संघ ने अपना लोहा मनवा लिया
पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र और इस बार दिल्ली में भाजपा का कमल खिलाने…
‘जाने यह तेरा उल्फ़ते दस्तूर भी क्यों इतना नया नया सा है
तू मुझमें है शामिल, पर मेरी आंखों के किस्सों में बयां बयां सा है’
पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र और इस बार दिल्ली में भाजपा का कमल खिलाने का एक बड़ा श्रेय संघ को जाता है। इस श्रेय को अंगीकार करने में संघ भी कभी पीछे नहीं हटा है, संघ पोषित विचारधारा के चिंतक और उनका समर्थक मीडिया जब खुल्लम-खुल्ला इन प्रदेशों में जीत का सेहरा संघ के माथे बांधने लगा तो भाजपा की ओर से कोई प्रतिकार या प्रतिवाद के स्वर सुनने को नहीं मिले। क्योंकि इसी वर्ष बिहार में चुनाव होने हैं और इसके बाद के वर्ष में कम से कम 13 राज्यों में विधानसभा चुनावों की अलख जगनी है। सो भाजपा और संघ एक-दूसरे के पूरक बन कर परम्परागत रूप से काम कर रहे हैं। इसे महज संयोग मत मानिए इतने वर्षों के अंतराल के बाद पीएम मोदी की 30 मार्च को गुढ़ी पड़वा के दिन संघ मुख्यालय नागपुर जाने की खबर आई है।
कहा जाता है कि वहां उनकी संघ प्रमुख मोहन भागवत से ‘वन-टू-वन’ एक लंबी बातचीत हो सकती है। चर्चा है कि 30 मार्च को गुढ़ी पड़वा के दिन भाजपा के नए अध्यक्ष के नाम पर भी संघ की सहमति मिल सकती है या नहीं।
कानूगोलू पहुंचे बिहार
आने वाले वक्त में बिहार एक नए सियासी रण का गवाह बन सकता है। एक ओर तो राहुल गांधी ने अपने खास वफादार कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बना कर सबको चौंका दिया, नहीं तो सबसे पहले बतौर बिहार प्रभारी छत्तीसगढ़ के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम पक्का माना जा रहा था। एक तो बघेल कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं, दूसरा उन्हें बिहार की राजनीति की एक गहरी समझ भी है। पर कहते हैं ऐन वक्त बघेल ने बिहार जाने में अपनी असमर्थता जता दी तो राहुल ने आनन-फानन में अल्लावरू के नाम पर अपना वीटो लगा दिया। अभी ठीक से अल्लावरू बिहार में अपनी दुकान भी नहीं जमा पाए थे कि राहुल ने पिछले हफ्ते अपने चुनावी रणनीतिकार सुनील कानूगोलू को उनके दल-बल के साथ वहां भेज दिया है।
सूत्रों की मानें तो कानूगोलू के साथ उनके 40 लोगों की टीम बिहार पहुंची है। यह भी कहा जा रहा है कि कानूगोलू बिहार की सभी 243 सीटों की एक विस्तृत रिपोर्ट बना कर राहुल को सौंपेंगे। कानूगोलू जमीनी सर्वे कराने के लिए कुछ लोकल एजेंसियों की सेवाएं भी ले रहे हैं, सूत्र यह भी बताते हैं कि कानूगोलू से विधानसभा दर हर सीट पर मजबूती से लड़ पाने वाले उम्मीदवारों की एक सूची देने को कहा गया है। यानी हर विधानसभा से कम से कम चार दावेदारों के नाम वरीयता क्रम में दिल्ली भेजे जाएंगे। सनद रहे कि यही फार्मूला राहुल ने इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी आजमाया था, जब कानूगोलू ने राजस्थान में सीट दर सीट उम्मीदवारों की सूची हाईकमान को सौंपी थी, पर तब राजस्थान के तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने कानूगोलू की लिस्ट को धत्ता बताते हुए अपनी पसंद के उम्मीदवार मैदान में उतार दिए थे। जिसमें से थोक भाव में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। अब राहुल राजस्थान की वह पुरानी गलती बिहार में नहीं दुहराना चाहते।
लालू के खिलाफ क्यों मोर्चा खोल रहे हैं राहुल
कांग्रेस दिल्ली की तर्ज पर बिहार में भी अकेले चुनाव में उतरने की तैयारियों में जुटी है। माना जाता है कि राहुल गांधी लालू व नीतीश दोनों के ही व्यवहार से खिन्न हैं। यहां तक कि वे तेजस्वी से भी नाराज़ बताए जाते हैं। राहुल जानते हैं कि ‘अगर बिहार में हर सीट पर कांग्रेस मजबूती से लड़ती है तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा लालू-तेजस्वी की पार्टी राजद को उठाना पड़ सकता है।’ राहुल यह भी जानते हैं कि कांग्रेस जितनी मजबूती से लड़ेगी भाजपा को चुनावों में इसका फायदा मिलेगा। पर वे पीछे हटने को तैयार नहीं दिखते, उन्हें मालूम है जब इंडिया गठबंधन के सिरमौर के तौर पर राहुल का नाम सामने आया था तो इसका सबसे ज्यादा विरोध लालू, नीतीश (तब वे इंडिया गठबंधन के हिस्से थे), ममता व केजरीवाल ने किया था। केजरीवाल को राहुल अभी-अभी निपटा चुके हैं अब बारी बाकी बचे नेताओं की है। बिहार के बाद ‘एकला चलो’ का अपना अभियान वे पश्चिम बंगाल में भी लेकर आएंगे।
