सिन्धु जल समझौते का सच
1947 में भारत से काट कर जब पाकिस्तान का निर्माण किया गया तो दोनों देशों के बीच…
1947 में भारत से काट कर जब पाकिस्तान का निर्माण किया गया तो दोनों देशों के बीच विभिन्न भौतिक व प्राकृतिक स्रोतों का बंटवारा भी किया गया। पाकिस्तान का निर्माण मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने अंग्रेजों के साथ साजिश करके करा तो लिया मगर एक देश को चलाने के लिए उसे विभिन्न साधनों की जरूरत भी थी। चूंकि पाकिस्तान का बंटवारा असामान्य था अतः स्रोतों का बंटवारा किया जाना भी आसान काम नहीं था। इसलिए अंग्रेजों के भारत छोड़ कर चले जाने के बाद भी यह कार्य बरसों तक आगे चलता रहा। पश्चिमी पाकिस्तान पंजाब का बंटवारा करके बना था और उसके साथ सिन्ध व उत्तर पश्चिमी सीमान्त (खैबर पख्तूनवा) प्रदेश थे अतः दोनों देशों के बीच नदियों के जल का बंटवारा भी हुआ। संयुक्त पंजाब की पांच प्रमुख नदियां रावी, सतलुज, ब्यास, चिनाब और झेलम भारत से होते हुए नवनिर्मित पाकिस्तान की तरफ जाती थीं अतः इन नदियों के जल का बंटवारा भी हुआ। इसके साथ ही छठी नदी सिन्धु के जल का बंटवारा भी किया गया। भारत-पाकिस्तान के बीच रेलवे से लेकर सैनिक व वित्तीय स्रोतों के बंटवारे को लेकर ज्यादा दिक्कत नहीं आयी मगर नदियों के जल बंटवारे के बारे में वार्तालाप बहुत लम्बा खिंचा और विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह जल समझौता 1960 में जाकर हुआ जिसे ‘सिन्धु नदी जल समझौता’ कहा जाता है।
इस समझौते के तहत पूर्व की तीन नदियों सतलुज, ब्यास और रावी के जल पर भारत को पूर्ण अधिकार दिया गया जबकि पश्चिम की सिन्धु, झेलम व चिनाब के 80 प्रतिशत जल के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया। मगर यह समझौता दोनों देशों के बीच दोस्ताना व सद-इच्छा के माहौल में किया गया था। एक प्रकार से समझौते की यह शर्त थी कि दोनों देशों के बीच सद्भावनापूर्ण माहौल रहना चाहिए। 1960 के बाद भारत के साथ पाकिस्तान ने तीन-तीन युद्ध ( 1965, 1971 व 1999) लड़े मगर भारत ने कभी भी इस सन्धि के अस्तित्व को नहीं नकारा। यहां तक कि 1990 के बाद से लेकर अब तक पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवाद का छद्म युद्ध छेड़े हुए है, इसके बावजूद हिन्दोस्तान सन्धि की कद्र करता आ रहा है परन्तु जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की हद ही हो गई और विगत 22 अप्रैल को इसके आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 पर्यटकों (एक कश्मीरी नागरिक समेत) की हत्या बहुत ही दुर्दान्त तरीके से की तो भारत ने इस घटना के दो दिन बाद 24 अप्रैल को इस जल सन्धि को मुल्तवी करने की घोषणा की और एक नदी चिनाब का जल रोक भी दिया। भारत पश्चिम की नदियों का अपने हिस्से का 20 प्रतिशत जल भी प्रयोग नहीं कर पा रहा था। यह उसकी सहृदयता ही थी। मगर जब पानी सिर से ऊपर ही निकल गया तो उसे यह कठोर कदम उठाना पड़ा।
विगत 24 अप्रैल को भारत की सरकार के मोदी मन्त्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित करके सिन्धु जल समझौते को ठंडे बस्ते में डालने की घोषणा की और इसकी सूचना सक्षम कूटनीतिक रास्ते से पाकिस्तान को दे दी जिससे घबरा कर पाकिस्तान ने भारत के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करने का इरादा जाहिर किया है। वैसे एेसा नहीं है कि भारत ने जल समझौते की समीक्षा किये जाने का इरादा पहले कभी जाहिर ही नहीं किया था। भारत ने जनवरी 2023 व सितम्बर 2024 में भी पाकिस्तान को खत लिखकर आगाह किया था कि वह बदले हालात में सिन्धु जल सन्धि की समीक्षा किये जाने का इच्छुक है। मगर पाकिस्तान की तरफ से कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ था। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत कठोर कदम उठाने से पहले पाकिस्तान को सचेत कर रहा था मगर उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जब भारत ने यह दिखा दिया कि वह केवल ‘विनय’ करना ही नहीं जानता है बल्कि ‘कोप’ करना भी उसे आता है तो पाकिस्तान नींद से जागा है। इस सन्धि में जब यह साफ लिखा हुआ है कि दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण व सद-इच्छा का भाव रहना चाहिए तो पाकिस्तान को स्वयं विचार करना चाहिए कि क्या उसका रवैया इसके अनुरूप है? जाहिर है कि पाकिस्तान केवल एक नदी के जल में ठहराव आने से ही इतना घबरा गया है कि वह अब अपने बचाव का रास्ता ढूंढ रहा है जबकि सन्धि की शर्त है कि दोनों देशों के बीच सद-इच्छा का बना रहना बहुत जरूरी है।
भारत ने पूर्व की तीनों नदियों के 100 प्रतिशत जल का उपयोग भी केवल मानवता के आधार पर नहीं किया है और इन पर बांध व बिजलीघरों के निर्माण कार्य को पटाक्षेप में रखा है। मगर 1960 के बाद से अब तक जलवायु से लेकर अन्य पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में काफी बदलाव आ चुका है अतः भारत बदलते समय की चुनौतियों का सामना करना चाहता है। इसी वजह से वह सन्धि की समीक्षा किये जाने की मांग भी कर रहा है। मगर पाकिस्तान ने तो उल्टे भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों का ‘महाज’ छेड़ा हुआ है। अतः भारत ने साफ कह दिया है कि जब तक पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवाद समाप्त नहीं करता है तब तक जल सन्धि ठंडे बस्ते में ही रहेगी। इसके साथ ही भारत का यह दृढ़ मत भी है कि दोनों देशों के बीच हुई इस सन्धि में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं हो सकती क्योंकि कोई भी तीसरा पक्ष किस प्रकार पाकिस्तान जैसे आतंकपरस्त देश की तरफ से गारंटी दे सकता है।