Top NewsIndiaWorldOther StatesBusiness
Sports | CricketOther Games
Bollywood KesariHoroscopeHealth & LifestyleViral NewsTech & AutoGadgetsvastu-tipsExplainer
Advertisement

चालबाज चीन से संभल कर...

चीन के यह कह देने पर कि सीमा पर शान्ति और सौहार्द बनाये रखने के लिए भारत के साथ उसकी सैनिक व कूटनीतिक स्तर पर वार्ता जारी रहनी चाहिए और दोनों देशों को सहमति के आधार पर आगे बढ़ा जाना चाहिए

12:05 AM Jul 07, 2020 IST | Aditya Chopra

चीन के यह कह देने पर कि सीमा पर शान्ति और सौहार्द बनाये रखने के लिए भारत के साथ उसकी सैनिक व कूटनीतिक स्तर पर वार्ता जारी रहनी चाहिए और दोनों देशों को सहमति के आधार पर आगे बढ़ा जाना चाहिए

चीन के यह कह देने पर कि सीमा पर शान्ति और सौहार्द बनाये रखने के लिए भारत के साथ उसकी सैनिक व कूटनीतिक स्तर पर वार्ता जारी रहनी चाहिए और दोनों देशों को सहमति के आधार पर आगे बढ़ा जाना चाहिए, बांस पर चढ़ कर छलांग लगाने की कतई जरूरत नहीं है क्योंकि चीन की ‘कथनी और करनी’ में हमेशा अन्तर रहा है।
Advertisement
चीन को सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि वह पूरे लद्दाख में खिंची नियन्त्रण रेखा पर पुरानी स्थिति बहाल करने का अहद करता है। चीन ऐसा देश है जो पेंच में से पेंच निकाल कर भारत के साथ 1962 से धोखेबाजी करता आ रहा है। ये हमारे देश की वीर सेनाएं हैं जो उसका मनोबल लगातार तोड़ती आ रही हैं और अपने शौर्य से उसे बार-बार पीछे करती रही हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मन्त्री वांग-यी के बीच गत रविवार को हुई वीडियो कान्फ्रेंसिंग बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने डटने की स्थिति को समाप्त करेंगी और सैनिक तैयारियों में भी कमी लायेंगी।
भारत प्रारम्भ से ही शान्ति का पुजारी देश रहा है जबकि चीन का इतिहास सेनाओं की मार्फत अपना विस्तार करने का रहा है। इस फर्क को हमें समझना होगा। चीन ऐसा देश है जिसने दक्षिणी चीन सागर में फिलीपींस के मामले में अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल तक का आदेश नहीं माना था। असली सवाल सीमा पर शान्ति और सौहार्द का नहीं है बल्कि चीनी सेनाओं द्वारा नियन्त्रण रेखा को ही बदल देने का है। इसलिए चीन से यह आश्वासन लेना बहुत जरूरी है कि वह इसमें एक इंच का भी बदलाव नहीं करेगा।
सीमा मामलों को सुलझाने के लिए चीन से पिछले 15 वर्ष से बातचीत चल रही है जिसकी अगुवाई भारत की ओर से रक्षा सलाहकार ही करते हैं, मगर इस वार्ता तन्त्र की 22 बैठकें हो जाने के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला है। हमें इन सब तथ्यों का संज्ञान लेते हुए ही चीन की किसी भी बात पर गौर करना होगा, भारत का विदेश मन्त्रालय कह रहा है कि पिछले सभी समझौतों की रोशनी में भारत-चीन ताजा विवाद निपटायेंगे मगर सवाल तो यह है कि यदि चीन इन समझौतों का आदर करता तो गलवान घाटी से लेकर पेगोंग-सो झील व दौलतबेग ओल्डी के देपसंग पठारी इलाके में अतिक्रमण ही क्यों करता? हमें ध्यान रखना चाहिए कि चीन सैनिक मानसिकता वाला देश है जो सामरिक माध्यम से कूटनीतिक हल निकालना चाहता है, लद्दाख में वह यही कर रहा है।
