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फैलता जा रहा है युद्ध

04:20 AM Jan 27, 2024 IST | Aditya Chopra

पिछले वर्ष 7 अक्तूबर को इजराइल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद अब तक 25 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 62 हजार के करीब घायल हैं। 3 हजार से अधिक महिलाओं ने अपने पति को खो दिया है। 10 हजार से अधिक बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया है। युद्ध का शिकार हजारों बच्चे बने हैं। इजराइली हमलों और बर्बरता का शिकार बेकसूर लोग भी बन रहे हैं। युद्ध को रोकने के लिए सारी बड़ी ताकतें और मुस्लिम देश विफल हो चुके हैं और जंग रुकने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। जो कुछ हमास ने किया उसके जवाब में इजराइल के हमले स्वाभाविक प्रतिक्रिया माना जा सकता है लेकिन हजारों बच्चों और निर्दोष ना​गरिकों का मारा जाना घोर युद्ध अपराध है लेकिन समूचा विश्व निर्दोष लोगों की चीखों पर अपने कान बंद करके बैठा हुआ है। युद्ध इजराइल को निर्दोष नागरिकों को मारने का अधिकार नहीं देता। मौत का तांडव जारी है। जंग के नियम में यह साफ है कि युद्ध के वक्त आम नागरिकों, अस्पतालों, रिहायशी इलाकों, इमारतों, स्कूलों, कालेजों और घरों को निशाना नहीं बनाया जा सकता लेकिन इजराइल का कहना है कि हमास ने इन सब में अपने आतंकवादी ठिकाने बना रखे हैं। दुनियाभर में युद्ध को खत्म करने की आवाजें उठ रही हैं लेकिन अब यह युद्ध दोनों पक्षों की जिद और बर्बरता का रूप ले चुका है। इस युद्ध ने वैश्विक स्थिरता को खतरा उत्पन्न कर दिया है। इस लड़ाई में ईरान की बढ़ती भूमिका ने गाजा युद्ध के प्रभाव को इराक, सीरिया, लेबनान और पाकिस्तान तक फैला दिया है।
इस माह के आरंभ में ईरान-समर्थित इजराइल विरोधी यमन के हूती विद्रोहियों ने विश्व व्यापार को अस्थिर कर दिया। उन्होंने यूरोप-दक्षिण पूर्व एशिया के समुद्री मार्ग पर अप्रत्याशित हमले किए। वैश्विक व्यापार का 12 फीसदी इसी मार्ग से होता है। हमलों की वजह से नौवहन कंपनियों को अपने पोतों को लंबे रास्ते से भेजना पड़ रहा है जिससे एक महीने से भी कम समय में उनकी लागत दोगुनी से अधिक बढ़ गई है। सप्ताहांत के दौरान इजराइल ने दमिश्क पर मिसाइल हमला किया जिसमें तीन ईरानी रिवॉल्युशनरी गाईस की जान चली गई। लेबनान में स्थित और ईरान समर्थित संगठन हिजबुल्लाह पर हुए हमले में भी एक व्यक्ति की जान चली गई। शनिवार को इराक में ईरान समर्थित समूहों ने एक अमेरिकी एयर बेस पर मिसाइल और रॉकेट हमले किए जिसमें कई अमेरिकी घायल हो गए। कुछ गंभीर रूप से घायल हुए। संक्षेप में कहें तो इस क्षेत्र में खतरा बढ़ रहा है। समस्या के मूल में इस संघर्ष के प्रमुख कारकों की हठधर्मिता जिम्मेदार है। अक्तूबर में हमास के हमले के बाद गाजा में इजराइल ने जो प्रतिकार किया उसके शिकार आम नागरिक भी हुए। इस बात की संयुक्त राष्ट्र समेत दुनिया भर में आलोचना भी हुई। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का दक्षिणपंथी गठबंधन राजनीतिक रूप से कमजोर है जिससे वह अधिक चरमपंथी तत्त्वों के समक्ष और कमजोर हुए हैं।
वैश्विक नौवहन के समक्ष उत्पन्न खतरे को समाप्त किया जाना भी जरूरी है। भारत अब तक कई जहाजों को बचा चुका है। यहां तक कि भारत अपने युद्ध पोत भेजने से भी पीछे नहीं हट रहा। अमेरिका और ब्रिटेन की नौसेनाओं ने हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हमले किए हैं लेकिन लगता नहीं है कि लाल सागर मार्ग पर वैश्विक नौवहन जल्द सुगम हो पाएगा। रूसी कच्चा तेल ज्यादातर लाल सागर के रास्ते ही भारत आता है। तेल की निरंतर उपलब्धता ही भारतीय अर्थव्यवस्था को ​स्थिर रख रही है। अगर तेल की आपूर्ति में बाधा पड़ी तो भारत को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। भारत रूस के अलावा इराक से भी तेल आयात करता है। भारत यूरोप को जो निर्यात करता है वह भी 80 फीसदी लाल सागर के मार्ग से जाता है। अगर लाल सागर में खतरा बना रहा तो भारत को वैकल्पिक मार्ग अपनाने पड़ेंगे, जिससे खर्च बहुत बढ़ जाएगा। लगातार बढ़ते भूराजनीतिक खतरे भारत की आर्थिक सम्भावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। युद्ध को लेकर पूरी दुनिया बंटी हुई है। कुछ देश खुलकर इजराइल के साथ हैं तो कुछ देश इजराइल के खिलाफ हैं और कुछ देश ऐसे हैं युद्ध को खत्म कराने के हिमायती हैं। ईरान लगातार चेतावनी दे रहा है कि वह इजराइल के खिलाफ सीधे युद्ध में उतर सकता है। इजराइल युद्ध विराम से साफ इंकार कर रहा है और हमास को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने की ठान चुका है लेकिन समस्या यह है कि इस कोशिश में गाजा में जो हो रहा है वह एक बड़ा मानवीय संकट बन गया है। यह युद्ध विश्व युद्ध में भले ही न बदले लेकिन एक सीमित युद्ध पश्चिम एशिया के क्षेत्रीय युद्ध में तब्दील हो सकता है। खतरा इस बात का है कि इजराइल और ईरान के बीच छदम युद्ध लेबनान और सीरिया तक फैलना का खतरा है। अगर इजराइल और ईरान के बीच सैन्य झड़पें शुरू हुईं और युद्ध फैल गया तो यह दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत घातक साबित होगा। जरूरत है कि शक्तिशाली देश युद्ध खत्म कराने के लिए कोई ठोस पहल करें।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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