चर्च के बढ़ते प्रभाव से चिंता में है संघ
झारखंड चुनाव से पहले संघ ने अपनी एक गुप्त रिपोर्ट भाजपा नेतृत्व को सौंपी थी
बिहार में अपने सहयोगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बदले-बदले अवतार से बेखबर आने वाले बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर संघ की चिंताएं जमीन पर दिखने लगी हैं। कहते हैं झारखंड चुनाव से पहले संघ ने अपनी एक गुप्त रिपोर्ट भाजपा नेतृत्व को सौंपी थी, उस रिपोर्ट में कहा गया था कि झारखंड के राजमहल, लोहरदग्गा, पलामू संसदीय क्षेत्र समेत कोई 24 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा का जीत पाना बेहद मुश्किल है क्योंकि इन विधानसभा क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने अपनी गहरी पैठ बना रखी है। इसी रिपोर्ट में दावा हुआ था कि पहले जहां क्रिश्चियन मिशनरी के निशाने पर दलित व आदिवासी समुदाय के लोग होते थे अब ताजा घटनाक्रमों में इनका फोकस एरिया पिछड़ी जातियों (खास कर धानुक, मल्लाह, कोइरी, कुर्मी, यादव आदि) पर शिफ्ट हो गया है, जो परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देने से गुरेज नहीं करते थे।
क्या चर्च इस ‘झारखंड मॉडल’ को बिहार चुनाव में दुहराने का भी इरादा रखता है जहां मल्लाह, कुर्मी, कोइरी या यादव वोटर थोक भाव में हैं। सूत्रों की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में पूर्वी चंपारण समेत दक्षिण बिहार के गया, औरंगाबाद, बक्सर जैसे इलाकों में नए चर्च के उत्थान को देखा गया है। संघ का मत है जो लोग कहीं न कहीं चर्च के प्रभाव में होते हैं ज्यादातर उनके वोट भाजपा विरोधी पार्टियों के मिल जाते हैं, जैसा कि हालिया दिनों में झारखंड में हुआ। वैसे भी कुछ वर्ष पहले तक ईसाई मिशनरियां दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा सक्रिय थीं पर अब उनका फोकस उत्तर भारत की ओर हुआ है। कहते हैं पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तेजी से चर्च का अभ्युदय हुआ है जबकि मध्य प्रदेश को संघ की प्रयोगशाला माना जाता है, बावजूद इसके जबलपुर, इंदौर समेत कई इलाकों में नवर्निमित चर्च की झलक देखने को मिल जाती है।
पंजाब के तो कई इलाकों में एक बड़ी क्रिश्चियन आबादी बसर करती है और सबसे खास बात तो यह है कि कहने को तो इन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है पर वे अब भी पगड़ी धारण करते हैं और नियम से चर्च जाते हैं। इसे आप मोटे तौर पर कह सकते हैं कि जिन इलाकों में गरीबी ज्यादा है चर्च वहां उतना ज्यादा सक्रिय है, क्योंकि वह अपने प्रयासों से लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं देने की कोशिश करता है। सूत्रों की मानें तो अमेरिकन एजेंसी द्वारा वित प्रदत्त एक फाऊंडेशन है जो हायर एजुकेशन के लिए छात्रों को फुल स्कॉलरशिप देता है, इसके 70-80 फीसदी लाभार्थी छात्र अब तक केरल, तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों से आते थे, अब यह स्कॉलरशिप उत्तर भारतीय राज्यों के छात्र-छात्राओं को कहीं ज्यादा मिल रही है। संघ की इन चिंताओं से भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी पूरी तरह बाखबर हैं पर वह चर्च को छेड़ कर अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों से कोई नया पंगा नहीं लेना चाहता।
अपना काम बखूबी कर रहे आरिफ भाजपा शीर्ष ने बिहार चुनाव की पूर्व बेला में एक खास मकसद से केरल के गवर्नर रहे आरिफ मुहम्मद खान को पटना भेजा है। आरिफ सियासत की बारीकियों को जहीनियत से समझते हैं सो, उन्होंने भगवा शीर्ष की मंशाओं को भांपते आनन-फानन में वहां अपना अभियान शुरू कर दिया है। इन चर्चाओं के बीच कि नीतीश कुमार मकर संक्रांति पर एक बार फिर से पलटने वाले हैं, राबड़ी देवी को जन्मदिन की बधाई देने के बहाने आरिफ सीधे पटना लालू के घर जा पहुंचे और बातों ही बातों में उन्होंने लालू को इशारा दे दिया कि अगर एक बार फिर से उनकी पार्टी राजद का नीतीश की जदयू के साथ ‘बेमेल गठबंधन’ होता है तो राज्य में फौरन राष्ट्रपति शासन लग जाएगा और बेहद सख्ती बरती जाएगी। कमोबेश यही बात उन्हें नीतीश से भी कहनी थी, सो, वे मौका देख कर नीतीश की मां स्व. परमेश्वरी देवी की 14वीं पुण्यतिथि पर सीधे कल्याण बिगहा पहुंच गए और हौले-हौले नीतीश को यह समझा पाने में कामयाब रहे कि ‘अगर उन्होंने मौजूदा गठबंधन तोड़ा तो फालतू के झमेलों में फंस जाएंगे।