हमारी प्रथम वरीयता सामरिक मोर्चे पर उसे ठंडा करने की होनी चाहिए जिससे वह कूटनीति की मेज पर किसी तरह की साजिश न कर सके। इस सम्बन्ध में देश के रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह को पूरे देश को आश्वासन देना चाहिए कि चीनी सेनाओं को वापस वहीं भेजा जायेगा जहां वे अप्रैल महीने में थी, श्री राजनाथ सिंह ऐसे राजनीतिज्ञ माने जाते हैं जो बहुत साफगोई की राजनीति में विश्वास रखते हैं क्योंकि विगत 2 जून को उन्होंने ही देशवासियों को यह बताया था कि चीनी सैनिक लद्दाख में नियन्त्रण रेखा के पार भारतीय इलाके में अच्छी-खासी संख्या में घुस आये हैं, देश की राष्ट्रीय सरहदों की सुरक्षा की प्राथमिक और सर्वोच्च जिम्मेदारी रक्षा मन्त्री की ही होती है, इस सन्दर्भ में यह घटना इतिहास में दर्ज हो चुकी है कि जब मनमोहन सरकार में रक्षा मन्त्री के पद पर पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी विद्यमान थे तो उन्हें आमिर खान की ‘रंग दे बसन्ती’ फिल्म विवाद खड़ा होने के बाद विशेष रूप से दिखाई गई थी, प्रणव दा फिल्म बीच में ही अधूरी छोड़ कर सभागार से बाहर आ गये थे और उन्होंने कहा था ‘मेरी जिम्मेदारी देश की सीमाओं की सुरक्षा की गारंटी करना है फिल्मों को देश भक्ति का प्रमाणपत्र देना नहीं।’
अतः श्री राजनाथ सिंह को चुप्पी तोड़ कर प्रत्येक देशवासी को भरोसा दिलाना चाहिए कि जब तक वह देश के रक्षा मन्त्री हैं तब तक भारत की एक इंच जमीन भी चीनियों के कब्जे में नहीं जाने दी जायेगी, उनका कर्त्तव्य भी यही कहता है और समय की मांग भी यही है। दोनों देशों के बीच वार्ताओं के दौर बेशक चलें मगर भारतीय सेनाओं का मनोबल हमेशा ऊंचा रहना चाहिए क्योंकि विगत 15 जून को गलवान घाटी में भारत माता पर प्राण न्यौछावर करने वाले कर्नल बी. सन्तोष बाबू समेत बीस भारतीय सैनिकों का खून पुकार-पुकार कह रहा है कि धोखेबाज चीन को सबक सिखाया ही जाना चाहिए। चीन की चुपड़ी-चिकनी बातों में आकर भारत कैसे भूल सकता है कि 15 जून को ही उसने हमारे कुछ सैनिकों को भी अगवा कर लिया था जिन्हें बाद में छोड़ा गया।
कांग्रेस और भाजपा की राजनीति बाद में होती रहेगी, पहले चीन से यह आश्वासन लेना होगा कि वह बाइज्जत अपनी हदों में वापस जायेगा जिससे सीमा पर शान्ति और सौहार्द का वातावरण बन सके। अतिक्रमण और वार्ता एक साथ तभी चल सकते हैं जब नियन्त्रण रेखा पर पुरानी स्थिति बहाल करने पर चीन पूरी तरह राजी हो जाये, इतना ही नहीं चीन से अपना अक्साई चिन वापस लेने का मुद्दा भी वार्ता की मेज पर होना चाहिए तभी कूटनीति से चीन को उसकी हैसियत बताई जा सकती है परन्तु वह तो लद्दाख की पूरी गलवान घाटी को ही अपना बता रहा है। यह चीन की फितरत है कि उसे गुड़ खाने को दो तो वह पूरी ‘चीनी मिल’ ही मांगने लगता है। चीन के बारे में ऐसा ही है :
तू दोस्त  किसी का भी सितमगर न हुआ था 
औरों पर है वो जुल्म जो मुझ पर न हुआ था ।
Advertisement
Next Article