंग की भव्यता को लेकर ही हो रहे हैं। कार्ड छपाई से लेकर दुल्हन की विदाई तक के बीच भव्यता का आलम यह है कि कहीं दूल्हा हेलीकाप्टर पर आ रहा है तो कहीं दर्जनों ऑडी व बीएमडब्ल्यू कारें विवाह स्थलों पर बारातियों को लग्जरी विजिट करवा रही हैं। दिखावे की कड़ी में शादी-ब्याह परिवारों में कपड़े लेने-देने का भी खूब प्रच​लन है। दूल्हे या दुल्हन की तरफ से दोनों पक्षों के 50-50 तथा सौ-सौ जोड़ी कपड़ों का रिवाज कब तक चलेगा? कहा तो दिखावे के लिए यही जाता है कि दुल्हन ही दहेज है, परन्तु इसे निभाते कितने लोग हैं? दहेज प्रथा भी इसी भव्यता का परिणाम है। कोरोना ने शादी-​ब्याह में लोगों की लिमिट तय कर दी है। आओ हम लोग भी सादगी के मार्ग पर चलें और भव्यता तथा दिखावे से दूर रहकर अपनी लिमिट तय कर लें।
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Kiran Chopra

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