सूत्रों की मानें तो इशारों-इशारों में नीतीश को बता दिया गया है कि उनका एक गलत कदम उन्हें ‘सृजन घोटाले’ से लेकर गिरे हुए पुलों की तहकीकात के झमेलों में फंसा सकता है, सो रिश्तों का यह पुल गिरने मत दीजिए, सौहार्द का कमल खिलाए रखिए।’भाजपा का नीतीश को कड़ा संदेश बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि जब पिछले दिनों नीतीश कुमार दिल्ली आए थे और दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार से मिल कर अपनी संवेदनाएं प्रकट की थी तो तब दिल्ली उनके आने का मकसद कुछ और था। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने भाजपा के कई बड़े नेताओं और भाजपाध्यक्ष नड्डा से मिलने का समय मांगा था। नड्डा ने उन्हें मिलने का समय जरूर दे दिया था, पर इससे पहले की नीतीश नड्डा से मिलने पहुंचते, कहते हैं नड्डा को मैसेज आ गया कि ‘नहीं मिलना है’ सो, आखिरी वक्त पर नड्डा ने भी नीतीश संग अपनी मीटिंग रद्द कर दी। नीतीश उल्टे पांव पटना लौट आए और लालू से अपने संवाद सूत्र खुले रखे।
जय-जय जयशंकर सोशल मीडिया में पिछले हफ्ते विदेश मंत्री एस. जयशंकर छाए रहे कि कैसे इतने दिनों तक अमेरिका में टिके रहने के बावजूद उन्हें ट्रंप से मिलने का समय नहीं मिल पाया। सोशल मीडिया में इस बात के भी बहुत चर्चे हैं कि आखिरकार जयशंकर ट्रंप से मिलना क्यों चाहते थे? सो, यह बात यहां दुहराने की जरूरत नहीं। पर जिस ओर किसी का ध्यान नहीं था जयशंकर के अमेरिका प्रवास के दौरान यही कमाल हो गया। शीर्षस्थ भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी के खिलाफ अमेरिका में जो 3 आपराधिक मुकदमे थे उन्हें ‘क्लब’ कर दिया गया है, और इन्हें ‘लीगल काउंसिल’ की जगह ‘फेडरल कोर्ट’ में भेज दिया गया है।
ध्यान रहे कि लीगल काउंसिल अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यक्षेत्र से बाहर है। वहीं फेडरल कोर्ट के फैसलों को अमेरिकी राष्ट्रपति प्रभावित कर सकता है। उसके पास पॉवर है कि ‘वह फेडरल कोर्ट के फैसलों को पलट सकता है, आरोपी को माफी भी दे सकता है।’ सनद रहे कि ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल (2017-2020) में 144 केसेस को पार्डन यानी माफी दे दी थी। इनमें से कई केस में तो आरोपी पर जुर्म भी साबित हो चुका था। वैसे भी फेडरल कोर्ट जब जांच करेगा तो भारत में रिश्वत देने के सबूत कैसे जुटा पाएगा? क्या इस पूरे मामले को आप जयशंकर की जीत के तौर पर नहीं देखते? वैसे भी मोदी व ट्रंप की दोस्ती की दुनिया मिसालें देती है।
स्टालिन की पसंद की त्रिमूर्तियां ताजा घटनाक्रमों में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने अडानी ग्रुप को आबंटित स्मार्ट मीटर का टेंडर यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि ‘यह तो केंद्र का फैसला था, वे तो अडानी से कभी मिले ही नहीं।’ अब तमिलनाडु में तीन कंपनियों पर स्टालिन की नज़रें इनायत हुई हैं-वह हैं-‘टाटा पॉवर’, ‘रिलायंस पॉवर’ और ‘हीरानंदानी ग्रुप’। ब्लैकस्टोन के साथ मिल कर हीरानंदानी ग्रुप चेन्नई में 1500 करोड़ रुपए के ‘लॉजिस्टिक पार्क’ का प्रोजेक्ट कर रही है, जो ‘ग्रीन बेस’ के साथ जुड़ा है, जिसे एलॉन मस्क की कंपनी सपोर्ट करती है। रिलायंस भी ‘रिन्यूवेलेबल एनर्जी’ में एंट्री ले रहा है, क्योंकि भविष्य में उसकी ‘क्रुड ऑयल रिफाइनरी’ से होने वाली आमदनी घट सकती है, जिससे मौजूदा वक्त में रिलायंस समूह को 45 से 50 फीसदी का इंकम है। रही बात रिलायंस रिटेल बिजनेस की तो रिलायंस इस बिजनेस से बाहर निकलने को आतुर है, क्योंकि रिटेल में फायदा महज़ 12-13 फीसदी है, पर हां रिलायंस अपने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘आजिओ’ को आगे बढ़ाने को इच्छुक है। …और अंत में
योगी सरकार के शिक्षा मंत्री व केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विद्रोह का बिगूल फूंक रखा है। अनुप्रिया की बहन व सपा विधायक पल्लवी पटेल ने आशीष पर भर्ती घोटाले का आरोप लगाते हुए योगी से इस पर एसआईटी जांच की मांग की है। आशीष ने पैंतरे बदलते हुए एसटीएफ से ही अपनी जान को खतरा बता दिया है, साथ ही राज्य के सूचना निदेशक शिशिर सिंह जो योगी के आंखों के तारे हैं, उन्हें भी निशाने पर ले लिया है। वे आरोप लगा रहे हैं कि ‘बार-बार मीडिया ट्रायल, झूठ व फरेब के जरिए मेरे चरित्र हनन के पीछे शिशिर सिंह का हाथ है।’ एसटीएफ के मौजूदा चीफ अमिताभ यश एनकाउंटर के लिए जाने जाते हैं, वे न सिर्फ योगी के दुलारे हैं, बल्कि शिशिर के भी उतने ही गहरे मित्र हैं। योगी के लोगों को लगता है कि आशीष को हवा देने के पीछे ‘घर’ का हाथ हो सकता है।