मोदी सरकार के 11 वर्षों में गांवों का हुआ नवजागरण
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की उक्त चौपाई के भाव आज…
“भूपति भगत बिप्र निज प्रजा, निज गुन-दोष बिचारि।
करइ सासनु धर्ममय, प्रजा पालक नर-नारि॥”
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की उक्त चौपाई के भाव आज के भारत में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में न केवल पुनर्जीवित हुए हैं, बल्कि धरातल पर साकार भी हो रहे हैं। ‘रामराज्य’ भारतीय जनमानस के लिए कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐसा सामाजिक आदर्श है जहां शासन सेवा का माध्यम है, नीति-निर्णय में पारदर्शिता है, न्याय सर्वसुलभ है और प्रत्येक नागरिक का जीवन गरिमा के साथ व्यतीत होता है। बीते 11 वर्षों में मोदी सरकार ने इस आदर्श को विशेष रूप से ग्रामीण भारत के संदर्भ में वास्तविकता में बदलने के लिए कई दूरदर्शी योजनाएं लागू की हैं।
हमने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत देश के कोने-कोने को जोड़ने का जो संकल्प लिया गया था, वह अब एक अभूतपूर्व उपलब्धि बन चुका है। अब तक 3.97 लाख किलोमीटर से अधिक सड़कों और 9,000 से अधिक पुलों का निर्माण हो चुका है। परिणामस्वरूप, जहां पहले ग्रामीण महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचने में घंटों लगते थे, अब वही दूरी मिनटों में पूरी हो रही है। बच्चे समय से स्कूल पहुंच रहे हैं, किसान अपनी उपज सीधे मंडी ले जा पा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने पीएमजीएसवाई को 2019 में शुरू किया और इसके तहत अब तक 7.7 लाख से अधिक सुविधाओं को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण हुआ है, जिनमें खेत, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्कूल, और हाट-बाजार जैसी ग्रामीण जीवन रेखाएं शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में संपर्क रहित आदिवासी बस्तियों को सड़क संपर्क के साथ-साथ बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने हेतु पीएम जनमन योजना की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत 8000 कि.मी. की सड़क संपर्क के माध्यम से विकास की गंगा पहुंचाई जा रही है।
रामराज्य की कल्पना में शासन पर जनता का अडिग विश्वास था और शासन में पारदर्शिता विश्वास की नींव होती है। आज उसी विश्वास को आधुनिक तकनीक से सुदृढ़ और पारदर्शी बनाया गया है। जियो-टैगिंग, ई-मार्ग, मेरी सड़क ऐप और पीएम गतिशक्ति पोर्टल जैसे डिजिटल उपकरणों ने निर्माण की निगरानी और गुणवत्ता की पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित की है। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की एक सड़क जो वर्षों से गड्ढों में तब्दील हो चुकी थी, पीएमजीएसवाई के अंतर्गत मात्र 1 वर्ष के अंदर तैयार की गई। स्थानीय ग्रामीणों ने “मेरी सड़क” पोर्टल पर इसे “वेरी गुड” की रेटिंग दी। आज उस गांव के किसान अपनी उपज को ट्रक द्वारा सीधे मंडी पहुंचा पा रहे हैं। यह शासन और तकनीक के संतुलन से हुए परिवर्तन की जीती-जागती मिसाल है।
गत 11 वर्षों में महिला कल्याण का काम बहुत तेजी से हुआ है। हमारी माताओं-बहनों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है, जिनसे वे न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनैतिक रूप से भी सशक्त हुई हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के द्वारा चलाए जा रहे दीनदयाल अंत्योदय योजना के माध्यम से महिलाओं को न केवल रोजगार मिला, बल्कि उन्हें सामाजिक नेतृत्व की भूमिका भी प्राप्त हुई है। इस योजना के माध्यम से अब तक 10 करोड़ से ज्यादा महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं और उनमें से लगभग 1.5 करोड़ लखपति दीदी बन गई हैं।
प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण ने ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे परिवारों को गरिमामय आवास उपलब्ध कराए हैं। 2016 से अब तक 3 करोड़ से अधिक परिवारों को पक्के घर मिल चुके हैं। इन घरों में केवल छत नहीं है, बल्कि बिजली, शौचालय, नल जल, एलपीजी कनेक्शन और किचन जैसी आवश्यक सुविधाएं भी एकीकृत रूप से प्रदान की गई हैं। यह योजनाएं केवल लाभ नहीं, बल्कि ‘आत्मसम्मान के साथ जीवन’ की अवधारणा को मूर्त रूप देती हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से सरकार ने न केवल गरीबों को काम दिया, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती भी दी। अब तक 3,000 करोड़ मानव दिवस, ₹8 लाख करोड़ से अधिक भुगतान, 56% महिला भागीदारी, और 99% ऑनलाइन भुगतान के आंकड़े इस योजना की पारदर्शिता और समावेशिता को रेखांकित करते हैं। गुजरात के बनासकांठा जिले में मनरेगा के तहत बनाए गए चेकडैम ने जल संरक्षण की क्षमता इतनी बढ़ा दी कि रमेशभाई जैसे किसान अब साल में तीन फसलें लेने में सक्षम हैं। यह केवल योजनात्मक विकास नहीं, बल्कि जनश्रम से राष्ट्र निर्माण की मिसाल है।
शिक्षा और कौशल विकास के बिना ग्रामीण भारत का उत्थान अधूरा है। डीडीयू-जीकेवाई और आरसेटी जैसे कार्यक्रमों ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। अब तक 17 लाख युवाओं को प्रशिक्षण और 11 लाख को रोजगार प्रदान किया गया है। इसके अलावा, 35 लाख से अधिक युवाओं ने स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार प्रारंभ कर आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। यह बदलता हुआ परिदृश्य बताता है कि गांवों से अब पलायन कम हो रहा है और वहीं पर नए अवसरों का निर्माण हो रहा है।
रामराज्य की परिकल्पना में ‘दुखियों का सहारा’, ‘न्यायप्रिय शासन’ और ‘जनकल्याण’ की भावना प्रमुख थी। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत की ग्राम्य संरचना उसी दिशा में अग्रसर है।
“नहिं दरिद्र को दुःख दुःख नाहीं, सब सन्मुख धरम कर राहिं”
रामचरितमानस की यह चौपाई अब कल्पना नहीं रही। यह भारत के करोड़ों गांवों की सच्चाई बन रही है। जहां हर गरीब को छत मिली, हर किसान को सम्मान मिला, हर महिला को आत्मनिर्भरता का अवसर मिला और हर युवा को हुनर और रोजगार का मार्ग मिला। यह विकास केवल आंकड़ों की प्रस्तुति नहीं है, यह जनभावना की अभिव्यक्ति है। यह गांवों की मिट्टी से उगकर विकसित भारत की ऊंचाइयों तक पहुंचने की कहानी है। आज जब भारत “विकसित भारत 2047” के संकल्प की ओर बढ़ रहा है तब यह ज़रूरी है कि गांवों का अभ्युदय ही राष्ट्र का भविष्य बने। मोदी सरकार की योजनाएं यही हैं।
– कमलेश पासवान
(केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री)