बिहार को कांग्रेस एक नया प्रदेश अध्यक्ष देना चाहती है, इस कड़ी में तारिक अनवर का नाम प्रमुखता से उभर कर सामने आया है, अगर तारिक अध्यक्ष बनते हैं तो उनकी सरपरस्ती में तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए जा सकते हैं जो दलित, ब्राह्मण, ओबीसी या राजपूत जाति का प्रतिनिधित्व करने वाले हो सकते हैं। राहुल व तारिक दोनों ही इस राय से इत्तफाक रखते हैं कि ‘कांग्रेस के लिए 25 का नहीं बल्कि आने वाले 2030 का विधानसभा चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण साबित होगा।’ शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने तेजस्वी के समक्ष साफ कर दिया है कि ‘वह गठबंधन के तहत कम से कम 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है,’ राहुल जानते हैं कि तेजस्वी इस नंबर के लिए शायद ही कभी राजी होंगे, सो कांग्रेस को महागठबंधन से बाहर आने का एक माकूल बहाना मिल जाएगा।
कृष्णा की मृगतृष्णा
उस दौर में जब बिहार कांग्रेस में अशोक चौधरी की तूती बोलती थी और यूं अचानक वे पाला बदल कर नीतीश के खेमे में चले गए तो आनन-फानन में कांग्रेस को अपनी अध्यक्षीय बागडोर कौकब कादरी को सौंपनी पड़ी। पार्टी ने कादरी को अपना कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। कादरी ने देखा कि पार्टी में फिजूलखर्ची बहुत है, दिल्ली से प्रदेश प्रभारी आते हैं तो वे भी बड़े होटलों में रुकते हैं और पार्टी को ही उनके रहने, खाने-पीने का सारा बिल भी देना होता है तो उन्होंने सोच-विचार कर पटना स्थित पार्टी के सदाकत आश्रम वाले ऑफिस परिसर में ही एक फ्लैट बनवा दिया, उसमें एसी-बेड, सोफा आदि की व्यवस्था भी करवा दी ताकि दिल्ली से जो प्रभारी आएं वे आराम से यहां ठहर सकें, अपने फ्लैट में ही पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं से मिल भी सकें।
जब तक कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल थे तो वे इसी फ्लैट में रुकना पसंद करते थे। पर जब से कृष्णा अल्लावरू बिहार के प्रभारी बने हैं उन्होंने पटना के आलीशान पंचतारा होटल मौर्या में ही अपना डेरा-डंडा जमा रखा है, पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं से वे वहीं मिलना पसंद करते हैं। सूत्र बताते हैं कि उनके होटल का सारा खर्च झारखंड में बिजनेस करने वाले और सीतामढ़ी के एक पूर्व विधायक उठा रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि अल्लावरू अगले प्रदेश अध्यक्ष के लिए उनका नाम आगे बढ़ाएंगे।
क्या फिर होगी बादल-कमल की दोस्ती
पिछले काफी लंबे अरसे से बादल परिवार भाजपा से अलग होने के बाद एक सियासी बियाबां में भटक रहा है। न तो सियासी हलकों में सुखबीर बादल की पूछ हो रही थी और न ही उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल की। पर पिछले दिनों जब बादल दंपति ने अपनी बड़ी बेटी हरकिरत कौर की शादी बड़े धूमधाम से गुड़गांव के एक पंचतारा होटल ट्राइडेंट में आबूधाबी के एक बिजनेस मैन तेजवीर सिंह के साथ की तो बादल परिवार का रूतबा देखते ही बनता था। वैसे तो यह होटल बादल परिवार का ही बताया जाता है।
इस मौके पर वर-वधू को आशीर्वाद देने के लिए बड़े राजनीतिज्ञों का तांता लग गया, इस समारोह में शामिल होने वाले राजनेताओं की एक लंबी सूची है, जिसमें नितिन गडकरी, ओम बिड़ला, जगदीप धनखड़, पीयूष गोयल, उमर अब्दुल्ला से लेकर पंजाब के नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा की भी उपस्थिति दर्ज हुई। यह विवाह समारोह भी कोई तीन दिनों तक चला। सो, अब बादल परिवार को आस बंधी है कि ’आने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भाजपा उन्हें गठबंधन का प्रस्ताव देने वाली है।’